महात्मा गाँधी का जन्म २ अक्टूबर १८६९ कों
गुजरात स्थित कठियावाड़ प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर पोरबंदर नामक कसबे में हुआ था
|महात्मा गाँधी{१८६९-१९४८} कों भारत में जन आंदोलन का जनक कहा जाता हैं ,जन आंदोलनों से ही उन्हें ‘महात्मा’
की उपाधि प्राप्त हुई |इन्हें इस उपाधि से सम्मानित करने वाले आधुनिक भारत के महान
विचारको में से रविन्द्रनाथ टैगोर{१८६१-१९४१} भी थे | ‘बोस’ ने इन्हें
“राष्ट्र-पिता” कहा |आम आदमी उन्हें ‘बापू’ कहकर पुकारते थे |
गाँधी
जी रस्किन ,थोरयु और टालस्टाय जैसे पश्चिमी चिंतकों से जीवन भर बहुत प्रभावित रहे,हालाँकि उन्होंने
पश्चिमी सभ्यता की कुछ अच्छी बातो कों भारतीय चुनौतियों के हिसाब से बदला| वे
प्रबल आर्थिक विचारों से भी अच्छी तरह परिचित थे और मार्क्स की ‘हैंडबुक आफ
मार्क्सवाद’ स्मिथ की रचना ‘द वेल्थ आफ नेशन’ और स्नेल की ‘प्रिंसिपल आफ इक्विटी’ से प्रभावित थे | टालस्टाय
का प्रेम में विश्वास और ‘शरमन आन द माउन्ट’ की शिक्षा ,बाईबिल और न्यू टेस्टामेंट
तथा थोरयु की सविनय अवज्ञा की अवधारणा ने उन्हें बहुत प्रभावित किया |
कार्लमार्क्स और
जेरेनी बेन्थम की तरह गांधी जी ने कोई विचारधारा या वाद {ism} प्रस्तुत नही किया
हैं |गांधी जी ने समय समय पर जिन सामाजिक,राजनैतिक आर्थिक मामलो पर अपने विचार
प्रकट किये उन्ही कों हम गांधीवादी विचारों के अंतर्गत रखते हैं |गाँधी जी के
विचार.... एक दर्शन हैं ,एक नवीन जीवन प्रद्धति हैं |यह मानव जीवन की समस्याओ के
प्रति एक नवीन दृष्टिकोण हैं ,कोई वाद या सिद्धांत कत्तई नही हैं |वर्तमान युग में
जटिल समाजो की बाहुल्यता दृष्टिगत हैं ,इसी कारण से गाँधी जी के विचार वर्तमान युग
में सम्पूर्ण विश्व हेतु एक सर्वथा नूतन एवं उपयोगी दर्शन के रूप में स्वीकार किये
जाते हैं | वर्तमान परिपेक्ष्य में पुरे विश्व भर में गाँधीवादी विचारधारा कों
सामाजिक पुनर्निर्माण के संदर्भ में अत्यधिक महत्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय स्थान प्राप्त
हैं |गांधीजी की शिक्षा की सार्वभौमिक अपील का महत्व संयुक्त राज्य अमेरिका में
नागरीक अधिकार आंदोलन ,फिलीपींस में जनशक्ति ,साम्यवाद का शांति-पूर्वक तरीके से
अंत,म्यांमार में औंग सांन सू की के अदम्य साहस और फिलीस्तीनियो के इन्तिपुदासंघर्ष
की सफलता के रूप में देखा जा सकता हैं |अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन की उनकी तकनीक
कों मार्टिन लूथर किंग जूनियर ,बर्टरेंड रसेल,कोरिजिनो एक्विनो ,पेट्रा केली तथा
वकलव हैवेल जैसे प्रसिद्ध लोगों ने अपनाया |
भारत में जहाँ बड़ी संख्या में
श्रम-शक्ति मौजूद हैं ,फिर भी बेरोजगारी
फैली हैं ,ऐसे में महात्मा गांधी जी ने मशीनों के कम प्रयोग का सुझाव् दिया ,उन्होंने
ऐसे मशीनीकरण का समर्थन किया जो व्यक्ति की सहायता करें,न की व्यक्ति के जीवन में
हस्तक्षेप करें |जिससे प्रोफेसर अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्री भी सहमत हैं |
गांधीजी स्वतंत्र भारत में
रामराज्य की स्थापना करना चाहते थे |जिसमे राज्य की शक्ति का अधिकतम
विकेन्द्रीयकरण करने पर जोर दिया गया हैं |उन्होंने आस्टिन के सम्पूर्ण
प्रभुतासंपन्न राज्य की संकल्पना का विरोध किया और राज्य की सीमित प्रभुतासंपन्नता
का विचार रखा | गाँधी जी का एक प्रमुख लक्ष्य “राज्यविहीन समाज”की स्थापना थी |वे राज्य की
शक्ति में किसी प्रकार की वृद्धि के घोर विरोधी थे |उनका मत था की राज्य के
