16 May 2020

प्रबोधन काल


प्रबोधन का अर्थ-
 पुनर्जागरण कालीन लौकिक चेतना मानवतावाद तार्किक  वैज्ञानिक खोजो को बल देने वाली प्रवृत्ति ने
18वीं शताब्दी में आकर परिपक्वता प्राप्त कर ली |चिंतन की यह परिपक्व अवस्था प्रबोधन के नाम
से जानी जाती हैं|
 विशेषताएं-
1) प्रबोधन कालीन चिंतन ने ज्ञान को विज्ञान से जोड़ा  और कहा कि हमारे लिए सत्य वही है,
जिसका प्रयोग व परीक्षण किया जा सके| वस्तुतः ज्ञान आस्था का विषय नहीं बल्कि तर्क एवं प्रमाण से
युक्त होता है|
2) मध्य युग में यह कहा गया कि सृष्टि ईश्वर द्वारा निर्मित है, उसे मानव द्वारा नहीं जाना जा सकता
अर्थात यह दुनिया मानवी समझ से परे है मध्यकाल में यह सूत्र वाक्य प्रचलित था
कि" जहां ज्ञान का प्रकाश नहीं होता वहां विश्वास की ज्योति से रास्ता दिखाई पड़ता है" इस तरह
मध्यकाल आस्था पर बल देता है|
 प्रबोधन कालीन चिंतन इस मान्यता  का खंडन करता है,एवं प्रयोग एवं परीक्षण
पर बल देते हुए " जानो तब मानो" की बात पर बल देता है|
3) कारण कार्य संबंधों का अध्ययन प्रबोधन के चिंतन का मुख्य तत्व है
वस्तुतः किसी भी घटना के लिए उसकी पूर्व की घटना उत्तरदाई होती है ,
अतः इस कारण को जानना आवश्यक है कि प्राकृतिक शक्तियों से मानव की रक्षा
की जा सके तथा मानव प्रकृति की शक्तियों एवं उसकी उर्जा का रचनात्मक प्रयोग कर सकें|
इतना ही नहीं सामाजिक संबंधों में मौजूद विषमता और उसके कारणों को जानने पर बल दिया गया|
4) प्रबोधन के  चिंतकों ने प्रकृति पर बल देते हुए कहा कि प्रकृति परिपूर्ण है
एवं सौंदर्य से परिपूर्ण है| इसी तरह मानव भी स्वतंत्र हैं किंतु
उस पर अनेक नियंत्रण लगा दिए और वह परतंत्र हो गया है
अतः मानव को प्रकृति की तरफ लौटना चाहिए जहां धर्म जाति एवं नस्ल का बंधन नहीं था| 
6)प्रबोधन के चिंतकों ने देववाद  पर बल दिया इसका तात्पर्य है
कि मानव कर्मकांड से मुक्त होकर आचरण करें इन चिंतकों
ने कहा कि कोई परमसत्ता जो सृष्टि का निर्माण करती है यदि
इस अवधारणा को मान लिया जाए तो इसका तात्पर्य सभी जीवो के
प्रति सहृदयता का व्यवहार करना चाहिए इसी प्रकार चिंतको ने स्पष्ट किया कि
चाहे किसी परम सत्ता ने सृष्टि का निर्माण किया हो किंतु सृष्टि को चलाने के लिए
मानव  पूर्णतया उत्तरदाई है| इस प्रकार चिंतकों ने ज्ञान को विज्ञान से जोड़ने ,
प्रयोग  एवं परीक्षण पर बल देने और कारणो पर बल देने के माध्यम से अनेक वैज्ञानिक
सिद्धांत एवं यंत्रों की खोज को संभव बनाया फलतः मशीनीकरण को बढ़ावा मिला जिसके
कारण भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि हुई है |मानवतावाद एवं प्रकृति पर बल देते हुए चिंतकों ने
मानव की समता एवं स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया| फलतः  मानवीय मूल्यों को स्वतंत्र मिली |
इस दृष्टि से प्रबोधन कालीन चिंतन मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देता है|

पुनर्जागरण :विश्व इतिहास

पुनर्जागरण
                                       पुनः जागना
 विश्व इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है


