हाँ !मैंने तुम्हे प्रेम किया हैं |दिलोजान
से तुम्हे चाहा हैं |हों सकता हैं शुरू-शुरू में यह महज आकर्षण से शुरू हुआ हों
,पर अब ,तबसे आज तक शायद ही कोई ऐसा पल हों जब तुम याद न आई हों |वों दिन जब तुम
मेरे पास आतीं रहीं ,इसका आभास न था मुझे की एक दिन तुम चली जाओंगी,कुछ ऐसा
देकर.....जिसको मैं चुका हीं न सकूंगा |मेरी साँसे जब जब मुझमे आती हैं,तुम्हारी
यादें लें आती हैं |तुम्हारी पावन सुवास से मन पुलकित कर देती हैं|तुम्हारे मन-मंदिर की कर्ण-प्रिय
घंटियाँ मेरे कानो में टन-टनाती रहती हैं |ये
दुनिया ,ये जाति-पांति,ये रस्मो-रिवाज हमे क्या समझेंगे ?जब ये खुद का
अस्तित्व सच्चे अर्थो में नही समझते |नही तो ये दंगे.ये क्रूरता क्यूँ पनपते ?
ठोकरों से आहत,मेरे मन कों मलहम लगाती रहीं तुम
,मैं तो कुछ भी नही था,तुमने मुझमे कुछ जगाया,वीरान से पड़ी मेरी हस्ती,मेरी
दुनिया में अनुराग के पुष्प उगायें |आज
वों पुष्प खिलने लगे हैं ,चौतरफा ये जो महक देख रहीं हों,तुम्हारे लगाये फुलवारी
से हैं |कभी तुमसे खुलकर कह नही पाया ,की तुम्हारी हर अदा कितनी भाती रहीं हैं
मुझे ,तुम्हारी केयरिंग ,तुम्हारी इज्जत देने की आदत ,तुम्हारा हर किसी के साथ
अपनापन ..अब मेरी आँखों कों नम कर जाता हैं|
प्रियतम !मुझमे मेरे अस्तित्व की
अनंत गहराईयों में ,तुम्हारा अस्तित्व इस कदर समाया हैं ,की मेरा अंत होने पर ही
,मुझमे ,तुम्हारा अंत हों सकेंगा |मेरे छोटे से दिल में ईश्वरीय जज्बात भरने वाली
,तुम्हारे शहर की हर शैं मुझे बड़ी निराली लगती हैं,आजकल वहीँ का वाशिंदा होकर रह
गया हूँ ,जो शहर तुमसे जुड़ा हों भला उससे सुंदर इस धरा पर जगह ही क्या होंगी ?आज
भी इस शहर के हर पब्लिक ट्रांसपोर्ट ,टेम्पो,रिक्शे पर एक सरसरी निगाह दौड़ा लेता
हूँ की कहीं तुम तो नही |आज मन में बड़ी वेदना हैं ,विरह हैं |तुम्हारे लिए मेरे
दिल में जो इज्जत हैं ,यह अचानक से एक दिन में पैदा नही हुयी हैं , न ही २-३ घंटे
की बालिवुडिया फिल्म देखकर ,यह तुम्हारी संगत में कुछ वक्त गुजरने से आई हैं
|तुमसे खुद कों प्यार करना सीखते सीखते तुम्ही से प्यार कर बैठा |और तुम निर्भयता
से ,सबके सामने बोल भी दी|अपनी फटेहाली में भी तुम्हारा उस असहाय बीमार की दवा लाने का दृश्ययाद आ गया ,उसने तुमको दिल से
आशीर्वाद दिया ,वों इमेज मेरे दिल में क्या ,उस दृश्य के साक्षी सभी के मन में छप
गयी |तुम्हारी नोक-झोक में मुझे हमेशा ही
हारना होता हैं ,क्यूंकि तुम्हारे प्रजेंस आफ माईंड का जबाव नही ..मुझे तुम लाजबाव
लाजबाव कहने पर अक्सर मजबूर कर देती हों |
क्रमशः ...............
आकर्षण से ही प्रेम का जन्म होता है !
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
ध्यानस्थ हो सुन रहे हैं।
ReplyDeleteमैं भी
Deleteहार्दिक शुभकामनायें
आगे आगे देखें होता है क्या .. :)
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रेमपत्र
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और कमल
Tum mano ya na mano par pyar inshan ki jarurat hai tum dena sath mera
ReplyDelete