11 July 2012

मन और जीवन {डॉ अजय की कलम से }

मन ही ईश्वर , 
मन ही देवता
मन से बड़ा ना कोय |
मन उजियारा जग जग फैले
जग उजियारा होय |
मेरे दोस्तों मैं अजय यादव  आपके सामने एक बार फिर मन के रहस्यों लेकर हाजिर हूँ |दोस्तों जिस तरह से ,गुरुत्वाकर्षण का नियम हैं ,कूलाम्ब का नियम हैं ,गति के नियम हैं ठीक उसी तरह मन के नियम भी सर्वव्यापी और सत्य हैं ,यह आप इसे ऐसे समझ सकते हैं की चाहे आप अच्छे व्यक्ति हों या बुरे यदि आपको २० मंजिली ईमारत से धकेल दिया जाय  ,आप नीचे ही गिरेंगे......... ये बात सर्वकालिक  सत्य हैं |वैसे ही मन के नियम भी सर्वथा सत्य हैं |

विश्व के सबसे बड़े सबसे शक्तिशाली ,क्षमतावान कम्प्यूटर के मालिक आप हैं |यह कम्प्यूटर इतना शक्तिशाली हैं की हम अपने सम्पूर्ण जीवन काल में इसकी क्षमता का ८ से १० % ही इस्तेमाल कर पातें हैं ,जानकारी के आभाव में इससे ज्यादा इस्तेमाल करना हम नही जानतें हैं |सवाल ये हैं की इसका पूरा इस्तेमाल कैसे किया जा सकता हैं –
हमारा मन २ प्रकार का हैं –
१]चेतन
२]अवचेतन

चेतन मन केवल जाग्रति अवस्था में कार्य करता हैं जबकि अवचेतन मन सदैव सक्रिय रहता हैं |हमारे शरीर की पांचो इन्द्रियों पर ,हलन-चलन [movement],और हमारे विचारों पर जागृत मन का नियंत्रण रहता हैं |हमारी तर्कशक्ति ,पृथक्करण शक्ति [analyitical power],अनुमान ,और अर्थ-घटन शक्ति भी हमारे जागृत मन से नियंत्रित हैं |हममे जो बुद्धि-प्रतिभा हैं ,अवसर को पहचानने की क्षमता हैं ,सही –झूठ को पहचानने की क्षमता हैं ,निर्णय लेने की जो क्षमता हैं और निर्णय पर अमल करने की जो क्षमता हैं.... वह चेतन मन के पास हैं  .सुबह से लेकर शाम तक हम जो इच्छाएं पैदा करते हैं वह जागृत मन से करतें हैं
 
