दिसम्बर मास की उस रविवार को शाम के
लगभग ९ बजे का वक्त था ,हमेशा कि भांति OPD अभी खुली थी |इक्का दुक्का
…मरीज ,तीमारदार आ जा रहें थे |सिस्टर ने अंतिम पेशेंट बुलाया
“इंजी.अनुराधा ठाकुर”!मैं चौंक पड़ा …! “अन्नू को क्या हुआ?”…तभी अनुराधा
की बहन सीमा केबिन में दाखिल हुयी “दीदी आई थी ..!बाहर लंबी पंक्ति देखकर
आपके घर गयीं हैं ,सिस्टर शीबा से उन्होंने चाबी ले लिया हैं |आप जाओ मैं
स्कूटी लायी हूँ , घर चली जाउंगी, दीदी को छोड़ दिजियेंगा”मैंने कहा “कभी
नही” ! “IPS अनुराधा ठाकुर ….सैलूट यू सर”! सामने आते ही अटेंशन की मुद्रा
में उसने तगड़ा सैल्यूट किया | अन्नू को इस रूप में देखकर मेरे नयनो से आँसुओ की धार टपक पड़ी ,उसी शालीनता और कृतज्ञता से मैंने भी उसको
सैल्यूट किया |मेरी आवाज और लहजे में तेजी आ गयी थी ,मैं खुशी से पागल हों
रहा था …इससे पहले होश खोकर गिरता कि …अन्नू ने मुझे बाँहों में भर लिया
था”!
अतीत बड़ा लुभावना होता हैं चाहे वह कड़वा ही क्यूँ न रहा हों,संघर्ष की जद्दोजहद, मूल्यों के बिखरने की पीड़ा ,बदलाव की आतुर प्रतीक्षाए बड़ी लुभावनी लगने लगती हैं,जब हम कुछ हांसिल कर लेते हैं|जनवरी २००८ का वह दिन मुझे याद आ गया जब पुलिस उपाधीक्षक नीलिमा भट्ट की एक काल आई थी “डॉ साहेब !मैंने बड़ी बुरी कंडीशन में एक लड़की को रेस्क्यू किया हैं ,उसे आपके हॉस्पिटल भेजा गया हैं ! प्लीज़ पहुचते ही थोड़ी तत्परता दिखाना”…ये भी कोई तुम्हारे कहने कि बात हैं ..मैंने कहा|नीलिमा भट्ट पुलिस में PPS अफसर बनने से पहले बड़ी निच्छल,निर्दोष और मासूम व्यक्तित्व की मल्लिका थीं.किन्तु जब से पुलिस में ट्रेनिंग ली हैं इन खूबियों वाले लोग उनसे खौफ खाते हैं ,उन्होंने इंटर के दिनों में हमारी क्लासेज शेयर किया था ..|पुलिस की एम्बुलेंस हॉस्पिटल कैम्पस में मुड़ते ही वार्डबॉय और पूरा स्टाफ सक्रीय हों गया …मरीज को सीधा ICU में ले जाया गया | “एकदम जीर्ण –शीर्ण वस्त्रों में ,असहाय सी ,कृशकाय ,हड्डियों के धाचेनुमा आकृति सी ,मिटटी के तेल से भीगी” कन्या को देखकर मुझे बहुत क्षोभ हुआ !दहेज प्रताड़ना/हत्या कि कोशिश के प्रतिदिन आने वाले केसों में से एक था |इस महिला की हालत बहुत गंभीर थी,किन्तु चलती साँसे बता रहीं थी कि बड़ी जीवट वाली स्त्री हैं |
हमारा हॉस्पिटल होलिस्टिक तरीके से इलाज
करता हैं ,और मेरे हॉस्पिटल में हर विधा का
{होमियो,आयुर्वेद,यूनानी,फिजियोथैरेपी,अवचेतन मन की
प्रोग्राम्म्मिंग,सामूहिक प्रार्थना }का विभाग निर्मित हैं|सबसे बड़ा विभाग एलोपैथ और सर्जरी का हैं यहाँ
कार्य करने वाले जिम्मेदार डॉ, सिर्फ डॉ बनने के लिए डॉ बने हैं उनका
लक्ष्य हर हाल में,हर संभव नैतिक तरीके से अपने मरीज की मदद करना होता हैं |
भारत सरकार की कृपादृष्टि से सेना व पुलिस के अफसर अक्सर आते थे ,और
ज्यादातर मेडिकोलीगल केस आते थे |
रेस्क्यु की गयी लड़की का नाम अनुराधा
ठाकुर था ,उसके परेंट्स ने बताया ..” दिल्ली NIT में CIVIL ENGINEERING
