16 November 2012

रेखा मैडम

इलाहाबाद के यमुना तट पर एक पार्क में मैं बैठा हुवा भविष्य के सपने बुन रहा था ,तभी एक प्लास्टिक की बाल पीठ पर लगी ,जिधर से बाल आई थी उधर मुड़ा तो मैंने एक लगभग ४ वर्षीया छोटी बच्ची को मुस्कुरातें हुए पाया ,कुछ कहता की वो बोली ”भईया मुझे क्षमा कीजिये ,ये बाल मेरी हैं खेलते –खेलते आपको लग गयी ,उस बच्ची का चेहरा उसकी उर्जा बड़ी जानी पहचानी सी लगी…..मैंने कहा “कोई बात नही बाबू !जाओ खेलो !मजे करो “तभी पीछे से आवाज आई “सुरेखा !कहाँ खेल रही हों बेटी…..अब मैं चौक गया ये वही अवाज थी जो स्कूल के दिनो में हमारी पसंदीदा आवाज थी ,मुड़ा तो सामने रेखा मैडम के पति थे |
मैं गाँव से पहली बार कसबे के इस स्कूल में आया था .हालाँकि इलाहाबाद में उस समय के पी कालेज,सी ए वी इंटर कालेज ,जी आई सी इन्टर कालेजो का जलवा था ,किन्तु नैनी एक औद्योगिक क्षेत्र था ,और हमारे बड़े भाई यही की एक फैक्ट्री रेमंड में आपरेटर थे इसलिए उन्होंने घर के नजदीकी स्कूल को वरीयता दी|गाव में कभी लड़कियों के स्कूल में नही पढ़ा था और ये पब्लिक स्कूल था ,,  जहां…. को-एजुकेशन की व्यवस्था थी ,इसलिए मैं बहुत शर्मिला हों गया था |यहाँ आने से पहले ११वी की पुस्तकों को एक बार पढ़ लिया था इसलिए मेरी गिनती होनहारो में की जाने लगी ,कुछ ही दिनों में मैं कालेज में हीरो हों गया और अभिमानी भी .. ,किस लड़की का घर किस गली में पड़ता हैं ,कौन लड़की कौन से कोचिंग में पढ़ती हैं इन सब के बारे में समस्त जानकारियों का श्रोत मैं ही था ,यहाँ तक की कुछ नवजवान शिक्षक भी इन जानकारियो को मुझसे लेते रहते थे|उन्ही दिनों हिन्दी के अध्यापक का कहीं डिग्री कालेज में चयन हों गया ,बाद में स्कूल का प्रबंधन एक अध्यापिका खोज कर लाया वो थी –रेखा मैडम |
क्लास में आईं तो सब लडके अपलक उन्हें देखते ही रह गए,२४-२५ वर्षीया तीखे-नैन नक्स की युवती थीं वे |इस उम्र में विहारी के दोहे पढते पढते कहीं ना कहीं श्रृंगार रस हमारे मनो में प्रधान रूप ले चुका था |करीने से साड़ी में लिपटी सांवलेपन में इतनी खूबसूरती हमने पहली बार ही देखी थी |हम सभी उनकी उर्जा से ,उनके अपनेपन से ,उनके स्नेह में बंध गए थे|यह उस उम्र का प्रभाव था ,हमारी नजरे अक्सर उनके चेहरे पर से आकर उनके वक्षों पर टिक जाती थी, और अक्सर हम लोग खुद ही शर्मा जातें थे |लड़कियां तो हमेशा उन पर फ़िदा रहती थी |आस-पास मडराती रहती थी |पढाने में इतनी उर्जा की शब्द सीधे दिमाग में ही घुस जाते थे और रेखा मैम मेरे दिमाग से दिल में घुस रहीं थी |इन्ही दिनों क्लास में सभी लडको ने मेरे नाम से एक लड़की रूचि शुक्ला को चिढ़ाना शुरू कर दिया था ,जिसमे मैं भी कभी कभार दिलचस्पी लिया करता था |[कालेज की भाषा में टाईम पास ],आखिरकार वेचारी रूचि ने एक दिन कालेज की परम्परा को कायम रखते हुए लव लेटर लिखा |और मेरे घर की खिडकी में[जों उसके रस्ते में थी ] डाल ही दिया ,जों नावेल पढ़ रहें मेरे पापा के गोंद में गिरी,पापा कुछ बोले नही ,बस ध्यान से क्लास में पढ़ने को बोल दिया ,उनको मुझपर बहुत यकीं/विश्वास था की मैं कुमार्ग पर नही चलूँगा |उस लेटर को मैंने हिन्दी की किताब में रख दिया जों एक दिन रेखा मैम के हाथ लग गयी –मैम कुछ नही बोली,अपने केबिन में बुलाईं और बस इतना कहाँ की अभी तुम दोनों की उम्र पढ़ने की हैं ,अजय पहले कुछ बन जाओ ,फिर इस तरफ ध्यान लाना और उन्होंने जों कहा उसे मैं अपने ही शब्दों में व्यक्त करता हूँ
“प्रेम कभी हमारे बाहर नहीं होता ,यह हमारे भीतर होता है ,"किसी को पाना है "सिर्फ इसीलिए रिश्ते ना बनायें,समझौता ना करे ,अपने मानदंड स्थापित करें" |
   इसके बाद उन्होंने वशी शाह की कुछ पंक्तियाँ सुनाई-