चेतन मन तो हम हमेशा इस्तेमाल करते हैं आईये अवचेतन मन के बारे में,उसकी शक्तियों के सन्दर्भ में बातें करें...........|
हमारा अवचेतन मन सर्वशक्तिमान हैं ,उसका वजूद ही हमारे भलाई के लिए हैं |अर्धजग्रित मन चौबीसों घंटें ,आठो पहर ,हमारे लियें कार्य करता हैं |हमारे साथ यह जन्म से सक्रिय हैं  |यह हमारे जन्म से ही हमारे साथ हैं ,इसी ने हमारे समस्त शरीर का निर्माण भी किया हैं [बाईबिल के अनुसार....]अवचेतन मन की कार्य-प्रद्धति कम्प्यूटर जैसी हैं |जैसे कम्प्यूटर को चलने के लिए प्रोग्राम की जरूरत होती हैं उसी तरह से हमारे अवचेतन मन को चलने के लिए प्रोग्राम की अवश्यकता होती हैं |प्रोग्राम यानि हमारा नजरिया ,धारणाये ,मान्यताएं
इत्यादी |हमारा अवचेतन मन माता-पिता ,शिक्षक ,मित्र ,समाज  की धारणाओं के अनुसार कार्य कर रहा हैं ,क्यूंकि उसे हमने अपनी खुद की धारणाओं के अनुसार अभी ढालना नही सीखा हैं |इसके लिए हमे लगातार हमारे लिए सकारात्मक,उर्जात्मक विचारों का एक नियमित आत्म सुझाव देना हैं |इन आत्म्सुझावो को हमारा मस्तिष्क ग्रहण कर लेता हैं और उनके अनुसार कार्य करता हैं ..........हमारे अवचेतन मन के पास अपनी कोई च्वाईस नही होती हैं जो भी बोला जाय ,चाहे आप बोले या आपके आस-पास वह इसे ग्रहण कर लेता हैं और इस पर प्रतिक्रिया देना शुरू के देता हैं ..............
ज्यादातर प्राथमिक स्तर पर  हमारे शिक्षक लोग.....या हमारे अभिभावक गण बच्चों के अच्छे प्रदर्शन ना कर सकने पर या उनके मन मुताबिक कार्य न करने पर उन्हें नकारात्मक ,बातों से संबोधित करते हैं जैसे –
तुम बुद्धू हों.................................................................................... |
तुम जीवन में कुछ नही कर सकते ...................................................|
वेवकूफ................................................................. |
इस तरह की नकारत्मक बातें कोमल ग्रहणशील ,मस्तिष्क वाले ,बच्चों के मस्तिष्क में भर जाती हैं |जिससे उनका प्रदर्शन लगातर गिरता जाता हैं |
भारत जैसे विशाल देश में सही मायनों में शिक्षकों की नितांत कमी हैं ,लोग कुछ और ना कर पाने पर शिक्षक बनते हैं ....बिना मन[गहरी सोच] के गैर जिम्मेदार उत्पाद [विद्यार्थी] निर्मित करते हैं ....विश्वविद्यालयो में लगातार बढ़ती हिंसा और छात्रों का लगातार अनैतिक कार्यों एवं गैर कानूनी कार्यों में लिप्त होना ..........प्राथमिक स्तर पर बच्चों के मन की सकारात्मक कंडीशनिंग ना हों पाने के कारण होती हैं ...जो की देश का दुर्भाग्य हैं |एक कहावत हैं”there should be no wall between school and society”,पर देखा जाय तो समाज और स्कूल के बीच काफी गैप नज़र आता हैं |ज्यादातर लोगों का कोई लक्ष्य ही नही होता !जो भी बन गये ,या जहा भी पहुँच गए उसी को लक्ष्य मान/बना लेते हैं |
कुछ लोगों को काटने[बुरा बोलने] की आदत होती हैं...................हमेशा आप को काट लेंगे |ऐसे लोगों के  काटे से बचने लिए मैंने एक टीका विकसित किया हैं –
लोगों को काटने[बुरा बोलने] के दुष्प्रभावो से खुद को कैसे बचाएं ?
जब भी आपको कोई काटें तो आप खुद से कम से कम २ बार कहिएं –
day by day in every way i am getting         better and better.
                                                              या
मेरी दुनिया में सबकुछ श्रेष्ठ एवं  .....                               
   कल्याणकारी हैं,


     अपने विचारों [सोच एवं धारणाओं] से अपनी दुनिया ह्म खुद बनातें  हैं ,कुछ लोग हमेशा नकारत्मक  ही सोचतें हैं जैसे –
गर्मी बहुत हैं.....[अरे गर्मी का मौसम हैं तो गर्मी ही होंगी]
मेरी दुनिया में सबकुछ बुरा होता हैं ...........[यक़ीनन बुरा ही होंगा क्यूंकि जो बोलेंगे /सोचेंगे वही होंगा जिन्दंगी  में...............]
जैसे हम लोगों के पास डायरी होती हैं ,वैसे भगवान के पास के पास भी एक डायरी हैं जिसमे एक ही शब्द हैं –
             तथास्तु
यदि हम सोंचे की हमारा जीवन उत्तम हैं |
तो भगवान ऊपरसे कहतें हैं
      तथास्तु

  यदि हम कहें की हमारे जीवन में कष्ट हैं तो भगवान उप्पर से कहतें हैं –
                      तथास्तु
सोचिये हमे तथास्तु कहा चाहिये  |हमे लगातार सकारात्मक सोचने की आदत डालनी होंगी |क्यूंकि हमारे विचारों के अनुसार त्वरित फल भगवान भी देतें हैं |
     इसलिए विचारों के सन्दर्भ में तो हमे सदैव सतर्क रहना होंगा |

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