14 March 2014

पी. एच. डी. {हिंदी कहानी}




   लड़कियां पैदा होती हैं ,कब बड़ी हो जाती हैं पता ही नही चलता ,वक्त के साथ साथ संघर्ष और तमाम दुश्वारियो से निपटना और सफलता के शिखर पर झंडे गाड़ कर,न जाने कब माँ-बाप का सर ऊँचा कर देती हैं| इस गाँव में लडकियां स्कूल जाती हैं ,कुछ दसवी पास करती हैं ,कुछ बारहवी,तो ज्यादा शिक्षित परिवारों की लडकिया बी.ए.या बी.एस.सी. तक पास कर लेती हैं ,सबकुछ तो ठीक हैं ,अलबत्ता आप इनसे इनके विषय मत पूछियेंगा,ज्यादातर को अपना विषय तक नही पता होता J |रचना इस गाँव की इकलौती बेटी थी ,जिसने एम्.एस.सी.{जूलोजी} के बाद यूनिवर्सिटी से नेट एवं पी एच.डी.के लिए गाँव छोड़ा था ,वह अत्यंत मेधावी थी ,उसके इंट्रेंस अंको की मदद से उसे हॉस्टल भी एलाट हो गया था |अब वह विश्वविद्यालय के हॉस्टल में रहने लगी थी |

          इस नये नये शहर में उसे गाँव का सादापन ,निरालापन ,ताज़ी हवाएं ...बहुत याद आती थी |यूनिवर्सिटी के कैम्पस में उसने अफ्रीकियो को देखा,अफगानियो को देखा ,ताईवानी और तिब्बती भी देखे,सब इंसानी प्रेम ,जज्बाती भावनाओं से युक्त .सबकुछ काब्यनुमा.....,शायराना ..वैसे भी यह निराला,पन्त,अकबर,फ़िराक और बच्चन का शहर रहा हैं |यूनिवर्सिटी क्षेत्र में प्रवेश करते ही उसका मन बहुत सकारात्मक हो जाता था ,उसके पापा अक्सर कहते थे यूनिवर्सिटी रोड पर घुमने वाले हर तीन बन्दों में कोई एक इस देश का प्रशासन चलाता हैं ,या देश को दिशा दिखाता हैं|यूनिवर्सिटी रोड की बुक-स्टालों पर वह अपनी सारी पाकेट मनी खर्च कर  देती,सजने सवरने का कोई शौक तो नही था ,पर उसके अनार जैसे दहकते गाल,स्वर्णिम दूधिया काया ,अंधेरो में भी रौशनी कर देती थी,प्रेरक पुस्तके पढ़ना उसकी दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण भाग था ,डॉ.दीपक चोपड़ा ,शिव खेरा ,रिचार्ड बैन्द्लर ,रश्मि बंसल न जाने किस-किस को पढ़ती थी...,सहेलियों की नजर में ‘स्टुपिड किताबी कीड़ा’ भर थी,उसका महत्व परीक्षा के दिनों में बढ़ जाता था ,क्यूंकि सारी सहेलियों को वह उनके विषय की बारीकियां समझाती |

          इंट्रेंस इग्जाम क्लियर करके वह पी.एच.डी.के लिए यूनिवर्सिटी में इनरोल हो गयी|पी.एच.डी. को बहुत मन से करना चाहती थी|उसका सपना इस देश के युवाओं को सही रास्ते दिखाना था,वह सपनों में अक्सर खुद को अत्यंत उर्जायुक्त,ओजस्वी शिक्षिका के रूप में देखती ,उसे अपनों शब्दों की ताकत पर भरोसा था|उसने पी.एच.डी.के सन्दर्भ में कई अफवाहों को सुना था ,पर उसका सकारात्मक व्यक्तित्व ,इन चीजो को इग्नोर करने का आदी  था |

 यूनिवर्सिटी में पहले दिन वह अपने ‘गाईड एवं प्रोफेसर’’ से मिलने गयी,उनका अंदाज रचना को पसंद तो नही आया ,पर उनके ज्ञान और समझ के सिवा रचना को उनसे कोई सारोकार ही नही रखना था |डिपार्टमेंट के हालात लगातार पीड़ा दायी बनते रहे ,हर व्यक्ति द्विअर्थी संवाद बोलता था ,प्रोफेसर साहेब ,कोई बात बताते बताते न जाने कैसे उसमे सेक्स को कैसे शामिल कर लेते थे|कम्प्यूटर पर कोई शोध-पत्र  बताते ,समझाते माउस पर उसके हाथो पर हाथ रख देते,उसके जिस्म को बड़ी ललचाई नजरो से घूरते रहते थे |किसी डिपार्टमेंट के आदमी ने उसे बताया था की उसके ही उम्र की प्रोफेसर की एक बेटी भी हैं ,प्रोफेसर की बेटी और बीबी अब उनसे अलग किन्तु उसी शहर में रहते हैं |जब भी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर किसी अन्य प्रोफेसर से उसका परिचय करवाते तो उसपर अपना मालिकाना हक जताते,एक दिन तो हद हो गयी ,जब उसके प्रोफेसर की उपस्थिति में अन्य यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने उसके अन्तःवस्त्रो का साईज ही पूछ लिया,उसका मन हुआ की चप्पल निकाल के ठोक डाले ताकि इस टकले का दिमाग कुछ सही हों |

