22 June 2020

Agricultural Produce & Livestock Market Committee


Agricultural Produce & Livestock Market Committee
STATE APMC ACT
             कृषि राज्य सूची का एक विषय है, इसलिए  कृषि वस्तुओं का वितरण का कार्य राज्य  स्थानीय संस्थाओं के अधीन, संचालित होता है| इन संस्थाओं को APMC  कहा जाता है, इनकी स्थापना STATE APMC ACT के अंतर्गत की जाती है| 
             इन संस्थाओं को लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य  यह रहा कि किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य मिले., तथा उनके माल का लेनदेन  एक  नियामकीय  वातावरण के अंतर्गत हो |
          भारत में इन संस्थाओं की  कार्यप्रणाली  कुछ इस प्रकार रही की किसानों के शोषण को अधिक बढ़ावा मिला| और कुछ अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो गई|  जैसे  की खाद्य वस्तुओं की महंगाई, कृषि बाजार का विखंडन , खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए सप्लाई चैन मैनेजमेंट की चुनौतियां आदि| 
STATE APMC ACT से जुड़ी कुछ समस्याएं-

1]यह ऐक्ट इस बात का प्रावधान करता है कि कृषि वस्तुओं का प्रथम विक्रय APMC  मंडियों में ही किया जा सकता है| इस प्रावधान के कारण, एपीएमसी मंडियों को  एकाअधिकारी MONOPOLY  की स्थिति प्राप्त हो जाती है| एकाअधिकारी स्थिति प्राप्त होने से  सुधारों के लिए कोई दबाव नहीं बनता है|
2] यह एक्ट इस बात का प्रावधान करता है कि एपीएमसी मंडियों में, लाइसेंस वाले व्यापारी ही लेन देन कर सकते हैं| इस प्रावधान के कारण  एपीएमसी मंडियों में  कार्य करने वाले व्यापारी , अल्पाअधिकारी {OLIGOPOLISTIC कुछ लोगों का अधिकार}  स्थिति में आ जाते हैं| और कार्टेल बनाकर की कीमतों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं |इससे किसानों को सही मूल्य नहीं मिल पाता है| 
नोट-CARTEL-कुछ एकमत या  एक  राय वाले लोगों का  गैरकानूनी समूह  को कार्टेल कहते हैं|
 लाइसेंस की एक शर्त यह भी है कि , संबंधित व्यक्ति की दुकान मंडी क्षेत्र में हो | इससे नए लोगों का आसानी से प्रवेश नहीं हो पाता है|
       उपर्युक्त के अलावा  लाइसेंस  वस्तु एवं मंडी विशिष्ट होता है..  जैसे अनाज का लाइसेंस अलग लेना है, फल सब्जी का लाइसेंस अलग लेना है|
3]स्टेट एपीएमसी एक्ट  निजी क्षेत्रों को [PRIVATE SSECTOR] मंडियों को स्थापना की  अनुमति  नहीं देता है| इससे प्रतियोगिता का स्तर कम हो जाता है| 
4]यह एक प्रत्यक्ष विपणन [ Direct marketing] को अनुमति नहीं देता है,  इससे बाजार संरचना बिगड़ रही है|
             प्रत्यक्ष विपणन में  उपभोक्ता या क्रेता   सीधे किसानों से माल खरीद सकता है| 
             प्रत्यक्ष विपरण से किसानों को अधिक मूल्य मिलता है, जबकि उपभोक्ताओं को कम मूल्य देना पड़ता है| 
          दक्षिण कोरिया में  कृषि क्षेत्र में  प्रत्यक्ष विपणन के लागू होने के बाद जहां एक और  उपभोक्ताओं को पहले की तुलना में 20-30 % कम कीमत देनी पड़ रही है , तो वहीं दूसरी ओर  किसानों को 10-20% ऊंची कीमत मिल रही है| 
      भारत में किए गए एक अनुसंधान से  यह पता लगता है कि यदि फल और सब्जियों में प्रत्यक्ष वितरण लागू किया जाता है तो किसानों को  उपभोक्ताओं द्वारा दी जाने वाली कीमत का  88  से  95.4% तक भाग मिल सकता है|
5] यह एक संविदा कृषि [contract forming] अनुमति नहीं देता है|
       संविदा कृषि को अनुमति नहीं देने से, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को अच्छी गुणवत्ता का कच्चा माल उचित कीमतों पर पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करने में कठिनाई होती है,अर्थात उन्हें सप्लाई चैन मैनेजमेंट की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है|

