29 September 2013

big ocean of inspiration /किन्तु पहुंचना उस सीमा में………..जिसके आगे राह नही!{for students}


कहते हैं सफल होना है तो सपने देखो मगर केवल सपने देखना पर्याप्त नहीं है,बल्कि आपके अंदर उसे पाने की तीव्र इच्छा एवं अदम्य साहस का होना जरुरी है|सूचना क्रांति के इस दौर में भले ही दुनिया तेजी से सिकुड़ती जा रही हो लेकिन सच तो यह है कि अधिकतर नवयुवक यह जानते ही नही हैं कि उन्हें करना क्या है,वे दूसरे को कुछ करता देख वैसा ही करने के लिए भेड़चाल में चल पड़ते हैं|भेड़चाल में चलने के बजाय यदि अपनी क्षमताओ का आकलन करते हुए लक्ष्य निर्धारित करें तो सफलता प्राप्ति सुनिश्चित है|सफलता कोई अजूबा नहीं बल्कि कुछ बुनियादी उसूलों का लगातार पालन करना है|

            एक आदर्श विद्यार्थी अपनी क्षमताओ का पूरा उपयोग करता है|उसे अपने कार्य के प्रति जूनून होता है|जुनून किसी व्यक्ति के अंदर कि वह उर्जा है जो सारी बधाओं को पार करके उसे लक्ष्य तक पहुचने का हौसला देती है|जूनून के साथ कार्य करने वाला विद्यार्थी प्रतिकूल परिस्थियों में भी दते रहने कि क्षमता विकसित कर लेता है|ऐसे विद्यार्थियों का सारा ध्यान सिर्फ कर्म पर होता है,भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमदभागवतगीता में कहा है-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥


तेरा कर्म करनेमें ही अधिकार है, उसके फलोंमें कभी नहीं । इसलिए तू कर्मफलकी चिंता न करते हुए लगातार कर्म करता चल।
               एक विद्यार्थी अपने मनमस्तिष्क में उन्ही विचारों को प्रवेश देता है,जो उसकी लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होने के साथ-साथ जीवन नियमन भी करते है ,अपने विचारों कि उत्कृष्टता सकारात्मकता एवं विचारों की तेजस्विता कभी खत्म नहीं होने देते हैं| ‘द पावर ऑफ माइंडमें स्वामी विवेकानन्द ने कहा है-
यदि जीवन में अभीष्ट सफलता चाहते हो तो एक आदर्श लो,उसका चिंतन मनन करो ,उसी उसीको अपने सपने में प् लो,उसी को अपना जीवन बना लो अपने मस्तिष्क मांसपेसियों,स्नायुतंत्र एवं समूचे अंग-प्रत्यंगोको इसी आदर्श व् विचार सेओत प्रोत कर दो अन्य विचारों को एक तरफ हटा दोफिर देखो सफलता कैसे तुम्हारे चरण चूमती है”|
                      एक विद्यार्थी जिस सफलता को प्राप्त करना चाहता है उन विचारों को अपने मन मनमस्तिष्क में स्थान देने के साथ-साथ वह दृढ़तापूर्वक टिका रहता है,इसके लिए वह सतत ब्रम्हचर्य का पालन करते हुए सूर्योदय के पूर्व जग जाता है अथर्व वेद में कहा गया है-
अद्यन्त्यसूर्य इव सुप्तानाम.द्विषताम् वर्च आद दे
अर्थात जो सूर्योदय तक नही जागते उनका तेज नष्ट हों जाता हैं |         