गोल्ड मेडलिस्ट हैं,मेरी बेटी! जिसे चंद कागज के टुकडो कि खातिर मिटटी का
तेल डालकर जिन्दा जलाने की कोशिश की गयी …भला हों पड़ोसियों का जिन्होंने
मामला भांपकर पुलिस को खबर “वुमेन सेल”को फोन कर दिया और १० मिनट में पुलिस
आ गयी”……..|
मैंने नीलिमा भट्ट से मिलने का समय
माँगा और अनुराधा के माता-पिता जी के साथ थाने पहुंचा ,थाने के डम्प-यार्ड
में अनुराधा के दहेज का सामान देखकर मैं चौंक पड़ा,लगभग हर भोग-विलास,सुख-सुविधा की छोटी
–मोटी चीज ,वर्तमान मार्केट में सारे सामानों कि कीमत कम से कम २५ लाख कि
रहीं होंगी |अनुराधा कि माँ ने कहाँ “शादी के लिए, शादी के डेट तय होने से
पहले , पहले लड़के पक्ष वाले एक जोड़े में विदा कर ले जाने कि बात कर रहे
थे ,हमे कुछ नही चाहियें,ऐसा कहते थे पर जैसे जैसे शादी कि डेट नजदीक आती
गयी उनकी मांगे बढती गयीं .शादी हों गयी .!..इतने साल बाद …..अब उनको सफारी
खरीदने के लिए हमारो और से ६ लाख चाहिए थे ..जिसको अनुराधा ने मना कर दिया
था क्यूंकि उसे पता हैं कि हम अभी भी उसके शादी का कर्ज भर रहे हैं” |
“इतना पढ़ लिख कर अनुराधा ने नौकरी क्यूँ नही कि ?”नीलिमा ने पूछा |
“रिलायंस ने उसको असिस्टेंस मनेजर की पोस्ट आफर किया था” ,किन्तु उसके परिवार वालो…,खासकर पति ने नौकरी करने का विरोध किया”अनुराधा के पापा बोले !
मैंने नीलिमा से उनकी मदद करने का सिफारिस किया और वापस आ गया |
समय के साथ साथ अनुराधा कि हालत में सुधार हों रहा था ,मानसिक रूप से वह अब भी बहुत विचलित थी …बालो को बिखेरे रहती थी व जीवन के प्रति उदासीन थी |अनुराधा कि पूरी जिम्मेदारी मैंने सिस्टर शीबा को सौंप दिया..सिस्टर शीबा मेरे अस्पताल की “मदर टेरेसा” कहीं जाती थी |उनकी आवाज़ और लहजें में जबर्दस्त healing powerहैं |मेरी दवाओँ कि तुलना में उनकी वाणी में कई गुना ज्यादा लोगो के कायाकल्प कि क्षमता हैं ,जबकि वे महज B.Sc NURSING कि डिग्री होल्डर हैं |सिस्टर शीबा का ओज,तेज,कार्य करने का ढंग पुरे अस्पताल को प्रेरित करता हैं उर्जा देता हैं ,वे महज हेड नर्स ही नही ,बल्कि ममतामयी माँ भी हैं |हर दिन बाईबिल का पाठ करतीं हैं और सेल्फ हेल्प कटेगरी की हजारो पुस्तकों की लाईब्रेरी भी उनके पास हैं ,उन्ही से मेरी अच्छी किताबे पढ़ने कि आदत विकसित हुयी |
अनुराधा धीरे धीरे सही हों रही थी,जब उसने सुना की जिस साल उसने B.TECH पूरा किया था उसी साल हमने मेडिकल पूरा किया था तो,हमउम्र होने के नाते बातचीत में थोडा खुलने लगी थी ,अब मैं उसे जीवन रेखा में पुनः नई उर्जा के साथ वापस लौटाना चाहता था ,अनुराधा अपने अस्तित्व को स्वीकार ही नही कर पा रही थी जिसके फलस्वरूप वह खुद को प्रेम भी नहीं कर पा रहीं थी |अच्छा स्वास्थ्य खुद के प्रेम करने से ही शुरू हों सकता था ,मैं लगातार उसे उसकी सकारात्मक बातों को ,उसकी शैक्षणिक सफलताओं कि कहानी उसके सामने दुहराता रहता |धीरे धीरे उसकी खुद से शिकायत कम होने लगी ,एक दिन मैंने उससे कहा…..
