गाँव में मथुरा यादव भी मन्दिर बनवा लिए हैं ,पहले छोटई अहीर और लालजी
बाभन के मन्दिर थे |रोज ‘८ बजे’ सुबह-शाम घंटा बजता हैं ,भगवान की दया से घंटा
काफी बड़ा हैं,उसके बगल में कद्दू को अंदर से खोखला करके हरे रंग की दान पेटिका भी
लटकी हैं,जिसमे तेरस और इसी तरह के कुछ त्योहारों पर लोग कुछ पैसे डाल जाते हैं और
मन्दिर तो तीन मंजिल का हैं किन्तु ऊपर के दो तो भगवान के हैं तीसरा भक्त यानी
मथुरा जी का हैं |इस गाँव के कुर्मी लोग तो दिन भर ताल में मछली ही पकड़ते रहते हैं
,चमरौटी वाले भी कुर्मी बिरादारी की देखी –देखा दिन भर जाल ,कटिया लेकर तारा
{तालाब}पर ही बैठे रहते हैं,कुछ लोग राजगिरी या लेबर का काम करते हैं |काफी बड़ा
गाँव हैं ,पसियान बिरादरी के लोग सूअर पालते हैं साथ में मजूरी {मजदूरी}करते हैं
|अब तो कुछ लोग पढने भी लगे हैं ,लल्लू का चौदह साल तैयारी करके सफदरजंग में MBBS
के लिए हो गया हैं ,पसियाने के दो तीन लोग TET भी पास कर लिए हैं |अब मलहा जैसे लोग भी अपनी बिटिया को
मेडिकल की तैयारी कराने लगे हैं |
मथुरा यादव अद्भुत कैरेक्टर हैं ,प्राईमरी स्कुल
के रिटायर्ड मास्टर हैं ...प्राईमरी के पढ़े लोग ही प्राईमरी मास्टर को समझ सकते
हैं ,सब उमर वालों से एक सी भाषा ...सरवा
,सासुरवा ,चमरा ,अहिरा ,ठकुरा,बभना..या और भी जो हम नहीं लिख सकते |दो टीचरो में
इतनी मिठास रहती हैं की आपस में मिलेंगे तो भी कम से कम .. एक दुसरे की बहिन
गरियाई के | बचपन से ही देख रहे थे की हमारे प्राथमिक विद्यालय के प्रिंसिपल और
मथुरा एक दुसरे के गरियाई के बुलाते थे |छुआ-छूत की बीमारी भी प्राईमरी से आज भी
दूर हुयी नही दिखती ,हमारे गाँव के स्कूल में बच्चो ने ‘गोली चमार’ के बनाये हुए
“मिड डे मील”तक को खाने से इनकार कर दिया
था|
मथुरा यादव की धाक कई गाँवों के बाजारों तक जमी
हुयी हैं ,मास्साब......उनका उपनाम हैं |बाजार के दुकानदारो को उनके मोल-भाव से
सौदा देने में पसीने याद आ जाते हैं ,ज्यादातर तो उनसे बचने की भरकस कोशिश करते
हैं ,कुछ दुकानदार साफ़ साफ़ मना कर देते
हैं ,सौदा देने से ...|कारण यह हैं की मथुरा उस ज़माने के व्यक्ति हैं ,जब डीजल ३-४ रूपये लिटर या उससे भी कम आता था
,एक रूपये में बोरा भर गेहूं पिसवाने वाले मथुरा को जब ..आज एक किलो के दो रुपया
देना पड़ता हैं ,तो कम से कम बीस बातें उस चक्की वाले को सुनाते हैं |
मथुरा शादी दो दो बार किये ,पहली शादी में
बच्चा नही हुआ तो उस औरत को छोड़ दिए {तलाक}दे दिए ,उन भद्र महिला ने भी दूसरी शादी
की,जहाँ भगवान् की दया से उनकी कोख हरी हुयी,उन्होंने सबसे पहले बनने वाले सोठाउरा
{बच्चा पैदा होने के बाद जच्चा को खिलाया जाने वाला लड्डू } को मथुरा को भेजा
|उनके लाईफ का सबसे कमजोर पोईन्ट बस यही रहा ,की हमेशा मेहरारू से रार रही,दूसरी