                         विद्यार्थी उठने के बाद चिंतन करता हैं की यह वक्त एक ताज़ा दिन की शुरुवात हैं ,देने वाले ने इस लिए दिया ताकि हम अपनी इच्छा से जिए चाहें तो गवाएं ,चाहे तो बेहतर बना दे,हम आज क्या कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि हमने इसके बदले में अपनी जिंदगी का एक दिन दिया हैं |आने वाले कल के बाद यह दिन हमेशा के लिए खत्म हों जायेंगा ,केवल उन कार्यों के निशाँ रह जायेंगे जो हमने किये |हमे नेकी की तलाश हैं बदी की नही |पाने की चाह हैं खोने की नही |कामयाबी का ख्याब हैं नाकामयाबी का नही|समय वह खजाना हैं जिसे किसी कीमत पर खोया नही जा सकता हैं'|
 जॉन एफ कनेडी ने कहा हैं
समय का उपयोग हमेशा औजार की तरह किजीयें  आरामदायक सेज की तरह नही

      एक आदर्श विद्यार्थी अपने लिए एक लक्ष्य निर्धारित करता हैं |लक्ष्य वे सपने हैं जिन्हें निश्चित समय में हाशिल करने की योजना होती हैं |लक्ष्य हमे सफलता की ओर प्रेरित करते हैं |बिना क्रिया कलाप के लक्ष्य उन पटाखों की तरह हैं जो फुस्स-फुस्स करके रह जाते हैं |हेनरी फोर्ड ने कहा था
बाधाएँ ऐसी डरावनी चीजे हैं जो लक्ष्य से आँखे हटने पर आपको दिखती हैं

     लक्ष्य हमेशा बड़ा बनाना चाहिये ,पाश्चात्य शिक्षाविद डेनियल एच वेर्नहम कहते हैं-
छोटी योजनाये ना बनाएँ,उनमे इंसानों के दिलो में जोश भरने वाला जादू नही होता ,बड़ी योजनाएं बनाये ,पूरी आशा के साथ उचाई की ओर बढ़े एवं काम किजीयें
        सफलता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं ,भगवान ने हमे मनुष्य जीवन इसलिए दिया हैं ताकि हम अपनी सफलता हांसिल कर सके यदि हम अभी तक सफलता से दूर हैं तो इसका कारण केवल इतना भर हैं की हमने अपनी आंतरिक शक्ति और उसकी अभिव्यक्ति के तौर तरीको को नही जाना हैं |किसी शायर ने कहा हैं
माना की तेरी दीदार के ,काबिल नही हूँ मैं |
मेरा शौक तो देख ,जरा इंतज़ार तो कर” ||

      अगर अपने लक्ष्य को हांसिल करने में देरी हों रही हैं तो इसका मतलब ये नही की हम हार गए |हारा हुवा व्यक्ति वह हैं जिसका आत्मविश्वास खो गया हैं |जैसे कैमरे से तस्वीर लेने के लिए फोकस करना पडता हैं वैसे ही हमे सफल जीवन के लिए लक्ष्य पर फोकस करना चाहिये |ओलम्पिक पदक विजेता ले.कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठोड़ कहतें हैं
जिंदगी बहुत मूल्यवान हैं जीवन में एक निश्चित लक्ष्य लेकर चलना चाहिये ,एवं उसे पाने के लिए जी जान से मेहनत करनी चाहिये ,हालाँकि रास्ते में बाधाएं आती हैं लेकिन बाधाओं और कठिनाईयों के वावजूद धैर्य से इस मार्ग पर चलते रहना चाहियें

          यदि विद्यार्थी को असफलता हाथ लगती हैतो इसका मतलब नही है कि उसमे अपने अपने लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता नही थी ,ऐसा हो सकता कि उसने अपने लक्ष्य का चुनाव तो सही किया हो लेकिन उस पर केंद्रित न हो लेकिन उसे निराश नहीं होना चाहियेयदि असफल कराने वाली छोटी-छोटी चीजों पर गौर किया जाय तो जीतने का जूनून यहीं से पैदा हो जाता है | कवि रामधारी सिंहदिनकरने कहा है-

मुश्किलें दिल के इरादे अजमाती हैं
स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती हैं
हौसला मत हारकर गिर ओ मुसाफिर
ठोकरे ही इंसान को चलना सिखातीं हैं