संविदा कृषि से छोटे खेतों की समस्या का समाधान होता है और किसानों की आय भी सुनिश्चित हो जाती है| 

Agri : Marketing System of India

भारत में कृषि उत्पादकता के कम होने  तथा किसानों की  चिंतनीय स्थिति के लिए के लिए एक बड़ा कारण भारत की विकृत कृषि विपरण प्रणाली भी है , जो एक और किसानों को उनकी उपज के लिए, उचित मूल्य सुनिश्चित नहीं करती है, तो दूसरी और उपभोक्ताओं के लिए, ऊंची कीमत पर खाद्य वस्तुएं उपलब्ध करवाती है|
एक अच्छी कृषि विपरण  प्रणाली की मुख्य विशेषताएं-
 एक अच्छी किसी वितरण प्रणाली में निम्न 3   मुख्य विशेषताएँ होती हैं-

1]प्राथमिक उत्पाद को [किसान] को ऊंची उचित कीमत सुनिश्चित करना|
2] किसानों को प्राप्त होने वाले कीमत तथा उपभोक्ताओं द्वारा दी जाने वाली कीमत में न्यूनतम अंतर सुनिश्चित करना|
3] कृषि वस्तुओं की गुणवत्ता को  प्रभावित किए बिना उपभोक्ताओं का उनके वितरण को सुनिश्चित करना| 
एक अच्छी कृषि वितरण प्रणाली से जुड़ी हुई  मुख्य सुविधाएं या  आवश्यकताएं- 
1]भंडारण क्षमता[storage capacity]
2] माल को लंबे समय के लिए रोक कर रखने की क्षमता [holding capacity]
3] परिवहन[transportation]-पर्याप्त एवं सsta.
4] बाजार संबंधी सूचनाएं[information about market] 
5]  मंडियों की  पर्याप्त संख्या [large no of marke place] 
6] बिचौलियों की न्यूनतम संख्या[ less no.of middleman]
भारत की कृषि विपरण प्रणाली की मुख्य कमजोरियां
1]भंडारण क्षमता में कमी [lack of storage capacity]-
भारत में किसानों के पास भंडारण की पर्याप्त क्षमता नहीं है, इसके अलावा  कई किसान कच्चा भंडारण [ जैसा उत्पादन करते हैं उसी तरह से रख लेते, बिना कोई  कीट नाशी मिलाएं] करते हैं|
2]लंबे समय तक माल को रखने की सुविधा नहीं[ lack of holding capacity]:-
 भारत में 86% किसान सीमांत एवं लघु प्रकार के हैं, उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है, और वे दबाव में आकर अपना माल बेच देते हैं|
3]परिवहन का अभाव[lack of transportation]
भारत में कई गांव रेलवे और अच्छी सड़कों से नहीं जुड़े हैं| इसके अलावा ग्रामीण प्रदेशों में  धीमी गति से चलने वाले वाहनों का प्रयोग होता है|
4] बाजार संबंधित सूचना का अभाव[lack of information about market];-
 शिक्षा की कमी एवं अन्य कारणों से किसानों को बाजार संबंधित सूचनाएं पर्याप्त रूप से नहीं मिल पाती  हैं| 
5] बाजार का अभाव[lack of marcket place]
भारत में औसत  रूप से प्रत्येक गांव पर मंडियों की काफी कमी है| जिससे किसान अपनी अनाजों को मंडी में बेच पाने में असक्षम है|राष्ट्रीय किसान आयोग के अनुसार  प्रत्येक गांव से 5 किलोमीटर की त्रिज्या पर एक मंडी होनी चाहिए| 
6] बिचौलियों की अत्यधिक संख्या[large no. of middleman] 
भारत में कृषि बच्चों के लेन-देन में 5 से 6 व्यापारी या बिचौलिए सम्मिलित रहते हैं, जिसके कारण लाभ का अधिकांश हिस्सा  बिचौलियों के पास चला जाता है| और प्रायः देखा गया है कि किसानों को अपनी फसल की अच्छी कीमत नहीं मिलती और उपभोक्ता को ऊंची कीमत पर फसल मिलती है|
                             उपर्युक्त के अलावा निम्न समस्याओं भी  है- 1]मंडियों में ग्रेडिंग सुविधाओं की कमी|
2] व्यापारियों द्वारा कई प्रकार  से किसानों का शोषण जैसे आढ़त पर कमीशन,तौलाई ,पल्लेदारी,गर्दा [dust] 
3]मंडी प्रशासन द्वारा कई प्रकार के कर  एवं शुल्क | [विपणन शुल्क,  ग्रामीण विकास शुल्क, निराश्रित  शुल्क,क्र्य कर] 
            यदि एक ही मंडी में बार-बार माल बेचा या खरीदा जाता है, या एक ही राज्य की दूसरी मंडियों में माल ले जाया जाता है| तो हर बार विप रण शुल्क  लगाया जाता है, इससे मल्टीपल पॉइंट लेबी आफ  मार्केट फीस [multiple point of levy market fees] कहते हैं