“मुहब्बत अखिरिश है क्या ? वसी ! मैं हंस के कहता हूँ – 
किसी प्यासे को अपने हिस्से का पानी पिलाना भी ..मुहब्बत है ! भंवर मे डूबते को साहिल तक लाना भी ..मुहब्बत है ! किसी के वास्ते नन्ही सी क़ुरबानी .मुहब्बत है ! कहीं हम राज़ सारे खोल सकते हों मगर फिर भी ,
किसी की बेबसी को देख कर खामोश होजाना भी …मुहब्बत है !
हो दिल मे दर्द , वीरानी मगर फिर भी
किसी के वास्ते जबरन ही मुस्कराना भिओ मुहब्बत है !
कहीं बारिश मे भीगते बिल्ली के बच्चे को
ज़रा सी देर को घर में ले आना , भी मुहब्बत है !
कोई चिडया जो कमरे में भटकती आ गयी हो
उस को पंखा बंद कर , रास्ता बाहर का दिखलाना ,मुहब्बत है !
किसी का ज़ख़्म सहलाना , किसी के दिल को बहलाना ..मुहब्बत है !
मीठा बोल , मीठी बात , मीठे लब्ज़ सब क्या है ?मुहब्बत है !
मुहब्बत एक ही बस एक ही इंसान की खातिरमगन रहना , कब है ?
मुहब्बत के हजारों रंग , लाखों रूप हैंकिसी भी रंग में ,
हो जो हमें अपना बनती है,ये मेरे दिल को भाती है"……….

