18 July 2013

तू मेरी जिंदगी हैं….{कथा लेखन -डॉ. अजय यादव }

हे प्रिये ,

यह सत्य हैं की तुम्हारी आँखों में डूबने के बाद ,बाहरी दुनिया से संपर्क टूट ही जाता हैं |पहली मुलाकात में ही तुमने मुझे कहा था-“आँखे मिलाकर बातें करो” आँखे मिली तो हम लोग एक दूजे कों ही देखते रह गए थे |

तुमसे मिलने के बाद सारी फिजा ही बदल गयी ,दुनिया और खूबसूरत लगने लगी ,रंग चटक हो उठे …प्रकृति प्यारी ,मनभावन सी हो गयी |भीतर कुछ खिल सा गया जिसने मुझमे एक मुकम्मल इंसान क्रियेट किया |तुम्हारे रूप की गंध और नेत्रों की मौन भाषा प्राणों में घुलकर जब फूल जैसी खिली तो आत्मा का संगीत बज उठा हैं , जिससे प्रेम -पंख उड़ने लगते हैं , उस आकाश में , जहां परमात्मा का सातवाँ द्वार है – परम आनंद का ,  “सच्चिदानन्द” का , और वहीँ सत्य , चेतना और आनंद एक होकर सम्पूर्ण श्रृष्टि में बिखरते है ,सूर्य किरण से , यही हमारे पुण्य की पराकाष्ठा है , प्रेम की निष्काम पुण्य-अंजलि”|

तुम अगर बाहर कहीं भी रहती हो तुम्हारी वेल-विशेज की तरंगे मुझे अक्सर रोमांचित कर जाती हैं |कभी कभार मुझे तुम एक छोटी प्यारी सी बच्ची लगती हों जो विना शर्त के प्रेम देती हैं,तुमने प्रेम के बदले ,कभी कुछ नही ,चाहां! … प्रेम भी नही |मैंने तुम्हारे प्रेम कों महसूस किया हैं ,इसकी पवित्रता कों जिया हैं |यह तो तुम्हारा स्वाभाविक गुण ही रहा हैं |मैने रामचरितमानस में पढ़ा हैं –

..उमा जोग जप दान तप नाना मख ब्रत नेम।
राम कृपा नहि करहिं तसि जसि निष्केवल प्रेम।।117(ख)।।

{ राम चरित मानस में तुलसी}
शंकर जी पारवती से कहते हैं ; उमा ! ” शुद्ध प्रेम ” ( अनन्य ) से मनुष्य के उपर जैसी कृपा ईश्वर की होती है , वैसी कृपा किसी भी प्रकार के योग ,जप , दान , तपस्या , विभिन्न प्रकार के यज्न /यग्य , व्रत और नियम करने से नहीं होती . ” रामहि केवल प्रेम पियारा : जानि लेहु जो जाननिहारा ” ..

वही = अगर आप समझदार हो तो समझ लो – राम को केवल ” प्रेम ” ही प्रिय है

मैंने फिल्मे देखीं ,मैंने खूबसूरती देखीं फिल्म इंडस्ट्रीज में अपने सौंदर्य के हथियार से जनता के जेब से करोड़ो निकालने वाले ये बनावटी मेअकप भरे चेहरे भी देखे,पर्दे पर इजहारे-मुहब्बत करती अभिनेत्रियां देखी !पर मुहब्बत कों जैसे तुमने व्यक्त किया,विना शब्दों के वैशाखी लिए,शायद उसके लिए माँ सरस्वती ने शब्द ही नही क्रियेट किया होंगा ,वो भी कुछ अनकहा रहने देना चाहती थी | उन नकली चेहरों का सौंदर्य ,बनावटी अपनापन तुम्हारे पैरों के धूल के बराबर भी नही हैं, |हल्के साँवलेपन में तुम्हारा सौंदर्य अलौकिक हैं,उसमे भी जब तुम ‘बड़े हक से’ मेरा हाल पूछती हों,या मेरे अध्ययन के विषयों पर बहस करती हों तो सृष्टि की सबसे खूबसूरत इंसान जान पडती हों |

तुम्हे याद हैं ,मैंने मम्मी से तुमको मिलवाया “मम्मी ने तुमसे बात की ..नाम,पूंछा और …मेरे कान में धीरे से बोली “यह लड़की मुझे बहुत पसंद है”|इस अंतर्जातीय और अलग धर्म में, शादी सम्बन्ध.. कों लेकर समाजिक ठेकेदारों कों हमने मिलकर ठेंगा दिखाया हैं |