कारण व्यक्ति की अपनी विशेषताएँ नष्ट हों जाती हैं |उसके उन्नति के मार्ग
अवरुद्ध हों जाते हैं |वे प्रत्येक गाँव कों एक पूर्ण तथा स्वतंत्र गणतन्त्र बनाना
चाहते थे |
गाँधी जी के सपनो के भारत की मूल आत्मा ग्रामो
में निवास करती हैं |उनकी इस योजना में ग्राम कों एक मूल प्रशासनिक इकाई में
सम्पूर्णताओ के साथ विकसित करने पर विशेष बल दिया गया हैं |इसके अतिरिक्त
कर्तव्यों से परिपूर्ण धर्म तो उनकी नई योजनाओं का प्राण होता था |इस आधार पर कहा
जा सकता हैं की साम्प्रदायिकताविहीन, व्यक्तिप्रधान समाज के साथ साथ ग्राम
स्वराज्य के विकास कार्यक्रम कों लागू करके भारत में रामराज्य की स्थापना का
स्वप्न निश्चित रूप से उनकी सामाजिक
पुनर्निर्माण की योजना का अंतिम लक्ष्य था |
वर्तमान परिपेक्ष्य में गाँधीवादी सामाजिक पुनर्निर्माण की योजना भारत की
उन्नति प्रगति के लिए सर्वथा उपयुक्त और महत्वपूर्ण सिद्ध हों सकती हैं |इस योजना
की प्रशंसा पुरे विश्व में विद्वानों द्वारा की जाती रही हैं |यह एक आदर्श योजना
अवश्य हैं,किन्तु व्यावहारिक नही क्यूंकि इस योजना का क्रियान्वयन बहुत ही कठिन
हैं |रामराज्य और ग्राम-स्वराज्य का लक्ष्य काफी महान और उच्च हैं ,किन्तु इसे
प्राप्त करना काफी दुष्कर कार्य हैं |इस योजना की सबसे बड़ी विशेषता यही हैं की
इसमें न्याय और सत्य पर आधारित एक ऐसी स्वराज्य व्यवस्था का वर्णन किया गया
हैं,जिसमे अधिकारों के बजाय कर्तव्यों पर ज्यादा जोर दिया गया हैं |यह सिद्धांत
सम्पूर्ण विश्व एवं मानवता कों शांति,अहिंसा तथा कल्याण का एक नया संदेश तो प्रदान करता ही हैं ,साथ ही नए सिरे से समाज
की रचना हेतु एक सर्वथा नूतन एवं अनुपम दृष्टिकोण भी प्रदान करता हैं |
गाँधी जी एक सच्चे आध्यात्मिक मनुष्य थे
,उनके विचारों एवं व्यवहारों में अर्थात
उनकी कथनी एवं करनी में कोई भेद नही था |गाँधी जी साधन और साध्य {mean and ends}
दोनों कों एक ही ढंग से निश्चित करने के प्रबल समर्थक भी थे |उनका प्रबल विश्वास
था की अच्छे नैतिक साध्य के लिए अच्छे नैतिक साधनों का प्रयोग आवश्यक हैं |गाँधी
जी सत्य अहिंसा भातृत्व एवं मानवता के महान और अनन्य पुजारी रहें हैं |गाँधी जी,सार्वभौमिकता
की आज की आवश्यकता से परीचित थे और उसके अग्रदूत थे |वे सांस्कृतिक बाहुलवाद का
आदर करते थे |उनकी इस मान्यता ने गाँधी जी कों हेगेल की दृष्टि में युग पुरुष
बनाया |
गांधी जयन्ती बधाई हो...महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी को नमन
ReplyDeleteजो जनता के लिए लिखेगा, वही इतिहास में बना रहेगा- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः28
मानवता के उत्कृष्ट पक्ष के प्रति सहज सत्यनिष्ठा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख .
ReplyDeleteनई पोस्ट : पुरानी डायरी के फटे पन्ने
सादर प्रणाम ,
ReplyDeleteहृदय से आभार |
बेहतरीन आलेख..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया उम्दा आलेख !
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
प्रिय अजय जी बेहतरीन आलेख ..अच्छी जानकारी ...प्रिय बापू और प्यारे लाल 'लाल बहादुर शास्त्री जी को नमन
ReplyDeleteअच्छे विन्दुओं पर प्रकाश डाला आप ने ...उपयोगी
भ्रमर ५
गांधी जयंती पर सारगर्भित आलेख.
ReplyDeleteरामराम.
sundar nd sargarbhit ...
ReplyDeletebehtareen aalekh
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
Deleteस्वागत हैं आपका |