उनका ढंग सकारात्मकता और हिन्दी पढाने से ….मैं हमेशा प्रभावित रहां |उनको भी कवितायें लिखने का शौक था |हमेशा हर चीज/माहौल के सही रूप/चीज को देखने की आदत हमे उनसे ही मिली थी ,उनका उद्देश्य हम सभी की उर्जा को सकारात्मक दिशा में लगवाना था ,इसलिए वे लगभग रोजाना हम सबसे पूछती थी”आप क्या बनना चाहतें हों?’सबके उत्तर अलग अलग हुवा करते थे,ज्यादातर तो कह ही देते थे की मैम मुझे कुछ नही बनना हैं ,हद तो तब हों गयी जब एक लड़का बोला की “मैम आपई बतावा हम का बन जाई?”.उनके मापदंड ही अलग हुआ करते थे हर चीज को मापने के अक्सर वे किसी कम कम पाने वाले स्टूडेंट के पास जाती और उसका हौंसला अफजाई करती रहती थी,वे अक्सर कहती थी की “किसी के कम अंको से ही उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन नही किया जा सकता” |
बच्चों से रेखा मैम का स्नेह हमेशा स्पष्ट रहता था |संक्षेप में यह छात्रों में उच्च आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की भावनाएं स्थापित करने के लिए था ,वे हमेशा हर एक को जबरदस्त महसूस कराती थी ,और उनका तकिया कलाम था “आप में अनंत क्षमताएं हैं” उन्होंने अपने वाक्-पटुता से सिद्धह भी किया की हम ईश्वर के छोटे अंश हैं “|मुझे याद आते हैं वे लम्हे जब उन्होंने मुझसे पूछा –उर्जा संरक्षण का नियम बताओ ?मैंने कहा”उर्जा को ना तो उत्पन्न कर सकते हैं ,ना ही नष्ट कर सकते हैं .बल्कि एक रूप से दूसरे रूप में बदल सकते हैं “|“यानी उर्जा थी… हैं…. और रहेंगी किसी ना किसी रूप में” उन्होंने कहा!मैंने और छात्रों ने उनसे सहमती जताई ,फिर उन्होंने एक चंदनधारी ब्रह्मिन छात्र से पूछा “ईश्वर क्या हैं ,उसके आस्तित्व पर प्रकाश डालो “?उसने कहाँ “ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं ,वह हमेशा से था …हैं…. और रहेंगा” |तब मैम ने कहा “इसका मतलब हैं ,ईश्वर उर्जा हैं ,सकारात्मक उर्जा |जों हम सब में हैं |जिस प्रकार से ईश्वर ने सृष्टि की रचना की उसी तरह हम भी अपनी सृष्टि [करियर ,पढ़ाई ,सम्बन्ध ]निर्मित कर सकते हैं हम सब इंसान के रूप में ईश्वर हैं जिनमे कोई कमी नही” |
वे हमेशा बच्चों के अच्छे कार्यों के लिए उनको प्रोत्साहित करती थी ,उनका मानना था की प्रशंसा से बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता हैं |प्रशंसा से आत्म छवि बेहतर बनती हैं |प्रशंसा से वह खुद पर भरोसा करने लगता हैं और इससे उसे ज्यादा बड़ी और बेहतर चीजे करने का आत्मविश्वास मिलता हैं |
रेखा मैम ! मेरे ख्याल से तब के प्राईवेट स्कूलों के रेट के आधार पर १५००/१००० पातीं रही होंगी अक्सर कहती थी”धन एक साधन हैं,जिससे आप अपने जीवन की प्रिय चीज प् सकतें हैं |प्रेम की आकर्षण शक्ति के पास आपकी मनचाही चीज आप तक पहुचने के अनगिनत तरीके हैं :पैसा भी उनमे से एक हैं”|बिल चुकाते समय ,कहीं अपना पैसा खर्च करते समय हमेशा वह खुशी महसूस करती थीं |रेखा मैम कहती थी “जब कहीं से आपके हांथो में कुछ पैसा आयें ,तो कृतग्य हों,चाहे यह पैसा कितना ही कम क्यूँ ना हों !याद रखें,कृतज्ञता अच्छी चीजों को कई गुणा बढ़ा देती हैं”