“अनु ! हम सभी के उद्गम का श्रोत ईश्वर हैं ,जो कि हमेशा नायाब और सम्पूर्ण चीजों का निर्माण करता हैं …..यदि तुम खुद में कोई कमी निकाल रहीं हों तो इसका तात्पर्य यह हैं कि तुम उस सर्वशक्तिमान की इन्सल्ट कर रहीं हों ,दोष तो खुद हम पैदा करते हैं इस दुनिया में आने के बाद |एक बच्चे के रूप में हमारा जीवन कितना सरल होता हैं …..पूरे ब्रम्हांड में कोई दूसरी अनुराधा ठाकुर नही हों सकती ,पूरे ४० बिलियन में से एक कोई ऐसी मिलेंगी जिसके थोड़े थोड़े गुण तुमसे मिल सकते हैं |राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी केन्द्र{NIT} की अभियांत्रिकी स्नातक,स्वर्ण पदक विजेता अनुराधा को अबला बनना हैं या सबला इसका निर्धारण सिर्फ अनुराधा ही कर सकती हैं |
अनुराधा को हॉस्पिटल से तो डिस्चार्ज तो कर दिया किन्तु वह लगातार मेरे टच में रहीं ,उसकी जिद पर मैंने उसे मोटर साईकिल और कार चलाना सिखाया |उसने बुलेट खरीद ली थी और अक्सर मस्ती में गाडी चलाती थी |उसके परेंट्स उसमे इस आये परिवर्तन के प्रति मुझे जिम्मेदार मान रहे थे ,और कृतग्य भी थे |
मैं अपने जाब में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हों गया ,एक दिन अनु का फोन आया “डॉ.अब मैं सिविल की तैयारी कर रहीं हूँ ,मुझे पुलिस अफसर बनना हैं”मैंने उसका खूब हौंसला अफजाई किया ,|एक दिन सरदार बल्लभ भाई पटेल पुलिस एकेडमी,हैदराबाद से लेटर आया कि मुझे किसी फक्संन में इनवाईट किया गया हैं ,मैंने ध्यान नही दिया ….२ साल बाद आज सुबह नीलिमा भट्ट का फोन आया “अजय ! वो छोकरी याद हैं न !.. “अनुराधा”अरे यार वो IPS हैं”…… “आज क्राईम कंट्रोल मीटिंग में उसे देखा उसने बड़े सम्मान से मुझे बुलाया और तुम्हे भी याद कर रहीं थी” उसे तुम्हारे जिले की कमान दी गयी हैं |मैंने कहा “अच्छा !ठीक हैं ,दिल में कहीं अनुराधा के लिए बहुत सम्मान था ” |आज ही सुबह………………………………. नीलिमा ने बताया था !और शाम को अस्पताल के बाद वो मेरे घर पर इन्तेजार कर रही थी |
खुद को पूरी तरह होश में लाकर मैंने उससे पूछा “तुम्हारे ससुराल वालो का क्या हुवा?”मैं सबको माफ कर दिया”और पति से ३ साल पहले ही तलाक ले लिया था”तुम्हे नही पता क्या?? वों मेरे आँखों में झाकती बोली “अ..अब क्या इरादा हैं ?अनु” !…..’फिलहाल तो एक क्राईम कर ही लूँ…कई सालो से यह करने के लिए तडप रही थी ….सोंचा था ,पुलिस अफसर बनकर पहली गिरफ्तारी तुम्हारी करूंगी’.कहकर उसने मेरे हाथ पकड लिए, और धीरे से दबा दिए और आप तो जानते हैं भारतीय पुलिस से कौन नही डरता ??