                असफलता का डर एक मनोवैज्ञानिक विकार  हैं जो इन्फेरियारिटी काम्प्लेक्स [INFERIORITY COMPLEX]से आता हैं |इसको मन से निकाल देने पर विद्यार्थी सिर्फ जीत के लिए आगे बढ़ता हैं ,किसी कवि ने ठीक ही कहा हैं

समर में घाव खाता हैं,
उसी का मान होता हैं |
छिपी उस वेदना में ,
अमर वरदान होता हैं |
सृजन में चोट खाता हैं,
छेनी और हथौरी से |
वही पाषाण कहीं मंदिर में ,
भगवान होता हैं|
                 हमे जीवन में सफल होने के लिए निरंतर सतत एवं सावधानी पूर्वक किया गया कार्य एवं छोटी छोटी बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं ,महान मूर्तिकार माइकेल एंजिलो ने कहा था-
छोटी-छोटी बातें परिपूर्ण बनाती हैं और परिपूर्णता कोई छोटी बात नही हैं“|

          परिस्थितियाँ कितनी भी विकट वा संघर्षपूर्ण क्यूँ ना हों पर वे इसिलए हैं ताकि हमारी शक्तियां और अधिक निखर सकें ,ऐसी सकारात्मक दृष्टी हमारे अंदर साहस और सृजनशीलता का चुम्बकत्व पैदा करती हैं ,जिससे कामयाबी अपने आप आकर्षित होतीहैं |परिस्थितियों का उपयोग करने कि सही सूझ-बूझ हों तो परिस्थितियाँ ना केवल हमारा सहयोग करती हैं बल्कि समुचित मार्गदर्शन भी करती हैं|
               एक विद्यार्थी को सफल होने के लिए सुनियोजित समय प्रबंधन करना पढ़ता हैं ,जिससे वह किसी कार्य को अपनी क्षमताओ के मुताबिक निर्धारित समय के भीतर पूरा करके तनाव वा परेशानी से बचता हैं |कार्य का बहुत ज्यादा दायरा फैलाने या टालने कि आदत से कार्य हमेशा अधर में लटका रहता हैं और तनाव बढ़ जाता हैं ,साथ ही सीमित समय में सारे कार्य कठिन भी हो जातें हैं |सुप्रसिद्ध लेखक मेल्त्जर ठीक ही कहते हैं
कठिन कार्य कुछ और नही वह आसान कार्य ही हैं ,जिसे आप सही समय पर नही कर पातें”|

               हमे अपनी इच्छा शक्ति और क्षमता के आधार पर अपनी प्राथमिकताएं तय करनी चाहियें |समय प्रबंधन एक व्यावहारिक अप्रोच हैं,किन्तु अच्छे विद्यार्थी समय प्रबंधन के लिए कुछ बातों पर अमल करते हैं
१]अगले दिन कौन सा कार्य करना हैं इसकी रुपरेखा रात को सोने से पहले बना लेतें हैं |इससे वे सुबह कि हड़बड़ी से बचते हैं ,साथ ही सारे कार्य आसानी से निपट भी जाते हैं |
२]अपने कार्यों का काम्बिनेसन इस प्रकार से बनाते हैं कि बिना दबाव उन्हें खुसी खुशी पूरा कर लेते हैं |
३]कार्य को कार्य समझते हैं ,यदि कसी वजह से पूरा नही हो पता तो वेवजह इमोशनल नही होते हैं|इससे वे अन्य कार्यों को पुरी क्षमता से कर पातें हैं |
४]कार्य का वेवजह दायरा नही फैलाते ,एक कार्य को पूरा करने के बाद ही अगला कार्य हाथ में लेते हैं |
चार्ल्स डार्विन ने कहा हैं
वह व्यक्ति जो जीवन का एक घंटा व्यर्थ गवाता हैं,वह जीवन का अर्थ कभी नही खोज पाता हैं”|


महान चीनी दार्शनिक एवं राजनीतिक चिन्तक कनफ्यूसियस [५५१-४७९ ई.पू.]जिनके चिंतन का प्रभाव चीन में आधुनिक काल तक रहा ,ने कहा हैं
मैं सुनता हूँ ………………..