Crop insurence( fasal बीमा)

Need of crop insurence in india 
भारत की कार्यशील जनसंख्या का लगभग 49% भाग, अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है| और भारतीय कृषि का लगभग 60% भाग वर्षा पर निर्भर है| जो सामान्यतया अनिश्चित और  अनियमित रहती है, ऐसी स्थिति में लोगों की आय सामाजिक रूप से सुरक्षित करने की  आवश्यकता को समझा जा सकता है|
          भारत में यह msp और  उसके समानांतर अन्य प्रणालियां  केवल बाजार जोखिम के प्रति  सुरक्षा प्रदान करती है|उनकी आय को सुरक्षित नहीं करती है, यदि प्राकृतिक एवं अन्य कारणों से फसल बर्बाद हो जाती है |तो किसानों को एमएसपी आदि से कोई सुरक्षा नहीं प्राप्त हो पाएगी, और वह ऋण  में के जाल में फंस जाएंगे, जो भारत में किसानों की आत्महत्या का एक प्रमुख कारण है|
 उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि, भारत में फसल बीमा की आवश्यकता बेहद जरूरी है|
WTO भारत एवं कृषि सब्सिडिया 
WTO के अंतर्गत AOA [AGREEMENT ON AGRICULTURE] उत्पाद विशिष्ट  और गैर उत्पाद विशिष्ट  सबसिडियो की उच्चतम सीमा निर्धारित करता है,जो भारत जैसे राष्ट्रों के लिए कृषि गत जीडीपी का 10% है, जबकि जबकि विकसित राष्ट्रों के लिए यह सीमा 5% है| 
                 वर्ष 2013 में भारत के द्वारा nfsa(national food security actराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून) लागू किया गया था, जिसमें जनसंख्या के लगभग 67% भाग को[⅔] ... को एक कानूनी सस्ती दरों पर खाद्यान्नों को उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया |
               अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों को यह लगा कि  भारत ‘ पब्लिक  स्टॉक होल्डिंग   आप फूड  grains’  को बढ़ाने की कोशिश करेगा, और इस क्रम में वह 10% की सीमा को  लांघ देगा|
                   वर्ष 2013 के  बाली मंत्री स्तरीय सम्मेलन में  विकसित राष्ट्रों द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया,किंतु भारत को  पीस क्लॉज की व्यवस्था के अंतर्गत अस्थाई रूप से, स्थाई व्यवस्था के निर्माण तक 10% के सीमा को पार करने की छूट दे दी गई| भारत को यह कहा गया कि उसके हितों को ध्यान रखते हुए अगले मंत्री स्तरीय सम्मेलन में, स्थाई व्यवस्था का निर्माण कर लिया जाएगा किंतु अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था का निर्माण नहीं हुआ है|
भारत इस विवाद के समाधान के लिए निम्न बातों का प्रस्ताव कर रहा है-
1]यदि ऊंचे एमएसपी के माध्यम से सब्सिडी दी जाती है, उसे ग्रीन बॉक्स सब्सिडी माना जाए| 
2]यदि निर्धन किसानों की आर्थिक सहायता के लिए ऊंची एमएसपी पर खाद्यान्न खरीदे जाते हैं, इस प्रकार से दी जाने वाली सब्सिडी को  AMS  की गणना में शामिल न किया जाए|
3]WTO द्वारा प्रयोग की जा रही ERP[EXTERNAL REFERENCE PRICE ]की वर्तमान आधार वर्ष 1986-87 को बदला जाए|क्योंकि यह बहुत पुराना है|
  विकसित राष्ट्र भारत के इस प्रस्ताव को लेकर सहमत नहीं है, 

x

Featured post

जीवन हैं अनमोल रतन ! "change-change" & "win-win" {a motivational speech}

जीवन में हमेशा परिवर्तन होता ही रहता हैं |कभी हम उच्चतर शिखर पर होते हैं तो कभी विफलता के बिलकुल समीप |हमे अपने स्वप्नों की जिंदगी वाली स...