24 September 2016

गालियाँ और समाज



तीन महिलाओं की कहानी पर आधारित फिल्म “पार्च्ड” देखा |जिसमे एक महिला कहती हैं की सारी गालियाँ स्त्रियों को लेकर बनी हैं ,पुरुषो को लेकर क्यूँ नही . सुरवीन चावला बेधडक गालियाँ बकती हैं,सवाल इस बात का हैं की गालियाँ इतनी कामन क्यूँ हैं की लोगो के मुह से थोड़ी सिचुएशन बदलते ही झड़ने लगती हैं.इन गालियों से लोग क्या साबित करना चाहते हैं ?.खुद पर नियन्त्रण न रख पाने वाला पुरुष कायर जीव हैं ?जो किसी अंग विशेष को लेकर ,किसी विशेष सेक्सुअल सिचुएशन या किसी स्त्री को लेकर अभद्र टिप्पणी करता हैं खासकर उस स्त्री को लेकर जिसका उस घटना, उस स्थिति से कोई सम्बन्ध न हो,उसको गालिया बक-कर अपनी विजय समझता हैं | गाली बकने वाले अपनी माँ बहनों बेटियों की इज्जत नही करते ,ये खुद पर अनुशासन नही रख सकते ,इनमें इतना दम  नही होता की किसी सिचुएशन के अनुसार खुद को ढाल सके,यकीं मानिए ,ये बेहद  कमजोर और कायर लोग होते हैं |
      गली-मुहल्लों में गालियाँ एड्रेस करने का तरीका हो गयी हैं ,कोई बात गालियों से शुरू ,गालियों से खत्म |परिवार में आपसी वार्तालाप में ,दोस्तों में आपसी संवाद में ..|मूल्य बदल रहे हैं युवा हाईपरटेंशन में जी रहे हैं ,थोड़ी थोड़ी बात बर्दाश्त से बाहर हो जाती हैं ,जी भर के गालियाँ बकते हैं सकूँन पाने के लिए ...थोडा प्रेशर बढ़ा तो ड्रग,नही तो सुसाईड |क्लास में बैठकर टीचर्स को गालियाँ |3-इडियट जैसी घटिया फिल्म मैंने नही देखी  जहाँ शिक्षको का इतना गंदा मजाक उड़ाया गया हों ,खासकर चतुर के भाषण द्वारा |समाज की मानसिकता बदल रही हैं ,नैतिक मूल्यों को लेकर |

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