  1.  प्राचीन विश्व( आरम्भ  से पांचवी सदी)  
  2. मध्यकालीन विश्व( अभी से 16 वी  सदी)
  3.  आधुनिक विश्व (16 वी सदी  अब तक)
 रोमन साम्राज्य दो प्रशासनिक केंद्र 
1)पश्चिमी राजधानी रोम                            
 2) पूर्वी राजधानी कुस्तुनतुनिया (तुर्की)
  •  लौकिक  जीवन पर बल दिया जाता था 
  • मानव केंद्र में था 
  • मानव के तर्क एवं विवेक पर बल दिया गया  था 
  • मानव के चिंतन की स्वतंत्रता धर्म के बंधन से मुक्त 
  • मानव स्वतंत्र धार्मिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने लगा
  • मानव पुनर्जागरण
  पुनर्जागरण के कारण
1) धर्म युद्ध ईसाई vs इस्लाम
 परिणाम 1) 
  • ईसाई धर्म के पॉप ने  अपने सेना को विजय होने का आशीर्वाद दिया था
  •  किंतु धर्म युद्ध में इस तरह की पराजय हो गई 
  • अतः धर्म की सत्ता के प्रति संशय पैदा हुआ
  •  अधर्म की पकड़ से मानव मुक्त होने लगा 
  • मानव के तर्क विवेक को प्रोत्साहन मिला
2) युद्ध में सामंतों का धन एवं बाल समाप्त होने लगा
  •  सामंतवाद का पतन 
  • धार्मिक गतिशीलता बढ़ने लगी
  •  पुनर्जागरण चेतना का विकास हुआ 
3)कुस्तुनतुनिया पर इस्लाम के अनुयायियों का नियंत्रण
  •  अतः भूमध्य सागरी व्यापार बाधित हुआ 
  • अतः नए मार्ग की जिज्ञासा 
  • आवश्यकता बड़े भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहन मिला
  •  कोलंबस /वास्कोडिगामा अपने अपने मिशन पर निकल गए 
  • अन्य को भी प्रेरणा मिली 
  • साहस एकता का विकास
2) कुस्तुनतुनिया का पतन
  •  कुस्तुनतुनिया पर इस्लाम का नियंत्रण
  •  अतः यहां मौजूद यूरोपी विद्वान कलाकार भागकर निकट के क्षेत्र में पहुंचे 
  • वे अपने साथ ग्रीक एवं लेकिन साहित्य भी ले गए
  •  इसमें प्राचीन रोमन साम्राज्य की मानवतावादी लौकिक  चेतना की प्रवृत्तियां वर्णित  थी
  • अतः  इन ग्रंथों का ज्ञान होने लगा 
  • और अतीत से  प्रेरित होकर वर्तमान को बदलने का भाव/ प्रेरणा पैदा हुए
  •  अतः मानव  की क्षमता और तर्क विवेक को प्रोत्साहन मिला 
  • इससे पुनर्जागरण चेतना का उदय हुआ|
3) प्रिंटिंग प्रेस का विकास
  •  धार्मिक एवं वैज्ञानिक चिंतन का प्रचार होने लगा 
  • अतः  बाइबल का अनुवाद  स्थानीय भाषा में होने लगा
  •  अब ज्ञान सर्व सुलभ हो गया
  •  अतः  'बाइबल में ऐसा लिखा है कह कर' 
  • लोगों को गुमराह नहीं किया जा सकता
  •  मानव धर्म के माध्यम से मुक्त होने लगा
  •  पुनर्जागरण चेतना का उदय हुआ

स्वदेशी आंदोलन...आत्मनिर्भरता का आंदोलन

प्रश्न :-स्वदेशी आंदोलन का वर्णन करते हुए इसका भारतीय जनजीवन पर पड़े प्रभाव का मूल्यांकन करिए|
उत्तर- बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 1905 में हुई|इस आंदोलन की निम्न विशेषताएं थी-
1)विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना
2) सरकारी स्कूलों अदालतों और उपाधियों का बहिष्कार करना| वस्तुतः बहिष्कार का सर्वप्रथम सुझाव कृष्ण कुमार मित्र ने अपनी पत्रिका संजीवनी में दिया था
3)आत्मनिर्भरता  हेतु राष्ट्रीय शिक्षा एवं स्वदेशी पर बल देना|
4) रचनात्मक कार्यों पर बल देकर सामाजिक सुधार करना, जैसे बाल विवाह ,दहेज प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाना |

