13 January 2025

क्लासिकल होम्योपैथी ,असाध्य रोगों में असीमित संभावना

 क्या है क्लासिकल होम्योपैथी? 

क्लासिकल होम्योपैथी कुछ और नहीं,बल्कि होम्योपैथिक का ही वास्तविक एवं सैद्धांतिक रूप है क्लासिकल होम्योपैथी का सिद्धांत है की होम्योपैथिक रोग का नहीं बल्कि रोगी का इलाज करती है..।

इसका अर्थ यह नहीं है कि, होम्योपैथी से रोग ठीक नहीं होते परंतु इसका अर्थ यह है कि… क्लासिकल होम्योपैथी से रोगी हेतु दवा का चयन …मात्र रोग के नाम के आधार पर नहीं किया जाता बल्कि रोगी के समस्त शारीरिक लक्षणों ,लक्षणों के बढ़ने एवं घटने के कारक ,रोगी के मानसिक लक्षणों… रोगी के पसंद नापसंद, रोगी का स्वभाव ,आदतें इत्यादि के अनुसार उस रोगी की सही दवा का निर्धारण किया जाता है।इस प्रकार मात्र रोग हेतु दवा का चयन नहीं, बल्कि रोग से पीड़ित रोगी हेतु दवा का निर्धारण किया जाता है 

   अतः यदि कोई व्यक्ति सर दर्द हेतु बेलाडोना, बुखार हेतु एकोनाइट, बच्चों के दांतों के लिए कैल्केरिया फॉस ,पेट की परेशानी हेतु Nux Vomica ,जोड़ों को दर्द है तो Rhus Tox,चोट हेतु अर्निका, मस्सों के लिए THUJA आदि का प्रयोग करता है तो यह पूरी तरह से गलत है। होमियोपैथी यदि नियमों के अनुसार प्रयोग की जाएं तो यह रोगों को जड़ से समाप्त करती है इसे गलत तरीके से प्रयोग किया जाए तो यह रोगों को दबाने (suppression )का काम करती है तथा इसके बहुत गलत प्रभाव होते हैं, बाजारवादी सोच ने सही होम्योपैथी की छवि को पूरी तरह खराब कर दिया है। “रोग बनाम दवा” की सोच के चलते बाजार में होम्योपैथी नाम से सिरप, क्रीम, तेल, साबुन, मरहम ,पेस्ट ,टॉनिक ,पेटेंट कांबिनेशन नंबर वाली दवाएं आदि वस्तुएं उपलब्ध हैं !जो कि होम्योपैथी के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है इस तरह से रोग हेतु दवाई लेना और देना दोनों गलत है।

 होम्योपैथी के जनक डॉक्टर सैमुअल हैनीमैन स्वयं MD चिकित्सक थे, परंतु उन्होंने अपने डिग्री त्याग दी तथा होम्योपैथिक की खोज की ताकि आसाध्य रोगों पर भी विजय पाई जा सके तथा दवाओं के दुष्प्रभाव से बचा जा सके परंतु उनके अमूल्य खोज का प्रयोग सही ढंग से नहीं किया जा रहा है। होम्योपैथिक विज्ञान कुदरत के नियमों पर आधारित है यदि होम्योपैथिक को नियमों के अनुसार और प्राथमिक तौर पर अपनाया जाए तो यह “एक अच्छा इंसान, अच्छा परिवार एवं अच्छा समाज” बनाने में बहुत योगदान दे सकती है l

       यदि चिकित्सक होम्योपैथिक के मूल सिद्धांतों का पालन करते हुए रोगी हेतु दवा का चयन करें तो इस प्रकार निर्धारित की गई दवा से असाध्य रोगों जैसे अस्थमा (दमा),जोड़ों का दर्द, थायराइड, माइग्रेन, मिर्गी, सोरायसिस, पथरी ,रसौली हर्निया, लकवा, ब्लड प्रेशर, पीलिया, बवासीर ,भगंदर, एलर्जी डायबिटीज एवं मानसिक एवं शारीरिक तौर पर अल्पविकसित बच्चों( गूंगे, बहरे, स्वालीन, ऑप्टिज्म )अनुवांशिक रोग (जैसे डाउन सिंड्रोम आदि )कान का बहाना साइनस, डेंगू, कैंसर आदि से ग्रसित रोगी रोग मुक्त हो जाते हैंl

समझिए…

1)एक कोशिका से बना या शरीर अद्भुत है शरीर को बिना समझे दवाई लेना व देना गलत है बिना सही जानकारी के शरीर के बारे में गलत धारणाएं न बनाएं .

2)ऊर्जा (Vital Force)से चलने वाले इस शरीर के साथ बाहरी छेड़खानी हमेशा हानिकारक होती है l

3)होम्योपैथी में इलाज का कोई कोर्स नहीं होता अलग-अलग रोगियों के इलाज में अलग-अलग समय लगता है l

4)बीमारियों को नियंत्रित करने और शरीर /प्रकृति के नियमों के अनुसार ठीक करने में जमीन आसमान का अंतर हैl

5)दीर्घकालिक(क्रोनिक) पुरानी और बार-बार होने वाली बीमारियों में रोगी का स्वभाव उसके गुण अवगुण ,सामाजिक मेल मिलाप, जिंदगी में आई परेशानियां गम और हादसे जो रोगी पर बहुत असर करती है आदि परिस्थितियों की सही जानकारी होम्योपैथिक केस लेते समय बहुत जरूरी है ।

6)अल्पकालीन एक्यूट रोगों (जैसे बुखार दस्त खांसी) में दवाई देने का तरीका दीर्घकालिकरोगों से भिन्न/अलग होता है तथा इन रोगों में शीघ्र आराम मिलता हैl

7) पानी प्यास के अनुसार पीना चाहिए जरूरत से ज्यादा पानी हानिकारक होता है l

8)रात को हल्का भोजन करें और आराम करें ,रात में भोजन के बाद टहलना गलत हैl

सोचिए

1)अत्याधुनिक चिकित्सालयों एवं आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों और ज्ञान/जानकारी के होते हुए भी आज लगभग प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रोग से ग्रसित है ऐसा क्यों?

2)बच्चों में भी बड़ी-बड़ी बीमारियां होने लगी है.. ऐसा क्यों ?यदि बाहरी संक्रामक कारकों और खाने-पीने की गुणवत्ता एवं खाने पीने की आदतों आते ही बीमार होने के लिए जिम्मेदार होती हैं तो एक ही परिवार /माहौल में रहने वाले व्यक्तियों में अलग-अलग बीमारियां क्यों होती है

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