Agricultural Produce & Livestock Market Committee
STATE APMC ACT
कृषि राज्य सूची का एक विषय है, इसलिए कृषि वस्तुओं का वितरण का कार्य राज्य स्थानीय संस्थाओं के अधीन, संचालित होता है| इन संस्थाओं को APMC कहा जाता है, इनकी स्थापना STATE APMC ACT के अंतर्गत की जाती है|
इन संस्थाओं को लाने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह रहा कि किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य मिले., तथा उनके माल का लेनदेन एक नियामकीय वातावरण के अंतर्गत हो |
भारत में इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली कुछ इस प्रकार रही की किसानों के शोषण को अधिक बढ़ावा मिला| और कुछ अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो गई| जैसे की खाद्य वस्तुओं की महंगाई, कृषि बाजार का विखंडन , खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए सप्लाई चैन मैनेजमेंट की चुनौतियां आदि|
STATE APMC ACT से जुड़ी कुछ समस्याएं-
1]यह ऐक्ट इस बात का प्रावधान करता है कि कृषि वस्तुओं का प्रथम विक्रय APMC मंडियों में ही किया जा सकता है| इस प्रावधान के कारण, एपीएमसी मंडियों को एकाअधिकारी MONOPOLY की स्थिति प्राप्त हो जाती है| एकाअधिकारी स्थिति प्राप्त होने से सुधारों के लिए कोई दबाव नहीं बनता है|
2] यह एक्ट इस बात का प्रावधान करता है कि एपीएमसी मंडियों में, लाइसेंस वाले व्यापारी ही लेन देन कर सकते हैं| इस प्रावधान के कारण एपीएमसी मंडियों में कार्य करने वाले व्यापारी , अल्पाअधिकारी {OLIGOPOLISTIC कुछ लोगों का अधिकार} स्थिति में आ जाते हैं| और कार्टेल बनाकर की कीमतों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं |इससे किसानों को सही मूल्य नहीं मिल पाता है|
नोट-CARTEL-कुछ एकमत या एक राय वाले लोगों का गैरकानूनी समूह को कार्टेल कहते हैं|
लाइसेंस की एक शर्त यह भी है कि , संबंधित व्यक्ति की दुकान मंडी क्षेत्र में हो | इससे नए लोगों का आसानी से प्रवेश नहीं हो पाता है|
उपर्युक्त के अलावा लाइसेंस वस्तु एवं मंडी विशिष्ट होता है.. जैसे अनाज का लाइसेंस अलग लेना है, फल सब्जी का लाइसेंस अलग लेना है|
3]स्टेट एपीएमसी एक्ट निजी क्षेत्रों को [PRIVATE SSECTOR] मंडियों को स्थापना की अनुमति नहीं देता है| इससे प्रतियोगिता का स्तर कम हो जाता है|
4]यह एक प्रत्यक्ष विपणन [ Direct marketing] को अनुमति नहीं देता है, इससे बाजार संरचना बिगड़ रही है|
प्रत्यक्ष विपणन में उपभोक्ता या क्रेता सीधे किसानों से माल खरीद सकता है|
प्रत्यक्ष विपरण से किसानों को अधिक मूल्य मिलता है, जबकि उपभोक्ताओं को कम मूल्य देना पड़ता है|
दक्षिण कोरिया में कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष विपणन के लागू होने के बाद जहां एक और उपभोक्ताओं को पहले की तुलना में 20-30 % कम कीमत देनी पड़ रही है , तो वहीं दूसरी ओर किसानों को 10-20% ऊंची कीमत मिल रही है|
भारत में किए गए एक अनुसंधान से यह पता लगता है कि यदि फल और सब्जियों में प्रत्यक्ष वितरण लागू किया जाता है तो किसानों को उपभोक्ताओं द्वारा दी जाने वाली कीमत का 88 से 95.4% तक भाग मिल सकता है|
5] यह एक संविदा कृषि [contract forming] अनुमति नहीं देता है|
संविदा कृषि को अनुमति नहीं देने से, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को अच्छी गुणवत्ता का कच्चा माल उचित कीमतों पर पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करने में कठिनाई होती है,अर्थात उन्हें सप्लाई चैन मैनेजमेंट की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है|
संविदा कृषि से छोटे खेतों की समस्या का समाधान होता है और किसानों की आय भी सुनिश्चित हो जाती है|