आंदोलन की कार्य पद्धति


1) विभिन्न समितियों का गठन कर हड़तालओं का आयोजन करना| इसी क्रम में बारिसाल
कोलकाता में अश्विनी कुमार दत्त ने "स्वदेश बांधव समिति" का गठन किया, और लोगों को एकजुट किया इन समितियों द्वारा जन जागरण के क्रम में व्याख्यानो का आयोजन होता था| कार्यकर्ताओं को नैतिक प्रशिक्षण दिया जाता था| इस तरह जनता को साथ लेकर ब्रिटिश विरोधी कार्यक्रम चलाया गया
2) महिलाओं द्वारा धरना प्रदर्शन कार्यक्रम चला|
3) धार्मिक प्रतीकों एवं नारों का प्रयोग कर लोगों को संगठित किया गया इसी क्रम में पारंपरिक त्योहारो , लोक नाट्य मंचो का उपयोग करते हुएआंदोलन जनता तक पहुंचाया गया| वस्तुतः रक्षाबंधन गणेश महोत्सव शिवाजी महोत्सव आदि के माध्यम से लोगों को एकजुट किया गया|
4) निष्क्रिय प्रतिरोध द्वारा सरकार विरोधी आंदोलन चलाया गया जिसके तहत असहयोग, बहिष्कार, धरना प्रदर्शन आदि पर बल दिया गया|

प्रसार


1)स्वदेशी आंदोलन की विधिवत शुरुआत 7 अगस्त 1950 को कोलकाता के टाउन हॉल की बैठक हुई जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया बंगाल विभाजन के दिन 16 अक्टूबर उन्नीस सौ पांच को शोक दिवस एवं हिंदू मुस्लिम एकता दिवस के रूप में मनाया गया एकता प्रदर्शित करने के लिए लोगों ने एक दूसरे के हाथ में राखी बांधी |
2)यह आंदोलन बंगाल के बाहर भारत के विभिन्न भागों में फैला तिलक ने पुणे में तो लाला लाजपत राय ने पंजाब में सैयद हैदर रजा ने दिल्ली में एवं चिदंबरम पिलाई ने मद्रास में आंदोलन का नेतृत्व किया इसका आंदोलन अखिल भारतीय स्वरूप लिए हुए था|
3) तिलक का गणपति उत्सव एवं शिवाजी उत्सव न केवल महाराष्ट्र में बल्कि बंगाल में भी स्वदेशी आंदोलन का प्रमुख माध्यम था|

सामाजिक आधार


1) आंदोलन में विद्यार्थी मुख्य कर्ताधर्ता से उन्होंने सरकारी स्कूलों का बहिष्कार किया|
2) महिलाएं पहली बार घर से बाहर निकल कर जुलूस में शामिल हुए|
3) बंगाल के बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय की भागीदारी नहीं रही वस्तुतः अधिकांश उच्च एवं मध्य वर्ग के नेता आंदोलन से दूर रहे या बंगाल विभाजन का समर्थन किया जैसे ढाका के नवाब सलीमुल्लाह ने बंगाल विभाजन का समर्थन किया किंतु फिर भी अब्दुल रसूल लियाकत हुसैन शायद हैदर रजा जिससे प्रगतिशील मुस्लिम आंदोलन में शामिल है
4) किसान इस आंदोलन से अलग रहा आंदोलन में किसानों की मांगे शामिल नहीं थी वह जमीदारों के शोषण से पीड़ित थे|