-a story written by @ajay yadav.
बहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर प्रस्तुति.!
ReplyDeleteनवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
RECENT POST : पाँच दोहे,
सादर प्रणाम |
Deleteनवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|
bahut sundar.....navratri ki dhero shubhkamnayein apko
ReplyDeleteसादर प्रणाम
Deleteनवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|
अजय
बहुत प्रेरणात्मक ....
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !!
सादर प्रणाम
Deleteनवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|
अजय
Fabulous Story Dr.Ajay...shubh navaratri...!!
ReplyDeleteप्रिय अजय जी सचमुच बहुत सुन्दर कहानी .प्रेरक .
ReplyDeleteलगता है आप से जुडी सत्य कथा ? बधाई
फिर तो एक क्राइम कर ही लूं ...भारतीय पुलिस से कौन नहीं डरता ....बड़ा अच्छा लगा
भ्रमर ५
आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं , http://bhramarkadardpratapgarhsahityamanch.blogspot.com/
भ्रमर५
सादर प्रणाम |आपकी पारखी नजरो से कब कुछ छुप सका हैं ?भ्रमर जी |
Deleteक्या बात है अजय भाई कहानी और कविता दोनों सशक्त सन्देश वाहक हैं। बधाई।
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
Deleteबढ़िया भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
Deleteबहुत ही सुन्दर कहानी .. शुरू में तो लगा कि सत्य बयां किया जा रहा हो ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (07.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें
सादर आभार ,
Deleteसर जी |
मेरी कहानियों में पाठकों कों ,लगता हैं की मुझसे जुड़ी घटना हैं |उदाहरण के लिए “रेखा मैडम " कहानी में मैंने एक आदर्श शिक्षक कों गढा था ,ये सत्य हैं की इसी करेक्टर से मिलती जुलती मेरी एक शिक्षिका भी थी |बाद में प्रेम पर मैंने “तू मेरी जिंदगी हैं….{कथा लेखन -डॉ. अजय यादव }" लिखा तो लोगों ने कांग्रेट्स करना शुरू क्र दिया था जबकि हकीकत यह हैं की अभी मैंने अपना शैक्षिक कार्यक्रम भी पूरा नही किया हैं ,जिसमे कुछ वर्ष बाकी हैं ....|आप सबका प्रेम ,आशीर्वाद ......और मार्गदर्शन बना रहे -“डॉ अजय की हिंदी कहानिया"
जिंदगी की कड़वी सच्चाई और लड़ाई का एक सुखद अंत ...बहुत खूब
ReplyDeleteफिर वही भूली कहानी याद आई .पहली बार इसे पढ़कर तो सत्य ही मान लिया था .आपने फिर से याद दिला दी ,अजय जी ,
ReplyDeleteसुखद अंत की कहानी ही मुझे अच्छी लगती है
ReplyDeleteसांस रोके पूरा पढ़ गई
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
काश ऐसी कहानियाँ सच हो पातीं। कोई लड़की जो ससुराल वालों की प्रताड़ना का शिकार होती रहे और जलाये जाने की दहलीज से वापस लौटकर आई.पी.एस. तक का सफर तय कर ले तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं।
ReplyDeleteकहानी ओर कविता दोनों ही सार्थक सन्देश ओर पथ पे अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं ...
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणात्मक अजय भाई .
ReplyDelete..............बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !!
@ संजय भास्कर