9 September 2013

हर संडे....., डॉ.सिन्हा के संग !


                            
    {सोना रख लों ,चांदी भी रख लों ..पर ज्ञान हमे दे दों –अरबी कहावत }
        डॉ सिन्हा मुझसे ८० वर्ष बड़े हैं ,किन्तु उन्होंने खुद कों सकारात्मक कार्यों ,सामाजिक कार्यों से इस तरह जोड़ रखा हैं,की उनके पास रोजाना जीने का कोई न कोई मकसद होता हैं |वे उम्र में ६० से अधिक के नही लगते ,मेरी भेट उनसे उत्तराखंड आपदा के दौरान एक राहत शिविर में हुयी थी जहाँ वों बड़े जोशो-खरोस से राहत सामग्री पीडितो तक पहुंचा रहे थे,उनसे प्रेरित होकर युवाओं ने भी जान की बाजी लगा दी थी |मुझ जैसे युवा सत्य-खोजी में सीखने की ललक देख कर उन्होंने गुरु बनना स्वीकार कर लिया |डॉ सिन्हा देश के प्रसिद्ध दर्शन-शास्त्रियों के गुरु हैं,उनकी दर्शन शास्त्र पर दर्जनों पुस्तके छप चुकी हैं |
    दोस्तों ,हमारे बुजुर्ग मित्र ,हमारे बहुत बड़े मार्गदर्शक गुरु  होते हैं ,वे अनंत ज्ञान और अनुभव के जीवंत इन्सयिक्लोपिडीया  होते हैं,उनसे बात करते समय अगर हम उन्हें सुने ज्यादा और बोले कम ,तो हम बहुत शानदार जीवन सबक सीख सकते हैं |माफ कीजिये ,किन्तु कहना चाहूँगा की भगवान ने हम सबको इसीलिए हम सबको दो कान और एक मुह दिया हैं |
          नैनी से अरैल से संगम के मार्ग से होते हुए मैं उनके निवास स्थल झूंसी पहुंचा |आपको बता दूँ की प्रसिद्ध छायावादी कवियत्री सुश्री महादेवी वर्मा भी इसी मार्ग से संगम स्नान जाती थी|श्री सिन्हा जी का घर सकारात्मक कम्पन्न और सकारात्मक उर्जा से दमक रहा था |मैंने सिन्हा सर के चरण स्पर्श किया,उन्होंने बैठने का इशारा किया|मैं बैठ गया ,तभी एक खूबसूरत लावण्या युवती जलपान ,और फल लेकर आई| डॉ सिन्हा की पोती थी ,उन्होंने अपने पोते कों भी बुला लिया,दोनों मेरे समीप दरी के आसन पर बैठ गए  |
          “बेटा ! आजकल तुम कैसा महसूस कर रहे हों”?डॉ सिन्हा की मोहक मुस्कान और चमकती आँखे,चौड़ा ललाट और उस पर चन्दन का लेप,सफ़ेद बड़ी दाढ़ी ...तेजस्वी,मधुर किन्तु बुलंद आवाज उनके किसी महान ऋषि होने का बोध करा रहीं थी |”गुरुदेव आजकल बहुत व्यथित हूँ,कठिनाईयों से घिरा हूँ”मैंने कहा|सिन्हा जी मुस्कुराते हुए बोलें”बेटा बिना पथरीले,कटीले  रास्ते के  आज तक कोई भी लक्ष्य तक नही पहुंचा हैं |कठिनाईयां तो सफर का हुस्न हैं |विपरीत परिस्थितियो कों समझो ,स्वीकार करों तभी उनको अनुकूल बना सकोंगे |खुद कों परिणामों से अलग रखतें हुए ,सफलता और सम्पूर्णता से लग कर कार्य करो |दर्द और आनंद दोनों कों चखो |बच्चों !............जीवन में सिर्फ परिणाम देखा जाता हैं ,न की असफलता |जीवन में सिर्फ सीख होती हैं न की पाठ |अगर तुम लोग जागरूक रहकर देखोंगे तो परेशानियो में ही महान अवसर पाओंगे |याद रखो-

