इलाहाबादनामा
{भाग-१}
{एक
वर्तमान डायरी के कुछ पन्ने }
आजकल सड़कों पर चलते मेरा माथा ठनक जाता हैं
|इलाहाबादी परिवेश भी बड़ा अजीब हैं ,पान खाकर इलाहाबादी किस सड़क कों ,किस गली
कों,पुल कों या दफ्तर कों कितना रंग देंगे ,सही आकड़ा निकलना मुश्किल हैं |किसी सड़क
कब्जियाये पान की दूकान के बगल से गुजरेंगे तो पेपरवाला ,दूधवाला
,पड़ोसी,बैंकवाला,ट्यूशन पढ़ाने वाला या कोई न कोई बकैती करता मिल ही जायेंगा |सचिन
से लेकर मुहल्ले के कलुआ क्रिकेटर तक,सन्नी लियोन से लेकर कट-ब्लाउज वाली भाभी
तक,मोदी से लेकर शोभन सरकार तक शायद ही बकैती की जद से कोई बचता हों |सुर्ती /पान
/बीड़ी/सिगरेट /हुक्का...तक भाई चारे बढाने में बड़ी मदद करते हैं ,एक आदमी सुर्ती
या हुक्का बनाएंगा सबसे पूछेंगा,इलाहाबादी कैंसर से भले मर जाय पर कम्युनल या
गलतफहमी के दंगो से नही मरते,इसकी सर्वोच्च नजीर भोला तम्बाकू वाले ने पेश की
हैं,सह्न्सो में भोला तम्बाकू की फैक्ट्री और सिविल लाईन्स में भोला अस्पताल |
इलाहाबादी कर्मकांडी ब्राह्मण ‘पंडे’ कहलाते
हैं|ज्यादातर तो देवी के भक्त होते हैं ,किसी देवी के नही तो कम से कम गंगा मईया
के भक्त तो जरुरई होंतें हैं |इनका ज्यादातर
समय ताश खेलने , नहाती श्रृद्धालु के अंतःवस्त्रों के साईज भापने,अपने जजमानो कों
तरह तरह से लूटने या कर्मकांड के नए तरीके खोजने में जाता हैं |अगर आपको ‘मुख में
राम बगल में कट्टा... विद कारतूस’ देखना हैं तो अरैल,फाफामऊ,शंकरगढ़ जैसी अवैध खनन
मंडियो से हों आईये |सबसे सस्ती दारु की दुकाने अरैल में हैं ,खुद बनात हैं ,जग
कों पिलाते हैं ,आजमगढ़ में भले ही सैकड़ों अभी हाल में मरे हों पर क्या मजाल अरैल
के केवटो का यह साईड विजनेस मंदा पड़ा हों |
यहाँ शादी बारातें बड़ी अदभुत होती हैं |पता
लगा के चलना होता हैं की उस गली में शादी तो नही हैं ,वरना गली पार कर एम्बुलेंस
का रोगी,साधना कों जाता जोगी,या चोर का पीछा करते दरोगा जी ..बारात से आगे नही
निकाल सकते |यहाँ के छात्र परिचित व् अपरचित बारात में अंतर नही करते |मुफ्त का
माल हों ,हवा की मंद चाल हों ,रौनक बेमिशाल हों तो यहाँ का हर बंदा शायराना हों
जाता हैं ,भले ही ग़ालिब का नाम न सुना हों |शायरी भी ठेठ देशी इलाहाबादी अंदाज में
जो शायद यही सुनाई देती हैं |ठेठ इलाहाबादी में ‘खाना खायेंगे’कों “खाना खाबो”बोलते
हैं |’घर जायेंगे’ कों “घर जाबो”|वकवास करते हों कों ‘बकैती न कीजौ’|
आजकल इलाहाबादियो में ट्रैफिक रुल तोड़कर बच-भागने
एवं वाह-वाही बटोरने की बड़ी कहानिया बन रही हैं |एकाध ट्रैफिक रुल पर क्या मजाल
दरोगा जी ,चालान काट दें |बंदा ऐसा
गिर्गिरायेगा की दरोगा जी उसे जल्दी भागने के लिए रशीद तक नही काटेंगे,काटने क
तत्पर भी हुए तो सीधे पैर पर गिरेंगा |जनाब आप तो दुपहिये पर दो लोग चलते होंगे
,पर यूनिवर्सिटी रोड पर ४-४ लड़किया फर्राटा भरती फोर्रर से स्कूटी पर निकाल जाती हैं
|यहाँ कौन कहता हैं की नारिया किसी भी तरह कमतर हैं ?विशुद्ध इलाहाबाद की पली छोरियां मजनुओ
पर वों जूतम-पैजार करती हैं की उनके अपने भी सहम जाए ,उट्ठक-बैठक,कालर पकड़ ठुकाई ....आपको
चौराहे पर ,नुक्कड़ पर ,गर्ल्स हॉस्टल के पास दिखे तो चौकियेगा मत |वे बेचारी जो
बाहर से ईश्वर के इस निवास स्थली प्रयाग में शिक्षा ग्रहण क्अरने आती हैं ,कभी
कभार उनकी सिधाई पर दया आती हैं |पटना की ज्योति सिंह,एक होनहार अभियांत्रिकी छात्रा
हैं ,जिन्होंने AIEEE में अच्छी रैंक लाकर यहाँ का इंजीनियरिंग कालेज पाया ,एक
सिरफिरे विकृत मानसिकता के युवक की कुंठित भावनाओं की शिकार हों गयी ,उन्हें..