                       रचना को अपनी सहेलियों से भी यह बात शेअर करने में बड़ी शर्म लगती थी,आते जाते सहेलियां भी अक्सर फब्तियां कसती ‘देखो पी.एच डी.वाली आ रही हैं ,कैसी गुमसुम शक्ल हैं ,पता नही प्रोफे.तिवारी ने इसे कही का छोड़ा की नही ?’............ क्या इसको पता नही था?पी.एच.डी.में क्या क्या होता हैं’’ |रचना की आखो के नीचे काले निशान और सूरत से रौनक खत्म हो गयी थी,उसके अंदर अपने डिपार्टमेंट के लोगो का खौफ ,उसके अन्तःकरण को,उसकी आत्मा को अब तोड़ दिए जा रहा ,था ,उसका वजन घटता चला जा रहा था |अब यूनिवर्सिटी कैम्पस की हर दीवार उसको चिढाती थी,हर नजरे वह अपने जिस्म में पैबस्त महसूस करती ...|एक दिन तो हद हो गयी जब उसके शिक्षक ने उसे खुला सेक्स का आफर दे ही दिया ,बदले में उसकी पी.एच.डी और लेक्चरर शिप की सिफारिश भी करने की बात कही,ऐसा न करने पर उसकी जिंदगी तबाह करने की भी धमकी दी|

                    रचना जो कुछ रही सही ,बची भी थी ...टूट कर बिखर गयी,कदम हॉस्टल की तरफ बढ़ते न थे,जबरियन कदम बोझ उठाकर धरती पर रखती रही,सारी शक्ति बटोर कर.....न जाने कब उसने अपनी चेतना खो दिया |

                                       इस संसार में हमारी सोंच से ज्यादा अच्छाई हैं,करुना हैं ,दया हैं ,स्नेह हैं,मानवता हैं |होश आने पर रचना ने खुद पर एक ममता भरे चेहरे को झुका पाया,वो वन्दना जी थी,एक वीमेन क्लब की संचालिका |उन्होंने बताया ‘वो सडक से जा रही थी,जब उन्होंने रचना को बेहोश होते हुए देखा था ,उन्होंने उसे उठाकर अपने घर लायी |वन्दना जी की अनुभवी आँखों ने समस्या ताड़ लिया था,वरना कौन खुद को कम खाने ,या खुद को समाप्त करने की सजा देता हैं |

  वन्दना जी,ने रचना को इतना प्रेम और अपनापन दिया की वो टूट गयी ,जिस बात को अपने पैरेंट्स और दोस्तों से नही कह सकी थी,उनसे सबकुछ सिलसिलेवार बता दिया ,वीमेन इम्पावरमेंट पर इतना लेक्चर झाड़ने वाले प्रोफेसर तिवारी का यह रूप वन्दना जी ने सोचा भी नही था ,यहाँ तक की कल आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ पर उनके क्लब में प्रो.तिवारी मुख्य अतिथि भी थे|वन्दना जी ने रचना को बहुत सम्बल दिया,और प्रो.तिवारी को क्लब-फंक्सन में ही बेनकाब करने की तरकीब भी सुझाई |

