||तीन दरवाजो की विधि ||
इलाहाबाद और नैनी कों
जोड़ने के लिए जो नया पुल बना हैं ,बहुत ही खूबसूरत हैं |पुल के नीचे सीडियां बनी
हैं ,जिनपर खड़े होकर शाम के समय प्रकाश में यमुना कों निहारना बहुत ही खूबसूरत
लगता हैं |मन निर्मल हों जाता हैं ,अलौकिकता और प्रकृति से सानिध्य का अजीब समन्वय
हैं ,यह सरस्वती घाट|सरस्वती घाट सैकड़ों प्रेम कहानियों का साक्षी भी हैं,किद्वंती
हैं की कोई किसी कों बेइंतिहा प्यार करता हैं तो एक बार {जोड़ा} इस घाट पर जरुर आता हैं
,उसको यहाँ माँ यमुना का अक्षय आशीर्वाद मिल जाता हैं |
आज डॉ सिन्हा ,नीली जींस
और टी-शर्ट में किसी मोटिवेटर की भाति यमुना माँ कों साक्षी मानकर हमसे विभिन्न
मुद्दों पर मुखातिब थे |
“प्यारे खोजियों ! यह शरीर मंदिर हैं ,हम सब
ईश्वर हैं और हर विचार प्रार्थना हैं ,हम सुबह से शाम तक जो भी विचार करते हैं ,सब
प्रार्थनाएं ही तो हैं |हमारे अंदर पल-पल प्रार्थनाएं उठती हैं”|
इतना कह कर एक गहरी सांस लेते हुये उन्होंने हम सबको
स्नेहिल नजरो से देखा |
“हमे अपनी प्रार्थनाए
सजग होकर चुननी हैं |प्रार्थनाए...... ईश्वर के प्रति हमारे प्रेम की सच्ची
अभिव्यक्तियाँ हैं |उनमे किसी भी तरह का दोष नही होना चाहिए ,क्रोध,नफरत,या कोई भी
नकारात्मक भावना नही होना चाहिए ,क्यूंकि हमारी प्रार्थनाओं कों ईश्वर तुरंत स्वीकृति{तथास्तु/granted} प्रदान कर देतें हैं| इसलिए हमे हमारी प्रार्थनाओ के अनुसार फल
मिल जाता हैं” |
डॉ सिन्हा रुके ,यमुना में
एक मोटर बोट लहरों कों चीरकर जा रही थी ऐसा लग रहा था की समस्त प्रकाश एकत्रित
होकर ,प्रकाश की झालरों की तरह एक रेखा में गतिमान हों गया हों |
“जिस तरह हम अपने कपड़ो से मैल
निकाल कर उन्हें साफ़ करते हैं ,उसी प्रकार हमे अपने मन से मैल निकाल कर उसे साफ़
,पवित्र बनाना हैं |तरह-तरह के सोंच वाले लोगों से लगातार बात व्यवहार करते हुए इस
जगत में ऐसा व्यवहार सतत अभ्यास से ही आ सकता हैं” |
कोई प्रश्न ?
मैंने पूंछा..”कभी कभार मुझे क्रोध आ जाता हैं,जिसपर मेरी प्रतिक्रिया
उचित नही रहती ,बुद्धि विवेक पता नही कहा चला जाता हैं”|
डॉ सिन्हा ने बेहद आत्मीयता से कहा –
“यदि आपको कोई क्रोधित करता हैं,और उस पर प्रतिक्रिया देने जा रहे हैं
,तो प्रतिक्रिया देने से पहले सौ तक गिनती गिने,अपने शब्दों कों सावधानी से चुनिए”|
“जी .....गुरु जी” !मैं बोला |
प्राचीन साधू-महांत्मा अपने शब्द तब तक नही बोलते थे ,जब तक वे उन्हें
तीन दरवाजो से बाहर नही निकाल लेते थे |
पहला दरवाजा {प्रवेश द्वार }
क्या वे शब्द सच्चाई पर आधारित हैं ?
यदि उत्तर नही तो...........-बात खत्म {स्टॉप}
यदि हाँ तो ...
दूसरा दरवाजा ..
“क्या वे शब्द सही में आवश्यक हैं”!
यदि उत्तर आया नही तो ...........-बात
खत्म {स्टॉप}
यदि हाँ तो ....
तीसरा दरवाजा ...
क्या वे शब्द नम्रतापूर्ण हैं ?
यदि उत्तर हाँ तो ...
वे अपने होठो से उन शब्दों कों निकाल कर दुनिया तक पहुंचा देते थे |
पुत्र ...इस वक्त लोग या ब्रम्हांड की कोई भी वस्तु ठीक वैसीही हैं
,जैसी उसको होना चाहिए |हमे सिर्फ लोगों की मदद करनी हैं की लोग अपनी काबिलियत के
अनुसार सही जगह पहुँच सकें ,उन पर क्रोध नही करना हैं”
आजतक डॉ सिन्हा की सैकड़ों कक्षाओ में यह कक्षा भी मेरे जीवन की अनमोल
धरोहरों में से एक हैं |
-अजय कुमार की कलम से |
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteस्वस्थ्य और सफल दीर्घायु हो
नई पोस्ट : रावण जलता नहीं
ReplyDeleteनई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
रोचक और प्रभावशाली कथा
ReplyDeleteबहुत सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है- मेरे ब्लॉग में भी समल्लित हों
पीड़ाओं का आग्रह---
http://jyoti-khare.blogspot.in
क्रोध को तनिक प्रतीक्षा करने दें।
ReplyDeleteआज से हम भी सोच सोच कर बोलेंगे.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशुक्रिया सर जी |
ReplyDeletesoch kar bolna jaruri hai .......par hmesha iska palan karna kahan aasan hota hai ..sundar prastuti .....
ReplyDeletevery nice dr ajay.
ReplyDeleteसुन्दर... शिक्षाप्रद.
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