ले आये,वो भी झगरालू निकली पहले से भी ज्यादा ,ऊपर से तीन बच्चा ले के आई |अक्सर
‘मथुरा महाभारत’ सुनाई पड जाता हैं |जमीन जायदाद किसको देंगे इस विषय में
हमेशा,बिटिया-दामाद , स्टेप सन {जो उनकी बीबी को उनसे शादी से पहले का पुत्र था}
और मथुरा की ‘मथुरा महाभारत’ गाँव में सुनाई पड़ जाती हैं ,मथुरा अपनी जवानी में
बड़े हेकड़ {मजबूत कदकाठी}के व्यक्ति थे ,पचास-साठ रोटी तो बस यूँ ही खा जाते थे,उनका
एक ‘स्टेप सन’ होमगार्ड हैं ,जब भी उनको धमकाने{ताकि सारी जायदाद,उसके नाम लिख दें
}, थाने से कोई अर्दली लिवा आता हैं तो मथुरा मंदिर में उपर चढ़कर चिलाते हैं
“बचावा हो फलाने.. ,भगतवा सार{उनका स्टेप सन} पुलुस लई आई बा”|
आजकल मथुरा एक अद्भुत {मानसिक}बीमारी से ग्रस्त
हैं ,’सोते हुए निर्वस्त्र होकर घूमने’ वाली|कभी हफ्ते में एकाध बार सुबह तीन,चार...बजे ,तो कभी एक..दो... बजे रात
अहिराने या कुर्मियाने से किसी महिला की आवाज आ ही जाती हैं “भाग जा दहिजरुक
नाती,नाही त हम..... उपार लेब”|इस
बीमारी से गाँव के एकाध लोग और भी ग्रसित हैं |इसी का परिणाम था की एक बार
फूल तोड़ने के लिए सोलह साल की मंजुआ कुनमिन से उनका झगड़ा हुआ ,वो बोली “जेतना पेड़
सेर लगाये अहा,मरे प त लईके जाबा न ,कुल उपार लेब,न रहे फुलवारी न खिले फूल”|बस
मथुरा को एक ही अच्छर सुनाई पड़ा “कुल उपार लेब”...और आज तक गाँव की छोकरियन के
शब्दों पर सेंसर लगाने की अपील करते हैं |
मथुरा का मन्दिर बनवाना भगवान् के प्रति अगाध
श्रृद्धा थी की नही, पर हर गाँव वाला जानता था ....की यह पडोसी की जमीन पर कब्ज़ा
करने की तरकीब हैं|मथुरा हमेशा असुरक्षा से घिरे रहते हैं की कही दयाशंकर प्रधान
उनके आठ फुटे मिथाउआ आम से आम तो नाही तोड़ रहे हैं,कही उनकी मेहरारू चोरी चोरी
अनाज तो नही बेच रहीं हैं ,कही चोर तो नही आ गये ,रात भर खांसते-खखारते रहते हैं
,कुछ न कुछ हमेशा बनवाते रहते हैं ...गाँव वाले असमंजस में हैं .... “मर जयिहीं त,
का.. का.. साथै लई जयिही” !
माया बड़ी ठगनि हम जानी।
ReplyDeleteमाया की महिमा अपार है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेखन.
सुन्दर , अर्थपूर्ण कहानी ..
ReplyDeleteमाया मोह कहाँ पीछा छोड़ता है...बहुत प्रभावी कहानी...
ReplyDeleteअच्छी कहानी और अच्छी प्रस्तुति ...!!
ReplyDeleteमाया कि माया ... ये नहीं छोड़ती साथ उम्र भर ...
ReplyDeleteमाया, मोह महा ठगनी
ReplyDeleteसब जानते हैं कि मरने पर कोई कुछ साथ नहीं ले जाता फिर भी माया-मोह कोई नहीं छोड़ता .....काश समय रहते यह बात सभी समझ ले तो फिर दुनिया भर का तेरा-मेरा ख़त्म हो जाय ..
बहुत बढ़िया सार्थक सन्देश से भरी कहानी ..
वाह...सुन्दर कहानी लेखन...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@चुनाव का मौसम