हाँ !मैंने तुम्हे प्रेम किया हैं |दिलोजान
से तुम्हे चाहा हैं |हों सकता हैं शुरू-शुरू में यह महज आकर्षण से शुरू हुआ हों
,पर अब ,तबसे आज तक शायद ही कोई ऐसा पल हों जब तुम याद न आई हों |वों दिन जब तुम
मेरे पास आतीं रहीं ,इसका आभास न था मुझे की एक दिन तुम चली जाओंगी,कुछ ऐसा
देकर.....जिसको मैं चुका हीं न सकूंगा |मेरी साँसे जब जब मुझमे आती हैं,तुम्हारी
यादें लें आती हैं |तुम्हारी पावन सुवास से मन पुलकित कर देती हैं|तुम्हारे मन-मंदिर की कर्ण-प्रिय
घंटियाँ मेरे कानो में टन-टनाती रहती हैं |ये
दुनिया ,ये जाति-पांति,ये रस्मो-रिवाज हमे क्या समझेंगे ?जब ये खुद का
अस्तित्व सच्चे अर्थो में नही समझते |नही तो ये दंगे.ये क्रूरता क्यूँ पनपते ?
हम अपने भाग्य के निर्माता हैं,जो कार्य हमारे सामने हैं ,वह हमारी शक्ति से परे नही हैं तथा इसको पूरा करने के लिए जो कष्ट सहना पडेंगा,वह भी हमारी सहन शक्ति से अधिक नही हैं और जब तक हमे अपने जीवन प्रयोजन और जीतने की अजेय इच्छाशक्ति पर विश्वास हैं,कोई भी सफलता हमसे अधिक दूर नही रह सकती |{ winston churchill}
28 September 2013
23 September 2013
22 September 2013
"how to select your life partner" अपना जीवन साथी कैसे चुने ?
“A successful marriage requires falling in love in many times always with the same person” -Mignon Mclaoughlin.
Courtship Period,Engagement
एवं Marriage के बीच का खूबसूरत,सुनहरा समयांतराल हैं |इस दौरान विवाह के इच्छुक
लड़के और लड़कियां एक दूसरे से मित्रता बढ़ाते हैं |एक दूसरे की आदत ,स्वभाव आदि
ज्ञात करने का प्रयास करते हैं |जब लड़का और लड़की एक दूसरे कों पसंद करने लगते हैं ,संबंधो
में सहजता महसूस करने लगते तो विवाह कर लेते हैं
,शायद इसीलिए ईसाई धर्म में कोर्टशिप कों विवाह का प्रथम चरण माना जाता हैं| राजश्री
प्रोडक्शन की विवाह फिल्म में Courtship Period कों बहुत खूबसूरती से दिखाया हैं |
आये दिन हम अखबारों के जरिये तलाक,या घरेलु हिंसा की खबरे पढ़ते हैं, जो की गलत नजरिये वाले गलत व्यक्ति से
संबंधो की उपज हैं | Courtship Period के दौरान हम अपने साथी के बात,व्यवहार,सम्बन्ध,नजरिये
कों समझकर निर्णय ले सकते हैं की वह हमारे लिए सुटेबल हैं या नही |
दोस्तों !रिश्ते अगर आकर्षण के बजाय समझ पर
आधारित हों तो यही खुशनुमा,लंबे वैवाहिक जीवन की आधारशिला हैं |आधुनिक युवा जोड़ो
से इतनी आपेक्षा तो की ही जानी चाहिए की वे Courtship Period के दौरान अपने LIFE
GOALSतथा Long Term Goals,Short Term Goals की खुले मन से चर्चा करेंगे |
Courtship Period के दौरान अपने होने वाले नए
परिवार के संपर्क में आकर उनके तौर-तरीके ,रीति-रिवाज ,अनुवांशिक
प्रवृत्ति,स्वास्थ्य इतिहास ,और उनके सर्वांगीण नजरिये कों समझना आसान हों जाता
हैं |
Courtship Period कों विवाह
का final step मानकर चलना चाहिए ,इस दौरान पुरे जीवन की प्लानिंग इस तरह से करनी
चाहिये की जीवन साथी और अपने परिवार में तारतम्य बना रहें |कहाँ रहना हैं ,ज्वाईंट
या न्यूक्लियर फॅमिली बेस्ट रहेंगी,किस तरह की शादी करनी हैं ,बहुत धूम-धड़ाके से यशराज
स्टाईल में या साधारण तरीके से |हनीमून के
लिए कहा जाना हैं ,भारत या विदेश |हनीमून
पर जाना आपसी समझ कों बढ़ावा देना हैं |
Courtship Period के दौरान
आपको होने वाले अपने जीवन साथी के साथ बाहर घूमने जाना चाहिए ,उसके मित्रों से
मिलना चाहिए |पिछले लेखो में आपने पढ़ा हैं की “किसी भी व्यक्ति की जिन्दंगी उसके
पांच करीबी मित्रों का औसत होती हैं”|विपरीत लिंगी मित्रों के साथ उसके व्यवहार
कों देख सकते हैं ,और आपको स्वयं भी अपने विपरीत लिंगी दोस्तों के विषय में सारी
बाते खुलकर करनी चाहिए |
Courtship Period के दौरान आपको अपने भावी साथी
की मेडिकल हिस्ट्री जान लेनी चाहिए |यह पता लगाये की उसको कहीं डायबिटीज,एजुएस्पर्मिया ,सिकल सेल
एनीमिया,HIV,VENEREAL DISEASES,डिप्रेसन तो नही हैं ,कहीं उसने कोई बड़ी सर्जरी तो
नही कराई हैं |सब जानकर ही फैसला लेंगे तो बेहतर होंगा |
कब शादी नही करनी चाहियें |
Courtship Period के दौरान अनेक खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरना हों सकता
हैं ,अगर खट्टे अनुभव ज्यादा हों तो मैं कहूँगा की “It is better to have broken
engagement than ending with a divorce”.