बाहरी संसार की परिस्थितियों को बदलने की कोशिश में जमीं आसमान एक करने की तुलना में अपने एहसास को बदलना ज्यादा आसान हैं |भावनाओं को बदलतें ही बाहरी परिस्थितियाँ अपने आप बदल जातीं हैं |जिस व्यक्ति को जों देते हैं वही वापस पातें हैं |अक्सर प्रधानाचार्य शिकायत करतें थे आप बच्चों को डाटती नही हैं ,तो वे कहती थीं -दयालुता ,प्रोत्साहन ,सहयोग कृतज्ञता या किसी भी अच्छी भावना के माध्यम से प्रेम दिया जाता हैं तो यह लौटकर वापस आता हैं “सच बात हैं जैसे ही रेखा मैम आतीं थी क्लास में ऐसा लगता था जैसे सकारात्मक उर्जा फ़ैल जाती थी ,वे हम लोगों को सीमित करने वाले दायरो से ऊँचा उठाना चाहती थीं |अक्सर उत्साह वर्धन करती थी ,वे हर क्षेत्र की सर्वोच्च चीजों के बारें में सोचतीं थी और हमे भी यही सुझाती थी |
            वे कहतीं थी की हम लोगों को अपना ध्यान उसपर रखना हैं जों हमे पाना हैं ,हमारा हर विचार उर्जा लिए होता हैं यदि हम पूरे दिल से वह विचार अपना लेते हैं तो वह विचार हमे अपना लेता हैं ,और हमारी जिंदगी की हकीकत में बदल देता था |
                     हमारे कालेज में सभी धर्म /जाति के बच्चे आतें थे वे कहतीं थी
जैसे मै अपने धर्म में परिवर्तन नही चाहती हूँ , उसी तरह किसी ईसाई , पारसी , यहूदी और मुसलमान को उसका धर्म बदलने को न कहूँ , न राय दूँ अथवा न चाहूं । सभी धर्मों में कुछ कमी हो सकती है या है ; परन्तु जैसे मै अपने धर्म में पक्की हूँ वैसे ही सभी धर्म के लोग अपने में पक्के बने रहें । यही मेरे अनुसार धर्म के समझ का सार है । 
मै चाहती हूँ कि सभी धर्म के लोग यही प्रार्थना करें कि यदि वे हिंदू हैं तो और अच्छे हिंदू बन सकें ; अगर मुस्लमान हैं तो और बेहतर / अच्छे मुस्लमान बनें और इसी तरह और बेहतर / अच्छे ईसाई , पारसी आदि आदि बनें । 
            सभी धर्मों में वही कहा गया है जो मनुष्य के हित में हो और जिससे हम प्रेम , करुणा , अहिंसा , भाईचारा , एकता विश्वबंधुत्व और विश्व शान्ति की स्थापना कर सकें । जो अपने धर्म को ठीक से समझ लेता है वह निश्चित ही दूसरे धर्मों का आदर करेगा । ” जब हम अच्छा करते हैं तो हमें अच्छा अनुभव होता है और जब हम कुछ बुरा करते हैं तो हमें बुरा अनुभव होता है ; यही मेरा धर्म है ” – अब्राहम लिंकन । और – ” जब हम अच्छाई और सच्चाई के साथ अपनी आत्मा के साथ जीवन बिताते होते हैं तो वही हमारा धर्म होता है ” – एलबर्ट आइन्स्टीन ।
                    रेखा मैम को प्यार हों गया था |बहुत खुश रहती थी !…हम लोगों को अक्सर उस व्यक्ति से ईर्ष्या होती थी जों उनको ले जाने की कामना रखता था |अब उनके चेहरे पर ज्यादा चमक रहती थी |लगातार हम लोग क्लास में उनका इन्तेज़ार करतें और चाहते की हर क्लास उन्ही की हों …
                   अब कक्षा में, बिहारी की दोहों में रंगबिरंगे सपने दिखतें थे ,और उन रंग-बिरंगे सपनो को हम कल्पना में देख भी लिया करतें थे |एक धर्मशास्त्री का कथन हैं-“जैसे-जैसे आपके भीतर प्रेम बढ़ता हैं ,सुंदरता भी बढ़ती हैं |क्यूंकि प्रेम ही आत्मा का सौंदर्य हैं “|उसी समय हिन्दी में एक रूपक पढ़ा था”तुम्हारे रूप की गंध और नेत्रों की मौन भाषा प्राणों में घुलकर जब फूल जैसी खिलती है तो आत्मा का संगीत उठता है , जिससे प्रेम -पंख उड़ने लगते हैं , उस आकाश में , जहां परमात्मा का सातवाँ द्वार है – परम आनंद का , ” सच्चिदानन्द ” का , और वहीँ सत्य , चेतना और आनंद एक होकर सम्पूर्ण श्रृष्टि में बिखरते है ,सूर्य किरण से , यही हमारे पुण्य की पराकाष्ठा है , प्रेम की निष्काम पुण्य-अंजलि “
                   उन्ही दौरान हम लोगों ने हिन्दी की एक पैरोडी कहीं से लिखी थी |पर चाहकर भी उनको सुना नही पाया लीजिए आज आपको सुना रहां हूँ –
“हिन्दी की क्लास थी , टीचर उदास थी |पति से थी लड़कर आई , 


