16 May 2020

स्वदेशी आंदोलन...आत्मनिर्भरता का आंदोलन

प्रश्न :-स्वदेशी आंदोलन का वर्णन करते हुए इसका भारतीय जनजीवन पर पड़े प्रभाव का मूल्यांकन करिए|
उत्तर- बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 1905 में हुई|इस आंदोलन की निम्न विशेषताएं थी-
1)विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना
2) सरकारी स्कूलों अदालतों और उपाधियों का बहिष्कार करना| वस्तुतः बहिष्कार का सर्वप्रथम सुझाव कृष्ण कुमार मित्र ने अपनी पत्रिका संजीवनी में दिया था
3)आत्मनिर्भरता  हेतु राष्ट्रीय शिक्षा एवं स्वदेशी पर बल देना|
4) रचनात्मक कार्यों पर बल देकर सामाजिक सुधार करना, जैसे बाल विवाह ,दहेज प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाना |

आंदोलन की कार्य पद्धति


1) विभिन्न समितियों का गठन कर हड़तालओं का आयोजन करना| इसी क्रम में बारिसाल
कोलकाता में अश्विनी कुमार दत्त ने "स्वदेश बांधव समिति" का गठन किया, और लोगों को एकजुट किया इन समितियों द्वारा जन जागरण के क्रम में व्याख्यानो का आयोजन होता था| कार्यकर्ताओं को नैतिक प्रशिक्षण दिया जाता था| इस तरह जनता को साथ लेकर ब्रिटिश विरोधी कार्यक्रम चलाया गया
2) महिलाओं द्वारा धरना प्रदर्शन कार्यक्रम चला|
3) धार्मिक प्रतीकों एवं नारों का प्रयोग कर लोगों को संगठित किया गया इसी क्रम में पारंपरिक त्योहारो , लोक नाट्य मंचो का उपयोग करते हुएआंदोलन जनता तक पहुंचाया गया| वस्तुतः रक्षाबंधन गणेश महोत्सव शिवाजी महोत्सव आदि के माध्यम से लोगों को एकजुट किया गया|
4) निष्क्रिय प्रतिरोध द्वारा सरकार विरोधी आंदोलन चलाया गया जिसके तहत असहयोग, बहिष्कार, धरना प्रदर्शन आदि पर बल दिया गया|

प्रसार


1)स्वदेशी आंदोलन की विधिवत शुरुआत 7 अगस्त 1950 को कोलकाता के टाउन हॉल की बैठक हुई जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया बंगाल विभाजन के दिन 16 अक्टूबर उन्नीस सौ पांच को शोक दिवस एवं हिंदू मुस्लिम एकता दिवस के रूप में मनाया गया एकता प्रदर्शित करने के लिए लोगों ने एक दूसरे के हाथ में राखी बांधी |
2)यह आंदोलन बंगाल के बाहर भारत के विभिन्न भागों में फैला तिलक ने पुणे में तो लाला लाजपत राय ने पंजाब में सैयद हैदर रजा ने दिल्ली में एवं चिदंबरम पिलाई ने मद्रास में आंदोलन का नेतृत्व किया इसका आंदोलन अखिल भारतीय स्वरूप लिए हुए था|
3) तिलक का गणपति उत्सव एवं शिवाजी उत्सव न केवल महाराष्ट्र में बल्कि बंगाल में भी स्वदेशी आंदोलन का प्रमुख माध्यम था|

सामाजिक आधार


1) आंदोलन में विद्यार्थी मुख्य कर्ताधर्ता से उन्होंने सरकारी स्कूलों का बहिष्कार किया|
2) महिलाएं पहली बार घर से बाहर निकल कर जुलूस में शामिल हुए|
3) बंगाल के बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय की भागीदारी नहीं रही वस्तुतः अधिकांश उच्च एवं मध्य वर्ग के नेता आंदोलन से दूर रहे या बंगाल विभाजन का समर्थन किया जैसे ढाका के नवाब सलीमुल्लाह ने बंगाल विभाजन का समर्थन किया किंतु फिर भी अब्दुल रसूल लियाकत हुसैन शायद हैदर रजा जिससे प्रगतिशील मुस्लिम आंदोलन में शामिल है
4) किसान इस आंदोलन से अलग रहा आंदोलन में किसानों की मांगे शामिल नहीं थी वह जमीदारों के शोषण से पीड़ित थे|

मूल्यांकन योगदान;-


1) स्वदेशी आंदोलन में राष्ट्रवाद के वैचारिक आधार का विस्तार किया|
2) स्वदेशी आंदोलन दिन नई राजनीतिक पद्धतियां जैसे जन आंदोलन, बहिष्कार, धरना प्रदर्शन तथा रचनात्मक कार्यों को प्रारंभ किया यह नयी पद्धतियां,नई सदी के आंदोलन की मुख्य विशेषता बन गई|
3) इसी पर बल देने के क्रम में भारतीय उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन मिला| इसी क्रम में वस्त्र उद्योग, माचिस उद्योग, बंगाल केमिकल, जैसी स्वदेशी इकाइयों की स्थापना हुई| साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा परिषद की स्थापना हुई| जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रवादी शिक्षा का प्रसार करना था| इसी क्रम में बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना हुई जिसके प्रथम प्राचार्य अरविंद घोष थे|
4) स्वदेशी आंदोलन की सांस्कृतिक क्षेत्र में उपलब्धियां उल्लेखनीय रही, रविंद्र नाथ टैगोर जितेंद्र नाथ सराय, दक्षिणा रंजन एवं रजनीकांत सेन साहित्यकारों ने बांग्ला साहित्य का विकास किया रविंद्र नाथ टैगोर ने आमार सोनार बांग्ला नमक गीत लिखा जो आगे चलकर बांग्लादेश का गौरव गान बना|शिप्रा दक्षिणा रंजन ने ठाकुरमार झूठी (दादी मां की कथाएं) लिखी जो आज भी बच्चों को प्रेरित करती हैं|
5) चित्र कला के क्षेत्र में अविंद्र नाथ टैगोर, मुगल एवं राजपूत चित्रकला से प्रेरित होकर स्वदेशी चित्र कला का विकास किया तो नंदलाल बोस ने कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए कला की छात्रवृत्ति प्राप्त की|

सीमाएं-


1) आंदोलन में धार्मिक प्रतीक एवं नारों का प्रयोग किया गया, लगता है सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला
2)आंदोलन की कार्य पद्धति के संदर्भ में उदारवादी एवं उग्रवादी नेताओं के बीच मतभेद बढ़ा|इसके परिणाम स्वरूप 1907 में सूरत में कांग्रेस का विभाजन हो गया|

निष्कर्ष-


1) स्वदेशी आंदोलन भारत में आधुनिक राजनीति के आरंभ कर्ता के रूप में देखा जाता है ,इससे राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा प्राप्त हुई और आंदोलन नई प्रवृत्तियों संयुक्त हुआ |वस्तुतः नई सदी के साथ ही, नई रुचियां नए लक्ष्य नई पद्धतियां सामने आई | 
नई रुचियां थी राजनीतिक उदारवाद से राजनीतिक उग्रवाद की विचारधारा....  
नयी  पद्धतियां थी निष्क्रिय प्रतिरोध के तहत धरना प्रदर्शन ,बहिष्कार को अपनाना
 तो नया लक्ष्य था स्वराज की प्राप्ति करना|
(यह उत्तर डॉक्टर अजय यादव द्वारा गूगल वॉइस टाइपिंग से लिखा गया है)

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