प्रबोधन का अर्थ-
पुनर्जागरण कालीन लौकिक चेतना मानवतावाद तार्किक वैज्ञानिक खोजो को बल देने वाली प्रवृत्ति ने
18वीं शताब्दी में आकर परिपक्वता प्राप्त कर ली |चिंतन की यह परिपक्व अवस्था प्रबोधन के नाम
से जानी जाती हैं|
18वीं शताब्दी में आकर परिपक्वता प्राप्त कर ली |चिंतन की यह परिपक्व अवस्था प्रबोधन के नाम
से जानी जाती हैं|
विशेषताएं-
1) प्रबोधन कालीन चिंतन ने ज्ञान को विज्ञान से जोड़ा और कहा कि हमारे लिए सत्य वही है,
जिसका प्रयोग व परीक्षण किया जा सके| वस्तुतः ज्ञान आस्था का विषय नहीं बल्कि तर्क एवं प्रमाण से
युक्त होता है|
जिसका प्रयोग व परीक्षण किया जा सके| वस्तुतः ज्ञान आस्था का विषय नहीं बल्कि तर्क एवं प्रमाण से
युक्त होता है|
2) मध्य युग में यह कहा गया कि सृष्टि ईश्वर द्वारा निर्मित है, उसे मानव द्वारा नहीं जाना जा सकता
अर्थात यह दुनिया मानवी समझ से परे है मध्यकाल में यह सूत्र वाक्य प्रचलित था
कि" जहां ज्ञान का प्रकाश नहीं होता वहां विश्वास की ज्योति से रास्ता दिखाई पड़ता है" इस तरह
मध्यकाल आस्था पर बल देता है|
अर्थात यह दुनिया मानवी समझ से परे है मध्यकाल में यह सूत्र वाक्य प्रचलित था
कि" जहां ज्ञान का प्रकाश नहीं होता वहां विश्वास की ज्योति से रास्ता दिखाई पड़ता है" इस तरह
मध्यकाल आस्था पर बल देता है|
प्रबोधन कालीन चिंतन इस मान्यता का खंडन करता है,एवं प्रयोग एवं परीक्षण
पर बल देते हुए " जानो तब मानो" की बात पर बल देता है|
पर बल देते हुए " जानो तब मानो" की बात पर बल देता है|
3) कारण कार्य संबंधों का अध्ययन प्रबोधन के चिंतन का मुख्य तत्व है
वस्तुतः किसी भी घटना के लिए उसकी पूर्व की घटना उत्तरदाई होती है ,
अतः इस कारण को जानना आवश्यक है कि प्राकृतिक शक्तियों से मानव की रक्षा
की जा सके तथा मानव प्रकृति की शक्तियों एवं उसकी उर्जा का रचनात्मक प्रयोग कर सकें|
इतना ही नहीं सामाजिक संबंधों में मौजूद विषमता और उसके कारणों को जानने पर बल दिया गया|
वस्तुतः किसी भी घटना के लिए उसकी पूर्व की घटना उत्तरदाई होती है ,
अतः इस कारण को जानना आवश्यक है कि प्राकृतिक शक्तियों से मानव की रक्षा
की जा सके तथा मानव प्रकृति की शक्तियों एवं उसकी उर्जा का रचनात्मक प्रयोग कर सकें|
इतना ही नहीं सामाजिक संबंधों में मौजूद विषमता और उसके कारणों को जानने पर बल दिया गया|
4) प्रबोधन के चिंतकों ने प्रकृति पर बल देते हुए कहा कि प्रकृति परिपूर्ण है
एवं सौंदर्य से परिपूर्ण है| इसी तरह मानव भी स्वतंत्र हैं किंतु
उस पर अनेक नियंत्रण लगा दिए और वह परतंत्र हो गया है
अतः मानव को प्रकृति की तरफ लौटना चाहिए जहां धर्म जाति एवं नस्ल का बंधन नहीं था|
एवं सौंदर्य से परिपूर्ण है| इसी तरह मानव भी स्वतंत्र हैं किंतु
उस पर अनेक नियंत्रण लगा दिए और वह परतंत्र हो गया है
अतः मानव को प्रकृति की तरफ लौटना चाहिए जहां धर्म जाति एवं नस्ल का बंधन नहीं था|
6)प्रबोधन के चिंतकों ने देववाद पर बल दिया इसका तात्पर्य है
कि मानव कर्मकांड से मुक्त होकर आचरण करें इन चिंतकों
ने कहा कि कोई परमसत्ता जो सृष्टि का निर्माण करती है यदि
इस अवधारणा को मान लिया जाए तो इसका तात्पर्य सभी जीवो के
प्रति सहृदयता का व्यवहार करना चाहिए इसी प्रकार चिंतको ने स्पष्ट किया कि
चाहे किसी परम सत्ता ने सृष्टि का निर्माण किया हो किंतु सृष्टि को चलाने के लिए
मानव पूर्णतया उत्तरदाई है| इस प्रकार चिंतकों ने ज्ञान को विज्ञान से जोड़ने ,
प्रयोग एवं परीक्षण पर बल देने और कारणो पर बल देने के माध्यम से अनेक वैज्ञानिक
सिद्धांत एवं यंत्रों की खोज को संभव बनाया फलतः मशीनीकरण को बढ़ावा मिला जिसके
कारण भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि हुई है |मानवतावाद एवं प्रकृति पर बल देते हुए चिंतकों ने
मानव की समता एवं स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया| फलतः मानवीय मूल्यों को स्वतंत्र मिली |
इस दृष्टि से प्रबोधन कालीन चिंतन मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देता है|
कि मानव कर्मकांड से मुक्त होकर आचरण करें इन चिंतकों
ने कहा कि कोई परमसत्ता जो सृष्टि का निर्माण करती है यदि
इस अवधारणा को मान लिया जाए तो इसका तात्पर्य सभी जीवो के
प्रति सहृदयता का व्यवहार करना चाहिए इसी प्रकार चिंतको ने स्पष्ट किया कि
चाहे किसी परम सत्ता ने सृष्टि का निर्माण किया हो किंतु सृष्टि को चलाने के लिए
मानव पूर्णतया उत्तरदाई है| इस प्रकार चिंतकों ने ज्ञान को विज्ञान से जोड़ने ,
प्रयोग एवं परीक्षण पर बल देने और कारणो पर बल देने के माध्यम से अनेक वैज्ञानिक
सिद्धांत एवं यंत्रों की खोज को संभव बनाया फलतः मशीनीकरण को बढ़ावा मिला जिसके
कारण भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि हुई है |मानवतावाद एवं प्रकृति पर बल देते हुए चिंतकों ने
मानव की समता एवं स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया| फलतः मानवीय मूल्यों को स्वतंत्र मिली |
इस दृष्टि से प्रबोधन कालीन चिंतन मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल देता है|
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