        अब काहे की पढ़ाई |बच्चों ने कहाँ टीचर पढाओ ,        
 टीचर ने कहा मेरा सिर मत खाओ |
 पिछली बार गाय पर निबंध लिखा था,           
इस बार पति पर निबंध लिख लाओ |
 यूँ तो पति का नाम सुनकर हर बच्चा घबराया ..
       किन्तु एक जीनियस चश्मिश कुछ यूँ लिख कर लाया —–
“पति एक दीन असहाय,आज्ञाकारी पशु हैं जों कुछ कुछ इंसानों जैसा होता हैं |वह पत्नियो का पालतू होता हैं |आकडो के अनुसार पिछले वर्षों में पालतू पशुओ की संख्या बढ़ी हैं |पत्नियाँ हमेशा इस जीव को पगहे में बाँध कर रखती हैं ,और सिर से खतरे का लाल सिग्नल देती हैं क्यूंकि इस जीव को बाहर मुह –मारने की आदत होती हैं |
वर्तमान समय में पतियों की २ नसले पायी जा रहीं हैं –
१]जोरू का गुलाम
जोरु का गुलाम :-पिछले कई वर्षों से इस प्रजाति के पति बढ़े हैं ,जिसके फलस्वरूप वृध्हा आश्रमो ,और बुजुर्गो पर अत्याचार भी बढ़े हैं |
२]जोरू का बादशाह-इस प्रजाति के पति विलुप्ति के कगार पर हैं ,सरकार को नयें “बादशाह बचाओ केन्द्र” खोलने की जरूरत हैं ,इन्ही प्रजातियो ने ने ही संयुक्त परिवार और घर के वृध्हो को भगवान का दर्जा दे रखा हैं ..जिसके कारण अपनी ही मन मस्तिष्क में कुंठा जन्म देके इनकी पत्नियां अक्सर वीमार ही रहती हैं “
                   आखिर वो दिन आ ही गया जब रेखा मैम की शादी थी !शहनाई और आर्केस्ट्रा की धुनें बज रही थी क्लास के कुछ चुनिन्दा लड़के आमंत्रित थे ,मन में अजीब सा दर्द था पता नही उनसे बिछुड़ने का या कुछ और…बस उनकी शादी में इधर उधर हम लोग भागतें रहे ….शामिल रहे ,मजे करते रहें …विदाई के वक्त ऐसा रुदन-क्रन्दन हुवा की दुल्हे राजा भी रोये बिना ना रह सके…..गाडी उनके पिया घर की तरफ बढ़ चली और हमारे आँखों से आंशुओ की मोटी धारें भीं….गाडी सहसा १०० मित्र जाकर रुकी ,और फिर उनके पति ने बुलाया “अजय !इधर आईये ,मैं गया तो देखा मैम बुला रहीं थी “बोली !बेटा तुमसे मुझे बहुत आशाएं हैं”उनका कथन और इस आवाज की टोन आज भी मेरे कानो में गूजती हैं ,जिसके कारण मैं कामचोरी और आलस्य को त्याग कर पाने में सफल हुवा ,जब भी मैं कोई निरर्थक कार्य करता हूँ तो वही आवाज आज भी मेरे कानो में गुजती हैं |वक्त बीतता गया मैंने सुना की मैम इलाहाबाद की किसी गाँव में सास के साथ  ज्यादातर रहतीं थी ,पर अपने पति के पास हर सप्ताह आती हैं |एक दिन उनके देवर से मुलाकात हुयी उनसे मिलने की इच्छा की ,तो वह बताया की मैम प्रेग्नेंट हैं,शनिवार को शहर आएँगी |बहुत खुश हुए अब तक  हम मेडिकल की तैयारी में लग गए थें |
                        पहली डिलीवरी थी सो एहतियात बरतते हुए उनके पति ने उन्हें शहर के ही एक हास्पिटल में उनको भर्ती करा दिया |यह वही शहर था जहां वे गाँव की एक सिम्पल लड़की से रेखा मैम बनी थीं |यहाँ की गलियाँ ,पक्षी,पशु मनुष्य सभी से मैम का एक खास रिश्ता था |मैम को देखने इतने लोग आते थे की वहाँ का स्टाफ उन्हें सेलेब्रिटी समझता था |मिलने वाले इतना फल लातें थे की मैम के पति उन फलो को बैगो में भरकर ले जाया करते थे |जैसे जैसे उनकी डिलीवरी का वक्त नजदीक आ रहा था,हास्पिटल प्रबंधन सावधानी बरतते हुए मिलने वालो पर रोक लगा दिया |वेटिंग रूम हमेशा भरा रहता था | आखिर डाक्टरों ने २४ घंटे का एक्सपेक्टेड समय दे ही दिया,मुझे याद पढ़ता हैं कम से कम ४० उनके पढाये छात्र वहाँ जम गए ……रात को २ बजे इमेरजेंसी में डॉ को जगाया गया और आपरेशन से बच्चा होना था …….खून की जरूरत आ पड़ी ……इस वक्त हर कोई बहुत उत्तेजित था |हर कोई खून देना चाहता था …अंत में मेरा ब्लड ग्रुप मैच किया और मेरे तीन और साथियो का भी …हमने रक्त दिया ,हमारे दिल को राहत मिली |किन्तु सुबह के ५:४५ पर डॉ ने कहा “she is no more”|
ये सबसे बड़े दुःख का दिन था |सुबह के ६ बजे तक सैकड़ों छात्र एकत्रित हों चुके थे |
सभी लोग बहुत दुखी थे |दुखीं मन से हम लोग उनके अन्त्येस्थी में शामिल हुए ,वे तो चली गयीं किन्तु उनके शब्द गुन्ज्तें रह गए “बेटा ,मुझे तुमसे बहुत आशाएं हैं”!मैंने संकल्प किया की चाहे जों कुछ हों जाय मैं डॉ बनूँगा !और ऐसा डॉ बनूँगा जिसके दिल में इंसानियत /आदमियत हों , सिर्फ डिग्री लेना हिन्  नही दक्षता प्राप्त करना मेरा उद्देश्य बन गया ,ac में नही सुदूर ग्रामांचल में झोपड़े के नीचे भी अपने देश की लोगों के साथ   सोना  ,और रात भर जाग जाग कर बुनियादी सुविधाए उपलब्ध करना मेरा लक्ष्य बन गया|आज ४ साल बाद अचानक इस मुलाकात से उत्तेजित सुरेखा के पापा ने {मैम के पति] जिद किया की हम उनके घर चले |हम गयें ,जहां वे रहते थे |रेखा मैम !वहाँ की हर दीवार में जिन्दा थी .ऐसे लगता था जैसे पुकार उठेंगी “तुम आ गए”| वही इत्र की खुसबू ,मैम की पसंद के रंग के पर्दे, करीने से रखी उनकी चप्पले,आलमारी में रखी उनकी वही किताबे जों हमे पढ़ाया करती थी !अब आंसू नही रुके! उनके कमरे की साफ सुथरी चमकती एक एक चीज देखकर मैंने सोचा क्या कोई किसी को इतना प्यार कर सकता हैं ??की उसके मरने के बाद भी पागलो की तरह उसे चाहे ?यही बात मैंने सुरेखा के पापा से पूछी तो वे बोले “रेखा जी !मेरे मरने से पहले मुझसे नही अलग हों सकती “!
कुछ तो हैं प्रेम में वरना सीरी –फरहान ,लैला मजनू ना जाने कितने अफ़साने कैसे बनते ,इतनी पवित्र जज्बातों भरी  मुहब्बत ,बिना शर्तों काअसीम  प्रेम ...मेरी कल्पना से परे था !