मैं भूल जाता हूँ ……………..

मै देखता हूँ ……………….

मैं याद रखता हूँ …………

मैं करता हूँ ……………

मैं समझता हूँ ………..

..
              कुछ आधुनिक मनोवैज्ञानिक कहतें हैं कि हम याद रखते हैं केवल …..
२५%—-जो पढते हैं |
४०%—-जो देखते हैं |
२५%—-जो सुनते हैं |
५०%—-जो कहते हैं
६०%—-जो करते हैं |
९०%—-जो हम पढते सुनते ,कहते वा करते हैं |
       अच्छे परिणाम के लिए विद्यार्थी पढ़ी हुयी चीजों का शीघ्रता पूर्वक दुहराव करतें हैं ,आधुनिक शोधो से पता चला हैं कि हम २४ घंटो में पढ़ा हुवा सिर्फ १८% ही याद रख पातें हैं |याद किया हुवा ज्ञान बढाने के लिए दुहराव महत्वपूर्ण हैं |पहला दुहराव १० मिनट बाद दूसरा एक दिन ,तीसरा हफ्ते बाद ,चौथा महीने बाद ,तथा इसी क्रम में होना चाहियें |

           एक विद्यार्थी अपने चारो ओर होने वाले परिवर्तनों के प्रति सजग एवं जिज्ञासु रहा हैं ,नोबेल पुरस्कार विजेता रुडयार्ड किपलिंग कहते हैं
“I KEEP SIX HONEST SERVING MENTHEY TOUGHT ME ALL I KNEW,THEIR NAMES ARE WHAT AND WHY,WHEN,AND WHERE AND HOW AND WHO”

अच्छे विद्यार्थी सफल होने के लिए अपनी दिनचर्या में योग वा ध्यान को भी शामिल करते हैं |इसके लिए सबसे शक्तिशाली सुदर्शन क्रिया हैं|
             सुदर्शन क्रिया के अभ्यास से शरीर, मन, और आत्मा में सामंजस्य और संतुलन बढ़ता है। विश्व भर में विविध संस्कृतियों एवं परिवेश के आर्ट आफ़ लिविंग कोर्स के असंख्य सहभागी ऐसा अनुभव बताते हैं कि, सुदर्शन क्रिया के नियमित अभ्यास से जीवन में शांति, स्थिरता और रस का अनुभव करते हुये वे अपने आप से परिचित प्राप्त करते हैं। अनेक वैज्ञानिक शोध एवं अनुसंधानों में सुदर्शन क्रिया से होने वाले मानसिक और शारीरिक लाभों की पुष्टि की गई है।
सुदर्शन क्रिया से होने वाले लाभ
जीवन में रचनात्मक गुणों की वृद्धि
मन एवं विचारों में अधिक स्पष्टता एवं सकारात्मकता
तनाव में कमी
संबंधो में अधिक सामंजस्य एवं प्रेम का अनुभव
शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ एवं अधिक स्फूर्ति
जीवन जीने के प्रति उत्साह की वृद्धि
समस्याओं को आसानी से सुलझाने की शक्ति का अनुभव
             संस्कृत में विद्यार्थियो को हिदायत देता एक कहावत[श्लोक] हैं-
काक-चेष्टा, वको-ध्यानं ,श्वान-निद्रा तथैव च ,
            अल्पाहारी, गृहत्यागी विद्यार्थीं पंच लक्षणम् ।।

प्राचीन भारतीय ऋषि मुनि ध्यान द्वारा परमात्मा से साक्षात्कार करते थे ,इसके लिए वे मस्तिष्क कि अनंत शक्तियों का उपयोग करते थे |
             आधुनिक शोधो से मानव मन के दोप्रकार ज्ञात हुए हैंचेतन वा अवचेतन |चेतन या जागृत मन जिसका हम केवल एक से पन्द्रह प्रतिशत उपयोग करते हैं |इन्द्रिय नियंत्रण ,शरीर कि हलचल ,विचार एवं तर्कशक्ति ,बुध्हिमत्ता ,सही अवसर कि पहचान एवं उसका सही फायदा उठाना ,अच्छे-बुरे कि पहचान ,इच्छा कि उत्पत्ति आदि सब जागृत मन कि शक्तिया हैं |