उसने जला दिया |गरीब माँ बाप कों इलाज के दौरान पैसे पैसे कों मोहताज देखकर दिल रो
पड़ा |BHU टापर प्रत्युषा कों ,उसके व्यवसायी सुनार पति द्वारा करवा चौथ से कुछ ही
दिनों दहेज की व्यवस्था न करने की वजह पर फांसी पर लटका देना,इलाहाबादियो के मन
में जन्म लेती विकृतियों का संकेत हैं |धन्य हैं आरती यादव जैसी वीरांगनाए जो
चुपचाप अति नही सहती ,रोजमर्रा की छेड़खानियो से तंग आकर एक दिन सिरफिरे आशिक कों
चप्पल से पीट डाला ,उसकी बाईक फूंक दी,जो
मिडिया की बड़ी खबर बना |विश्व-विद्यालय की लड़किया जागरूक हों रही हैं ,इसे आप ऐसे
भी सोंच सकते हैं ,की गोष्ठियो में घंटो ‘दहेज अभिशाप’ पर भाषण देंगी ,और फिर भाई
की शादी में दहेज में क्या क्या चाहिए की लिस्ट भी बनाती हैं |जागरूक होने का
दूसरा अर्थ ये भी ले सकते हैं की शालू,रौशनी यादव जैसी लड़किया चुनावी मैदान में
कूद पड़ी हैं |
इलाहाबाद सुश्री महादेवी वर्मा ,पन्त ,बच्चन
,कैलाश गौतम ,अकबर इलाहाबादी ,मेघनाथ साहा जैसो विद्वानों का शहर हैं|भरद्वाज मुनि जैसे ऋषियो का शहर है |शहर
में घुसते ही आप महसूस करेंगे की आप सकारात्मकता ,सकारात्मक वायिब्स से भर रहे हैं
|ईस शहर की सकारात्मकता कों चटक रंग देने के लिए नकारात्मकता का थोडा पुट हों सकता
हैं किन्तु यह हजारों स्वप्नदृष्टा भागीरथो के अरमानो के सामने नगण्य हों जाता हैं
,जो यहाँ आते हैं,पढ़ते हैं और फिर प्रशासन ,चिकित्सा ,इंजीनियरिंग,शैक्षिक स्तर
कों बुलन्दियों के चरम पर ले जाते हैं |
झन्नाटेदार व्यंग कटाक्ष
ReplyDelete(शिकागो से )
abh....aar dadi ji
Deleteसटीक व्यंग ,,,!
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
ajay ji umda lekhan .... gajab ka katksh ... allahabad ... sangam hai jaha ... dharm Ki nagri ka raaj khol dala .. sundar abhivyakti ...maja aa gaya padh kar saath hi kayi vichar bhi uttpan huye .. in mansiktao se chhutkara pane ke liye kon se sngam me jaye nahane :)
ReplyDeleteसादर प्रणाम ,
Deleteबस हकीकत से रूबरू कराया हैं जी |
part 2 ka intejaar rahega :)
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य .
ReplyDeleteजुग जुग जिओ बेटे
ReplyDeleteहरबार आपके आलेख पर निशब्द रह जाती हूँ।
हार्दिक शुभकामनायें
सादर प्रणाम |
Deleteइलाहबाद के इतिहास के साथ साथ करार व्यंग भी ... दोधारी तलवार छाई है आज ...
ReplyDeleteरोचक लेखन ....
saadr aaabhaar
ReplyDeleteरोचक शैली में लाज़वाब व्यंग...
ReplyDeleteउम्दा व्यंग
ReplyDeleteइलाहाबाद की सैर के साथ करारा व्यंग्य भी पढ़ने को मिला ...रोचक ।
ReplyDeleteआहा !!
ReplyDeleteकितनी गहरी नजरें, कितने तेज कान रखते हो ...एकदम यहाँ का सटीक शब्द चित्रण ...गजब...!
मुझे आपकी लेखन शैली बहुत पसंद आयी अजेय जी,
ReplyDeleteपहली बार पढ़ रही हूँ इलाहाबाद के इन गुणदोषों के बारे :)
बहुत बढ़िया व्यंग्य पहला भाग इतना रोचक है तो दूसरे भाग में क्या होगा
इंतजार रहेगा ! आभार मेरे ब्लॉग पर आने का !
saadar प्रणाम |
Deleteहमारे देश में यही समस्या है.... नहीं तो पुरे बाईस कैरेट सोना ही तो है हमारा देश ....अच्छी आलेख .
ReplyDeleteसकारात्मकता की यही लय बनी रहे प्रयाग में।
ReplyDeleteअजय भाई , मै आपके लेख से काफी प्रभावित हुआ , जो हजम न हो सके वो सच्चाई आपने लिखी है , बहुत बढ़िया व उम्दा लेख
ReplyDeleteहिंदी टाइपिंग साफ्टवेयर डाउनलोड करें
इतिहास के साथ करार व्यंग...देश में यही समस्या है
ReplyDelete