मूल्यांकन योगदान;-


1) स्वदेशी आंदोलन में राष्ट्रवाद के वैचारिक आधार का विस्तार किया|
2) स्वदेशी आंदोलन दिन नई राजनीतिक पद्धतियां जैसे जन आंदोलन, बहिष्कार, धरना प्रदर्शन तथा रचनात्मक कार्यों को प्रारंभ किया यह नयी पद्धतियां,नई सदी के आंदोलन की मुख्य विशेषता बन गई|
3) इसी पर बल देने के क्रम में भारतीय उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन मिला| इसी क्रम में वस्त्र उद्योग, माचिस उद्योग, बंगाल केमिकल, जैसी स्वदेशी इकाइयों की स्थापना हुई| साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना हुई| जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रवादी शिक्षा का प्रसार करना था| इसी क्रम में बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना हुई जिसके प्रथम प्राचार्य अरविंद घोष थे|
4) स्वदेशी आंदोलन की सांस्कृतिक क्षेत्र में उपलब्धियां उल्लेखनीय रही, रविंद्र नाथ टैगोर जितेंद्र नाथ सराय, दक्षिणा रंजन एवं रजनीकांत सेन साहित्यकारों ने बांग्ला साहित्य का विकास किया रविंद्र नाथ टैगोर ने आमार सोनार बांग्ला नमक गीत लिखा जो आगे चलकर बांग्लादेश का गौरव गान बना|शिप्रा दक्षिणा रंजन ने ठाकुरमार झूठी (दादी मां की कथाएं) लिखी जो आज भी बच्चों को प्रेरित करती हैं|
5) चित्र कला के क्षेत्र में अविंद्र नाथ टैगोर, मुगल एवं राजपूत चित्रकला से प्रेरित होकर स्वदेशी चित्र कला का विकास किया तो नंदलाल बोस ने कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए कला की छात्रवृत्ति प्राप्त की|

सीमाएं-


1) आंदोलन में धार्मिक प्रतीक एवं नारों का प्रयोग किया गया, लगता है सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला
2)आंदोलन की कार्य पद्धति के संदर्भ में उदारवादी एवं उग्रवादी नेताओं के बीच मतभेद बढ़ा|इसके परिणाम स्वरूप 1907 में सूरत में कांग्रेस का विभाजन हो गया|

निष्कर्ष-


1) स्वदेशी आंदोलन भारत में आधुनिक राजनीति के आरंभ कर्ता के रूप में देखा जाता है ,इससे राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा प्राप्त हुई और आंदोलन नई प्रवृत्तियों संयुक्त हुआ |वस्तुतः नई सदी के साथ ही, नई रुचियां नए लक्ष्य नई पद्धतियां सामने आई | 
नई रुचियां थी राजनीतिक उदारवाद से राजनीतिक उग्रवाद की विचारधारा....  
नयी  पद्धतियां थी निष्क्रिय प्रतिरोध के तहत धरना प्रदर्शन ,बहिष्कार को अपनाना
 तो नया लक्ष्य था स्वराज की प्राप्ति करना|
(यह उत्तर डॉक्टर अजय यादव द्वारा गूगल वॉइस टाइपिंग से लिखा गया है)