                  ये सब मानवीय शक्तियां हैं जो केवल १५% हैं बाकी कि ८५%शक्ति अवचेतन मन के पास हैं ,जिसे हम दैवीय शक्ति,ईश्वरीय शक्ति या अलौकिक शक्ति भी कहते हैं |इन्द्रियो पर चेतन वा अवचेतन दोनों मनो का नियंत्रण होता हैं |टेलीपैथी यादशक्ति ,भावनाएं ,ज्ञान,प्रज्ञा ,सही अवसर खड़े करने कि क्षमता ऐसी कई शक्तियां अवचेतन मन के पास हैं ,इस मन के पास एक नैसर्गिक घडी वा कलेंडर भी हैं |इसके आलावा शरीर के स्वसंचालित तंत्र पर काबू .घाव भरना ,इच्छा-मृत्यु ,मनोबल आदि एवं आध्यात्मिक शक्तियां अवचेतन मन के पास होती हैं |
जागृत अवस्था में मस्तिष्क में १४-३५ तरंगे प्रति सेकंड होती हैं जिसे बीटावेव या मन की बीटा अवस्था कहते हैं ,और अर्द्ध-जागृत अवस्था में ७-१४ तरंगे प्रति सेकण्ड होती हैं जिन्हें अल्फ़ा वेव या मन कि अल्फ़ा अवस्था कहते हैं |
          अल्फ़ा अवस्था में कल्पनाशक्ति के माध्यम से जो भी सृजन या आदेश चेतन[जागृत]मन से अवचेतन मन को देते हैं वह बिना तर्क के स्वीकार कर लेता हैं और हमारे जीवन में ठीक वैसा ही अवसर खड़ा करता हैं |रोज सोने सेपहले अर्धनिद्रा कि अवस्था में ,अल्फ़ा अवस्था में,हम प्राकृतिक रूप से होते हैं [इसके आलावा RELAXATION वा MEDITATION से इच्छा अनुसार अल्फ़ा अवस्था में जाया जा सकता हैं ]हमे रोज अपने सकारात्मक विचारों वाले आत्मसुझाव [जैसा हम बनना चाहते हों ,जो करना चाहते हों }सोने से पहले दुहराना चाहियें |   
              आत्म् सुझावों में न ,नही या वास्तविकता से परें कुछ भी नही होना चाहियें |उदाहरण के लिए मैं बहुत फुर्तीला हूँ ,मैं सफल रहूँगा .तो आपका मन सफलता कि उम्मीद के लिए तैयार करता हैं |यदि आप सोंचे कि मैं असफल रहूँगा तो आपका मस्तिष्क आपके शरीर को कहता हैं कि कोशिश भी मत करो क्यूंकि सफलता कि कोई आशा नही हैं’|
              सोचने का मतलब मस्तिष्क में रासायनिक क्रियाएँ करना हैं ,जिससे शरीर सीधा जुड़ा होता हैं ,इसलिए हर वक्त सकारात्मक वा उच्च विचार रखें |सही विचार अपने दिमाग को लगातार देते रहना चाहिये नही तो गलत विचार अपने आप खाली दिमाग को भर लेंगे |एक विद्यार्थी कामयाब लोगों कि जीवनियो को पढ़ता हैं ,जिन्होंने कठिनाईयों के वावजूद सफलता हासिल किया हैं और अपनी कमियों को खूबियों में बदला हैं |
अंततः एक अच्छा जिज्ञासु खुद के प्रति ईमानदार ,हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेने वाला ,पूरे लगन , ध्यान एवं पूरी क्षमता से,नैतिक मूल्यों के साथ साथ बहुजन हिताय कि सदभावना से ,सतर्कता और सावधानी के साथ मंजिल के सफर पर निकल पड़ता हैं गाते हुए-
इस पथ का उद्देश्य नही हैं ,
श्रांत भवन में टिक कर रहना |
किन्तु पहुंचना उस सीमा में ,
जिसके आगे राह नही ||
{कामायनी -जयशंकर प्रसाद }
-अजय यादव द्वारा लिखित !
drakyadav@rediffmail.com