तुमसे मिलकर ही हमने सफलता की नई नई परिभाषाये गढ़ी हैं |हर सफलता के पीछे हमेशा तुम्हारा मास्टर प्लान रहा हैं ,मैंने तो सिर्फ उसका क्रियान्वयन भर किया हैं |तुम मुझसे काफी ज्यादा पढ़ी हो और पढ़ने की आदी भी हों |हर असफलता में ,हर दुःख में ,हर दर्द में तुम्हारे कंधे पर सर रख के रोंया हूँ,तुमने हमेशा मुझे सांत्वना के साथ साथ ,हिम्मत दी हैं ..कोई भी सफलता जो मेरी हैं ,वह सिर्फ अकेले मेरी कब रही हैं ,यह सबको पता हैं…..! की हर सफलता पर सबसे ज्यादा कौन खुश होता हैं ….?रात-रात भर अध्ययन कक्ष में चाय का कप कौन पहुंचाता रहा हैं? तुम जैसे तुम्हे हमेशा पता होता हैं की कब मुझे क्या चाहिए ?तुम्हारे अपनेपन और परवाह से कभी कभार मैं खीझ जाता हूँ …सोना नही हैं….? ,थकती नही क्या …..? पर तुम बड़ी गहरी मुस्कान देती हों ,तुम्हारे शांत कोमल चेहरे कों देखकर मुझे बड़ा सकूँन आ जाता हैं |तुम अक्सर कहती हों “हमारा यह जीवन केवल एक बार का है , लेकिन यदि हम एक बार भी ठीक से जीना सीख लें तो एक बार भी बहुत है”.

घर में तुम हमेशा मम्मी की लाडली हों ,लोग समझ ही नही पाते की सास-बहू हैं या माँ-बेटी|मम्मी के प्रशासनिक कार्यों तक उनकी मदद तुम करती नही थकती हों |पापा की तुम इतनी परवाह करती हों की वो हमारी नोकझोक में हमेशा तुम्हारा साथ देते हैं,सच कहूँ मुझे बहुत अच्छा लगता हैं |तुम दुनिया की बेस्ट इमोशनल मैनेजर हों |मेरे खर्चीले स्वभाव के बावजूद हर महीने के अंत तक,तुम्हारे आने के बाद कभी आर्थिक तंगी नही लगी ,जरूरी शापिंग और गैर जरूरी शोपिंग में अंतर करना कोई तुमसे सीखे|बचपन से ही मुझे पैसे मम्मी कों देने की आदत रही हैं ,और जब आज भी अपनी सैलरी मम्मी कों सुपुर्द करता हूँ ,तो तुम्हारे आने से पहले मम्मी कहतीं थी की “तेरे पैसे खुद रख”पर अब मम्मी तुम्हे दे देती हैं,की “घर कों मैनेज घर की लक्ष्मी ही   करेंगी ,अब मुझे तुम्हारे हर कृत्य का आनंद उठाना हैं” मम्मी तुम्हारे आर्थिक मैनेजमेंट की बड़ी मुरीद हैं,शायद इसीलिए तुम ही सबकी सैलरी व इनकम टैक्स तक का हिसाब रखती हों | घर में जब भी कोई फंक्सन होता हैं,मम्मी हमेशा तुम्हे सारी जिम्मेदारियां देती हैं,और तुम “सेंटर आफ अट्रेक्शन” या कार्यक्रम की मुख्य संचालिका होती हों |तुम्हे याद हैं की मम्मी से मैं एक बार लड़ ही पढ़ा था की “मैं तुम्हारा बेटा हूँ …या वों”….मम्मी हसंती रहीं और बोली “वों ! अब जलना छोड़ ! और अपना कर्म कर”,और तुम जानती हों की जब भी मम्मी और तुम्हारा अपनापन देखता हूँ ,तो मुझे बहुत अच्छा लगता हैं |उस दिन तुमने मुझे पीछे से अपनी बाँहों में भरकर कहा था “मम्मी की निगाह में हम दोनों हैं ,जो एक हैं..उनका किसी एक कों भी दिया गया प्रेम या सीख वास्तव में हम दोनों के लिए होता हैं ,हम अलग थोड़े ही हैं”|

तुम हर घर में हो ,मम्मी हर घर में हैं ,पापा हर घर में हैं ,मुझ जैसा भी कोई किरदार हर घर में हैं,आर्थिक स्तर थोड़े ऊँचे –नीचे हो सकता हैं | फिर भी इस समाज में किसी जोड़े कों मारकर पेड़ पर लटका दिया जाता हैं क्यों ?किसी स्त्री कों दहेज के लिए क्यों जलाया जाता हैं ?किसी स्त्री के साथ लैंगिग आधार पर कोई दुर्व्यवहार क्यूँ ?


12 comments:

  1. अच्छा लिखा है ,खासकर अंत में पूछे गए प्रश्न का उत्तर इसी समाज में/से मिलेगा जिस के हम सब हिस्से हैं.

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  2. आदरणीया सादर आभार |

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  3. ब्लॉक फेसबुक पर किया, हुई कौन सी बात।
    मैंने जो कुछ है लिखा, पहुँचा क्या आघात??

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  4. नही भाईयां ....मैंने फेसबुक अकाउंट कों ही बंद कर दिया था |
    किन्तु शुभचिन्तको ,परामर्श दाताओं एवं अपने खास दोस्तों के दबाव में पुन्ह चालू कर दिया हूँ |

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  5. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा लिखा है अपने अजय जी

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    1. आभार श्री भास्कर जी,आपके लेख मुझे बहुत अच्छे लगे
      कविताएं बेहद खूबसूरत |

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  7. कुछ लेख,कविताएं ऐसी होती हैं जिन्हें पढ़कर मन भावुक हो जाता है, ये रचना उन्हीं में से एक है...आपका धन्यवाद। बहुत अच्छा लिखा है। बधाई आपको

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    1. आदरणीया सादर आभार ,

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  8. bahut bahut accha laga padh kar

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    1. आपका हार्दिक स्वागत हैं |
      आप बहुत सुंदर लिखती हैं |

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