किसी भी रिश्ते के स्वास्थ्य
एवं आयु के लिए ‘शक’बहुत बड़ा और खतरनाक विष हैं | अगर रिश्तों में हर बात पर शक ही
जाहिर हों ,तो ऐसे रिश्ते जोड़ना ही क्यूँ जिनके परिणामस्वरूप घरेलू झगड़ा-टंटा हों
|
यदि आप Courtship Period के
दौरान अपने भावी साथी के साथ अपनी भावनाओं,सोच कों व्यक्त कर पाने में इनसेक्योर महसूस करते हों ,उसकी
प्रतिक्रिया से भी लगता हैं तो मैं कहूँगा की यह खतरनाक संकेत हैं भई|
आप जैसे भी हैं ,अपने शुद्ध वास्तविक रूप में ..ईश्वर तुल्य हैं |अगर
आपको उसी रूप में कोई चाहे ,पसंद करे तो ठीक हैं ,किन्तु यदि आपके व्यवहार कों
लेकर या फिर आपके ड्रेसिंग सेन्स पर ,या अन्य बातो कों खुद के हिसाब से बदलना चाहे
तो यह ठीक नही हैं |
दोनों परिवारों के बैकग्राउंड
में जमींन आसमान का अंतर भी ,ज्यादातर संबंधो कों नकारात्मक रूप से प्रभावित करता हैं ,किन्तु हमेशा यही सत्य नही होता हैं |
शादी खुद में एक विशेष सम्बन्ध
हैं |मम्मी-पापा बनने के लिए शादी मत कीजिये |शादी हसबैंड-वाईफ के रिलेशन पर
आधारित हैं ,इसको पैरेंट-चाईल्ड रिलेशन से नही तुलना करनी चाहिए |और “शादी के बाद सबकुछ ठीक हों जायेंगा” वाली
mentality भी नही रखनी चाहिए |
दहेज की नीव पर शादी की
आधारशिला कभी नही रखनी चाहिए |किसी की अनमोल भावनाओं ,असीमित अनन्य शुद्ध प्रेम
,परवाह ,वफादारी की कीमत चुकाना इस नश्वर जगत में इंसान के लिए संभव नही हैं |तुरंत
मना कर देनी चाहिए,बिना किसी दबाव और देरी
के ,लालच की कोई सीमा नही हैं |
शादी एक ऐसी संस्था हैं
,जिसमे हसबैंड और वाईफ दोनों कों बराबरी का दर्जा मिलता हैं |न कोई subordinate
होता है ,न कोई superior.पर Courtship Period
के दौरान यदि कोई एक अकेला ही सारा निर्णय करता हैं ,तो इस बात की सम्भावना बढ़
जाती हैं की शादी के बाद भी ऐसा ही करेंगा ,जो स्वास्थ्य संकेत तो नही हैं |
शादी का मतलब यह कत्तई नही
हैं की नए रिलेशन में इतना रम जाएँ की पुराने संबंधो कों भूल जाएँ |अरे भाई ‘ओल्ड
इज गोल्ड’.!
यदि आपका होने वाला साथी अचानक से बहुत क्रोधित हों जाता हों,और अपने
क्रोध पर काबू न रख पता हों तो यह आपके लिए खतरे की घंटी हैं |यदि वह आपसे अभद्र
व्यवहार या अशोभनीय टिप्पणी करें तो बेहतर होंगा की Courtship Period में ही
संबंधो से किनारा कर लें|न भावनाओं में बहें ,न दबाव में जिए |आपकी कद्र करने वाला
एक दिन आपको जरुर मिलेंगा |आप सबको इस ब्लॉग के लेखक की तरफ से आपके मंगलमय जीवन
की हार्दिक शुभकामनाएँ |
लेखन -अजय यादव |
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