3 October 2013

"love letters" / प्रेम-पत्र(२)

                     प्रेम-पत्र(२)

हें प्रियतम !

तुमसे अपने प्रेम कों भला कैसे परिभाषित करूं?कुछ चीजों कों व्यक्त करने के लिए शब्द ही कहाँ बने हैं ?जब भी तुम्हारी आँखों का दीदार होता हैं ,उनमे छलकता असीमित प्रेम तारों-सितारों और हीरो-मोतियों से भी ज्यादा खूबसूरत ,चमकदार एहसास देते हैं | आँखे मिलते ही सम्प्रेषण हेतु शब्दों की जरूरत ही नही रहती |चेतना विलीन हों जाती हैं |याद हैं ,न कल की शाम जब हम –तुम यमुना तट पर फूलो की घाटी में बैठे थे ,बदरा आयें ,उमड-घुमड़ और  बरस गयें...पता हीं नही चला |चेतना लौटी तो हमने खुद कों भीगा पाया |हम-दोनों कों ऐसा लगा जैसे गहरे मेडिटेशन या समाधी से उठे हों |शायद राधा-कृष्ण के ऐसे ही अनन्य प्रेम ने उनकों  महान योगी निर्मित किया |

 तुम कहती हों न की ‘हमारा अस्तित्व ,वजूद ही प्रेम हैं ,हम प्रेम में पैदा हुए ,प्रेम में बड़े हुए ...यौवन तक पहुंचे’| प्रेम की तरंगे मुझमे तब उठी ,जब मैं तुमसे पहली दफा मिला.....ईश्वर भी अदभुत हैं,उसने हमारे दैवीय गुणों कों निखारने के लिए ,अदभुत बनाने के लिए एक दूजे का चुनाव किया|मुझे लगता हैं,शायद इसीलिए ईश्वर इंसानों कों जोड़ो में बनाता हैं ,सारी बायोकेमिस्त्री एक जैसी रखता हैं,वह बहुत अदभुत  केमिस्ट हैं |कुछ केमिकल{हार्मोन} ऐसे बनाता हैं ,जो एक दूजे में प्रेम,लगाव,आकर्षण पैदा करते हैं |कुछ भी हों मुझे अब प्रेम की आदत लग चुकी हैं |यह प्रेम नित नई नई नियामतो से परिचय करा रहा हैं |जिधर से भी ,गुजरता हूँ लगता हैं पथ पर  खुसबू बिखर रहीं हैं  |हाट-बाजार ,सड़क ,मोड़,चौराहें हर जगह सिर्फ प्रिय वस्तुएं या लोग ही दीखते हैं |चेहरे की लालिमा,रंग सुर्ख हों गए हैं |सजगता बढ़ गयी हैं |जागरूकता बढ़ गयी हैं |
                                    - प्रेमी   


     
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12 comments:

  1. बड़ा ही सुन्दर, प्यारा व कोमल प्रेमपत्र

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  2. बहुत सुन्दर प्रेम पत्र है... :)

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  3. अरे वाह बहुत सुन्दर प्रेम पत्र है अजय जी :)

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  4. बहुत ही नाजुक सा.

    रामराम.

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  5. बहुत ही भावपूर्ण प्रेम-पत्र

    आभार

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  6. बहुत सुन्दर...कोमल....

    अनु

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. आत्मिक ... मन को छूने वाला प्रेम पत्र ...

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