10 May 2020

सोशल मीडिया,दुरुपयोग और सतर्कता से जुड़े रिसेंट मुद्दे


सामाजिक नेटवर्किंग सेवा एक ऑनलाइन जरिया हैं जिससे लोगों के बीच सामाजिक नेटवर्किंग अथवा सामाजिक संबंधों को स्थापित किया जा सकता हैं |उदाहरण के लिए ऐसे व्यक्ति जिनकी रुचियां अथवा गतिविधियां समान होती हैं।  यह एक अपरंपरागत मीडिया (nontraditional media) है|
अभी जल्द ही BPRD; Bureau of police research and development ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए स्टेप टू स्टेप गाइड प्रकाशित किए Jiska uddeshy फेक news (येलो जर्नलिज़्म) aur video ko पहचानना Jo घृणा  aur communal hinsa ko failate Hain॥जिसका परिणाम दिल्ली दंगों के रूप में देखा जा सकता है |हाल में हुई पालघर मे साधुओ की हत्या की घटना इसका उदाहरण है, कुछ दिनों से फेक न्यूज़ चल रही है कि देश के गृहमंत्री गंभीर रूप से बीमार है जबकि वह स्वस्थ है |आर्थिक राजनीतिक लाभ लेने पहुँच को बढ़ाने के लिए अक्सर कुछलोग सनसनीखेज खबर फैलाते हैं ।
कई देशों ने सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए बेहतर नियंत्रण तंत्र विकसित किया है यदि कोई सोशल मीडिया या अन्य साधनों के जरिए झूठी खबर फैलाता है तो उसे तुरंत पकड़ लिया जाता है|
इस मामले में वहां का समाज भी अधिक जागरूक है वहां का समाज फर्जी खबर फैलाने वाले लोगों का बहिष्कार कर देता है और कुछ नजर से देखता जाता है लेकिन भारत में इस प्रकार की जागरूकता नहीं है, सोशल मीडिया के नियमन की मांग नहीं huyi है ,जब-जब इसका दुरुपयोग हुआ है  तभी इसकी मांग हुई है|
व्हाट्सएप और फेसबुक द्वारा फेक न्यूज़ के खिलाफ दिए जा रहे विज्ञापन इसी सतर्कता ka hissa हैं। साइबर विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि अपनी पोस्ट या अकाउंट पर आप जो कुछ शेयर करते हैं उसके लिए आप ही जिम्मेदार है
सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते समय दिन में तीन बातो को ध्यान में रखाना चाहिए
1) किसी भी खबर को सोशल मीडिया पर शेयर करने से पहले उसके स्रोत की पड़ताल जरूर कीजिए।

2) किसी भी समाचार इतिहास से जुड़ी जानकारी और गंभीर मसले से संबंधित सूचना को आगे बढ़ाते समय अन्य कई सारे प्रमाणित स्रोतों से भी मिला लेना चाहिए कोशिश
3)कीजिए कि किसी मुद्दे पर हर तरफ को विचारों को जानने की।
जांच के लिए वेबसाइटो को एसेस किया जा सकता है जैसे हिंदू डॉट कॉम ,पीआईबी gov.in, रिपोर्टर लैब डॉट कॉम और भी अन्य कई शामिल है।
सरकार द्वारा जारी मैनुअल में संप्रदायिक कोन की पहचान के लिए गाइडलाइन में एक फेक वीडियो का स्क्रीनशॉट लगाया है जिसमें मुसलमानों पर साफ प्लेटो और चमचों से बड़े पैमाने पर लोगों को वायरस स्थानांतरित करने का आरोप लगाया गया है।
एक क्लिप को भी लगाया गया है जहां उपद्रवियों ने नकली यूआरएल यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर के जरिए उन लोगों को गुमराह करने की कोशिश किया जो पीएम केयर फंड में दान देना चाहते थे Google reverse image search ka istemal करके  videos ke liye police aur Anya agency जांच kar sakte हैं।
भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत बताते हैं की बाहरी ताकतों का चुनाव में हस्तक्षेप चिंताजनक है इसके लिए सोशल मीडिया को हथियार बनाया गया है यह किसी देश को खत्म करने का एक नया तरीका है।
दुश्मन राष्ट्र सोचते हैं कि वर्तमान समय में लड़ाई करने का कोई मतलब नहीं है ।
उससे कहीं बेहतर है वहां असक्षम सरकार खड़ी कर दी जाए जिससे वह देश स्वयं खत्म हो जाएगा ।
सोशल मीडिया के जरिए मतदाता को प्रभावित किया जाता है ताकि वह किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में मतदान करें ,यह काम विदेशी शक्तियां करती हैं जो सोशल मीडिया के माध्यम से देश और समाज को जाति धर्म संप्रदाय आदि के आधार पर बांटने की साजिश करती हैं।
जिससे आवाम एक असक्षम सरकार को चुनाव कर लेती है इसके बारे में ना तो जनता को जानकारी होती है नहीं राजनीतिज्ञों को उन्हें अंदाजा होता है कि यह कितना बड़ा खतरा है। भारत के चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल और नियमन के लिए अक्टूबर 2013 में दिशा निर्देश जारी किए थे इन नियमों के अनुसार सोशल मीडिया को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कानूनी परिभाषा के दायरे में लाया गया.
इन नियमों के बाद चुनाव के आखिरी 48 घंटों में पार्टियां प्रत्याशियों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव प्रचार नहीं किया जा सकता|

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