प्रजातंत्र के दीप जले हैं ,आज नई तरुणाई लें|
भारत माता की जय बोले देश नई अंगराई लें||
अतीत बड़ा लुभावना होता हैं, चाहे वह कडवा ही ,क्यूँ न रहा हों ,संघर्ष की
जद्दोजहद, मूल्यों के बिखरने की पीड़ा,बदलाव की आतुर प्रतीक्षाए,सब बड़े लुभावने
लगने लगते हैं, जब हम कुछ हांसिल कर लेते हैं,आज़ादी के इतने वर्षो बाद आज अनुभव के
इसी पड़ाव पर खड़े हैं |
स्वतन्त्रता के बाद हमने इतने वर्ष बिता दिए हैं,इन वर्षो में हमने कुछ हासिल
किया १९४७ में तो केवल आज़ादी हांसिल की थी,लेकिन उसके बाद के इन वर्षो में हमने
आज़ादी के मायने हासिल किये हैं |
मंजिले अभी भले ही बाकी हों, लेकिन दूरियां भी हमने बहुत तय की हैं,जीवन के जो
मूल्य तब केवल स्वप्न थे आज साकार हो रहें हैं कहने वाले भाई बहन कुछ भी कहें
लेकिन आज़ादी के दस्तक की थाप समाज के आखिरी आदमी के दरवाजे पर जरुर पड़ी हैं |
जिन न्यायालयों में जमींदारों की सही दलीलों पर भी उन्हें कोड़ो की सजा मुकर्रर
हो जाती थी,उन्ही न्यायालयों में अब किसी फटेहाल गरीब की आवाज़ भी गूंजकर बराबरी का
न्याय पा लेती हैं,जिस समाज का एक बहुत
बड़ा हिस्सा आदमी का जीवन जीने के लिए तरसता था, समाज के उसी हिस्से के लोग आज
सामाजिक बदलाव की नई दिशाएं तय करने लगे हैं |समाज का कोई भी आदमी अपना रोज़गार,व्यापार,पढाई
लिखाई एवं जीवन यापन के तौर तरीके अपने पसंद के मुताबिक चुन लेने को स्वतंत्र हैं
|उसका कोई रोजगार ,कोई उद्योग उसकी और उसके देश की तिजोरी भरने के लिए हैं ,किसी
अंग्रेज या विदेशी का नही,सिकन्दर या कलंदर की तिजोरी भरने के लिए नही हैं |
सही मायने में एक बदलाव आया हैं ;आजादी का एहसास पनपा हैं ;लोग अपने सोच में
आजाद होने लगे हैं |कल कारखाने ,खेत खलिहान ,घर और बाज़ार,जिस माहौल में पंप रहे
हैं उसमे स्वाधीनता का एक एहसास हैं ;उल्लास का एक अनुभव हैं ,लेकिन 65 वर्ष पहले
यह सब नही था बल्कि इसके लिए हम जूझ रहे थे एक ऐसी सत्ता से जो सदियों से हमारी
ताकत हमारी समृद्धि को जोंक की तरह चूस रही थी और हमे खोखला बना डाला था ,इस जोंक
को हटाने की कोशिश ने हमारी गरीबी और फटेहाली में भी हमे लुह-लुहान कर डाला था
,हमे अपने ही भाईयो को कोड़े खाते जेल जातें लाठियों से पिटते देखना पड़ा था |अपनी ही
माताओ-बहनों की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ होते हुए देखना पड़ा था ,अपना हुनर ,अपना
उत्पादन,अपनी आमदनी,अपनी पूंजी, को विदेशियों के हाथो बर्बाद होते देखना पड़ा था |समाजिक
सद्भाव की अपनी विरासत को लुटते हुए देखना पड़ा
था ;लेकिन फिर भी हम लड़े ,बिना हाथ उठायें ,विना हथियार उठायें और न केवल लड़े
बल्कि फतह भी हांसिल की |और कभी हथियार भी उठाया तो तब जब अत्याचार की हदे पार
होने लगी थी तब |
66 वर्षो से हम गणतंत्रता दिवस मनाते आ रहें हैं|हमारे पूर्वजों के लहूँ से लिखा हुआ सुनहरा
अतीत हमारे सामने हैं और यही हमारा सबसे बड़ा गर्व भी हैं |अपने जीवन की खुशहाली
अपनी आजाद जिंदगी ;अपने लहलहाते खेतो,अपने शिक्षको और भाई बहनों के बीच ,हमे अपने
पूर्वजो,अपने शहीदों को याद करने और उन्हें श्रृद्धांजलि देने का यह उचित समय हैं|
यह एक शुभ अवसर हैं जब हम अपने आज़ादी की गौरव गाथा का स्मरण करे ;अपने शहीदों
के संकल्पों को दुहरायें और अपनी उपलब्धियों को देखते हुए गर्व से कहें
-भारत माता की जय