12 comments:

  1. सतत कर्मरत, जीवन भर हम,
    कहाँ ज्ञान, क्या निर्धारित है?

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  2. What an article Dr. Ajay!!! Power packed article. I would recommend it to all the students...Many Congratulations!!

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  3. Do Let me know the source of the title.."Kintu pahunchana us seema me ..jiske aage rah nahi"..Thank you..

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    1. श्रीमान निशीथ जी
      १]मैं डॉ अजय किसी दूसरे का आर्टिकल नही छापता हूँ |
      २]मेरा लिखा हुआ यह आर्टिकल २०१२ में दैनिक जागरण में तथा २००७ में इंदौर की प्रसिद्ध पत्रिका में छप चूका हैं |जिसका मैं विजेता रहा हूँ |
      ३] मेरे ब्लॉग पर लिखे गए किसी भी आर्टिकल का सोर्स {यदि कही से हैं }तो मैं लिंक दे देता हूँ |
      आपका -डॉ अजय

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  4. बहुत प्रेरणास्पद एवं विस्तृत आलेख , पुरा पढना तो संभव नहीं हुआ , जितना पढ़ा बहुत प्रेरक लगा .. आभार ..

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  5. माननीय अजय जी , आपका लेख प्रेरणादायक है परन्तु आपने गीता के श्लोक का जो व्याख्या दिया है उस से आंशिक रूप में सह मत नहीं हो पा रहा हूँ l कर्म करने पर आपका अधिकार है यह तो ठीक है परन्तु " कर्मफल पर आपका अधिकार नहीं ,इसीलिए फल की चिंता किये बिना काम करते जाओ ' l मेरा विचार है फल पर हमारा अधिकार है, कम या ज्यादा यह नहीं बता सकते ,यह तो देने वाले पर निर्भर है , विद्यार्थ परीक्षा कक्ष में क्या लिखे ना लिखे इस पर विद्यार्थी का अधिकार है l परीक्षा फल पर भी उसका अधिकार है परन्तु क्या और कितना फल मिलेगा इस पर उसका नियंत्रण नहीं l यह तो परीक्षक ही निर्णय करेगा l जो भी निर्णय होगा उस पर विद्यार्थी का अधिकार है .l दूसरी बात जब फल की चिंता नहीं करेगा तो वह काम क्यों करेगा ? फल पाने की चिंता ही काम करने के लिए प्रेरणा देती है .l इसीलिए फल की चिंता तो करनी ही चाहिए l उससे अधिक प्रेरणा मिलेगी l
    नई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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    1. आदरणीय सर जी ,सादर प्रणाम |
      एकदम ठीक यही मत मेरे पिता जी का हैं,जो उन्होंने इस लेख कों लिखने के दौरान ही मुझे समझा दिया था |उस दौरान तो मैंने इसमें परिवर्तन कर दिया था ,पर इस बार मैं थोडा लेट हों गया ,शिड्यूल किया हुआ पोस्ट वक्त पर छप गया |मैं आपसे विल्कुल सहमत हूँ |

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  6. सार्थक आलेख | माफ कीजिएगा, पूरा नहीं पढ़ पाया |

    आपके ब्लॉग को ब्लॉग"दीप" में शामिल किया गया है | जरूर पधारें और फॉलो कर उत्साह बढ़ाएँ |
    ब्लॉग"दीप"

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  7. प्रेरणास्पद सार्थक आलेख..

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  8. प्रेरक व संग्रहणीय पोस्ट

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