          क्लब के इस फंक्सन में प्रो.तिवारी ने स्त्रियों की दशा,हिंसा,सामजिक स्तर  उठाने के विषय में तमाम बातें की |समय आने पर वन्दना जी,ने रचना को भी बोलने के लिए आमंत्रित किया |रचना ने अपने साथ घटी सारी बातों को विल्कुल स्पष्ट सबसे शेयर किया ,जिससे प्रोफेसर तिवारी पूरी तरह से बेनकाब हो चुके थे,पुलिस इंस्पेक्टर कार्यक्रम खत्म होने के बाद उनको गिरफ्तार करने वाला था,क्यूंकि वन्दना जी ,रचना को क्लब से पहले पोलिस स्टेशन लिवा जा कर FIR दर्ज करवा चुकी थी |रचना ने आगे कहा- ‘भारतीय विश्वविद्यालय’और उच्च शिक्षा संस्थान आज यौन उत्पीड़न के सबसे बड़े अड्डे क्यों बन गये हैं?कौन जिम्मेदार हैं?काफी हद तक अत्याचार सहने वाली लडकिया |जे.एन यूं में हुए एक शोध के आकडे बताते हैं की ९६ %छात्राए किसी न किसी तरह कैम्पस में यौन उत्पीडन की शिकार होती हैं ,और सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत करने पर दोष हमी छात्राओं पर मढ़ा जाता हैं ,इन प्रोफेसर साहेब से मेरी अकेले की लड़ने की शक्ति नही थी,ये बहुत पावरफुल व्यक्ति हैं ,वाईस चांसलर के दोस्त भी हैं |मेरी रिसर्च कभी पूरी नही होने देंतें |मेरा कैरियर खत्म हो जाता,इतनी मेहनत करके यहाँ पहुंची हूँ,लेकिन इसके आगे लड़ने का मतलब है की बाकी जिंदगी कोर्ट कचेहरी करते बीतती,मेरी आर्थोडोक्स फॅमिली को बदनामी का डर | समाज तो ऐसा ही हैं ,कोई प्रोफेसर स्टूडेंट के साथ दुर्व्यवहार करें तो चरित्र लड़की का ही ख़राब होता हैं |मैं बहुत निराशा में थी ,किन्तु धन्य हैं,वन्दना जी,पुलिस अधीक्षक अलका डी.और  महिला आयोग की सम्मानित सदस्याए और मेरी नई प्रोफेसर डॉ.कृष्णा और गाईड जिन्होंने एक नया जीवन दिया |मैं सभी छात्राओं से अनुरोध करूंगी की शिक्षको के व्यवहार/नीयत के आधार पर उनकी इज्जत करें,सभी युनिकयु हैं और अपने सपनों को अपनी काबिलियत से पाने की क्षमता रखती हैं|


                                                                   ||जय माँ दुर्गा ||
कहानी - अजय यादव

10 comments:

  1. आज के शिक्षा जगत में हो रही दुखद घटनाओं का बहुत सटीक और प्रभावी चित्रण...बहुत सुन्दर कहानी...

    ReplyDelete
  2. अन्याय सहने की पीड़ा कहने की पीड़ा से अधिक होती है।

    ReplyDelete
  3. बहुत समसामयिक एवं प्रभावी चित्रण.

    ReplyDelete
  4. मंगलकामनाएं होली पर …

    ReplyDelete
  5. समसामयिक,सार्थक,प्रेरक! हार्दिक शुभकामनाये!

    ReplyDelete
  6. वाह...सुन्दर पोस्ट...
    आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम

    ReplyDelete
  7. अच्छी रचना। ........... प्रेरक
    शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  8. वास्तविकता के धरातल पे आपकी लाज़वाब कहानी/लेखनी

    आज हम सब नारी सशक्तिकारण की बात करते हैं पर क्या ये आज या कभी सम्भव हो पायेगा?
    साफ़ शब्दों में कहूं तो, मुझे नहीं लगता
    क्यूंकि दिन-ब-दिन हम सबका मानसिक स्तर गिरता ही जा रहा है। चाहे वो पढ़ा लिखा हो या अनपढ़

    बात-बात पे लड़ना,गली देना,झगड़ा करना जैसे दिनचर्या में शामिल हो गया है।

    अब आते हैं स्त्री के बारे में जिस को केंद्र में रखकर ये लेखनी रची गई है, तमाम केस इस बीच में दर्ज़ हुए, बड़े जोड़-शोर से मामला उठता है, और उतने ही कम समय में ठन्डे बस्ते में बंद भी।
    और मुझे तो लगता है कि प्रतिशत बढ़ ही जाती है। जो शर्मनाक है।

    अब बात आती है, इसके लिए जिम्मेदार कौन ?
    तो मेरा व्यक्तिगत मत है कि जिम्मेदार दोनों हैं, पुरुष इसलिए की वो किसी भी कल में अपने वासना इक्क्षा शक्ति को रोक नहीं पाया है।
    और आज के दौर में लड़की/स्त्री इसलिए क्यूंकि उनपे वेस्टर्न ड्रेस पहनने का जुनून या होड़ सा है। जब तक मर्यदा की सीमा तय नहीं होगा तब तब रावण सीता का हरण करेगा ही।

    कहानी आज के हालात में आपकी उत्कृष्ट है।
    सादर

    ReplyDelete


  9. उत्कृष्ट प्रस्तुति..होली की शुभकामनाएं

    ReplyDelete

Featured post

जीवन हैं अनमोल रतन ! "change-change" & "win-win" {a motivational speech}

जीवन में हमेशा परिवर्तन होता ही रहता हैं |कभी हम उच्चतर शिखर पर होते हैं तो कभी विफलता के बिलकुल समीप |हमे अपने स्वप्नों की जिंदगी वाली स...