मुहब्बत एक खुशबु है हमेशा साथ चलती है 
कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता 
[-बशीर बद्र]
लेखन -अजय यादव 

14 comments:

  1. Replies
    1. सादर प्रणाम ,रश्मि प्रभा जी....आपके कदम मेरे ब्लाग पर पड़े ......मेरे लिए यह पल ..बहुत खास हैं ..कि हिंदी ब्लॉग साहित्य कि इतनी बड़ी हस्ती ....मुझे कुछ काबिल समझीं

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  2. प्रेरक रचना है, रेखा मैडम जैसे लोग अल्प समय में भी समाज और परिवेश पर अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं.

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    1. सादर प्रणाम,
      शुक्रिया

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  3. ek teacher ki prerna unke students ko nayee unchaiyo par pahuncha deti hai..
    sundar katha

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    1. सादर प्रणाम |
      अच्छे टीचर के द्वारा प्रदत्त ग्ज्ञान कि लहरों का असर अनंत होता हैं |

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  4. बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना...

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    1. सादर प्रणाम ,मुझ जैसे नवांकुर को आप जैसे स्नेहीजनो का आशीर्वाद मिलता रहे ...बस |बहुत बहुत शुक्रिया

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  5. बहुत अच्छा लगा आपकी रेखा मैं के बारे में पढ़कर एक शिक्षक को ऐसा ही होना चाहिए आज अगर ऐसे शिक्षक हो तो देश बहुत प्रगति कर सकता है.आपकी प्रस्तुति सराहनीय है .

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  6. शालिनी जी,सादर प्रणाम |
    आपके लेख हमे प्रेरित करते हैं|

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  7. aaj ke shiksha jagat ke halat bebak prastiti

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  8. सादर प्रणाम ...मधु जी,शुक्रिया

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  9. bhaiya aap ki likhi bat dil ko chhu gayi.
    Aap bahut bade dockter bane mai bhagavan se prathana karata hu.

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  10. बहुत अच्छा लगा आपकी रेखा मैडम के बारे में पढ़कर एक शिक्षक को ऐसा ही होना चाहिए रेखा मैडम जैसे लोग आज अगर ऐसे शिक्षक हो तो देश बहुत प्रगति कर सकता है.आपकी प्रस्तुति सराहनीय है..........बहुत ही देर से पढ़ पाया हूँ पर .......पॉध्कर सुकून जरूर मिला है

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