“सफलता का मोती निष्ठुरता की सीप में पलता हैं”|

             सुचित्रा ,उनकी पोती ने पूछा “दादा जी !जीवन सरल हैं ,आसान हैं |फिर कदम कदम पर हर परीक्षा में इतना  संघर्ष क्यूँ ?”..डॉ सिन्हा स्नेह से बोले “पुत्री !मुश्किलें ,संघर्ष ,कठिनाईयां ही हमारा वास्तविक रूप से साक्षात्कार कराती हैं ,हथौरे  की चोट ,सीसे कों तोड़ देती हैं ,किन्तु लोहे कों फौलाद बनाती  हैं|कठिनाईयां ही वास्तव में हममे निखार लाती हैं|पुत्री रिस्क लेना सीखो,जिन चीजों,जिन प्रोजेक्ट्स से आज डरती हों ,उनको करके देखो |डर तुम्हारी खुद की उत्पन्न की हुयी वस्तु हैं ,और हर निर्मित वस्तु की भाति इसको भी नष्ट किया जा सकता हैं | असुविधा के साथ नाता जोड़ो |कठिन से कठिन मार्गो पर चलो ,पैरों में चोट लग सकती हैं परन्तु बिना इन रास्तो के मंजिल का सफर भी तय नही होता |अपना वक्त security की खोज में मत बर्बाद करों हम सभी इंसान इस पृथ्वी पर महान उद्देश्य से अवतरित हैं,और हमे अपना उद्देश्य खोजकर उस पर कार्य करना होता हैं|ध्यान दो-

“जिस व्यक्ति का अपना कोई लक्ष्य नही होता वह जीवन भर दूसरों के लक्ष्य पूरा करने के लिए कार्य करता हैं”|

             “कुछ लोग मुझे पसंद नही हैं,उनसे कैसे डील करूं और अपना वर्ताव कैसे सुधारू ?” भीष्म ,सिन्हा साहब का पोता बोल पड़ा |सिन्हा साहेब मुस्कुराए और बोले आज सूर्य पश्चिम से कैसे निकला |कुछ भी हों पर मुझे यकीन था, अपनी परवरिश पर भरोसा था की तुम भी स्वयमविकास में रूचि लेकर ,महान व्यक्तित्व बनोंगे |सुनों पुत्र ! वर्षों पहले अक्सर अपनी कक्षाओं में मैं विद्यार्थियो कों एक इक्सरसाईज करवाता था ,जो इस प्रकार था-

      “मान लीजिए आज इस पृथ्वी पर आपका आखिरी दिन हैं ,आप अपनी आँखे बंद कीजिये और इमैजिन कीजिये ,की आपका व्यवहार अपने फैमिली मेम्बर्स ,पडोसियो ,सहकर्मियो,दोस्तों के साथ कैसा होंगा ?आप देखोंगे की आपके वर्तमान व्यवहार और इस अभ्यास के बाद के व्यवहार में काफी अंतर आ गया हैं |अभ्यास के दौरान जो आपने महसूस किया वही असली व्यवहार हैं,उसी तरह हमे व्यवहार करना चाहिए" |

              वत्स !तुम्हारे जीवन में कई ऐसी चीजे होती हैं जिनसे तुम नफरत करते होंगे ,चिढते होंगे ,या तनाव में पढ़ जातें होंगे ,जो इस बात का इंडिकेटर हैं की ‘भीतर से कुछ बदलना हैं’|ये चीजे या लोग तुम्हे तब तक परेशान करेंगे जब तक तुम वास्तविक व्यक्तिगत जिम्मेदारी नही लोंगे |जब तुम इस तरह की जिम्मेदारी लेकर अपने दोषों कों ,ध्यान पूर्वक एक एक कर  दूर करने लगते हों |तो तुम्हारे और दूसरे लोंगो के बीच नजदीकियां बढेंगी |पुत्र !लोग मूल रूप से अच्छे ही होतें हैं ,जब तुम निस्वार्थ प्रेम से भर जाते हों ,विना शर्त के सभी कों प्रेम देने लगते हों,किसी पर दोषारोपण नही करते हों ,तो लोग पुरे विवेक,समझ से प्रतिक्रिया देते हैं |पुत्र सभी परछाइयाँ प्रकाश में विलुप्त हों जाती हैं | {क्रमशः ...}
************लेखन -अजय यादव  
{सारे किरदार काल्पनिक हैं ,किसी जीवित और मृत व्यक्ति से कोई संबंध नही }

9 comments:

  1. बहुत सुंदर ज्ञानपूर्ण सीख,,,
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !

    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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  2. सकारात्मक जीवन दर्शन.

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  3. अनुकरणीय विचार ...सार्थक पोस्ट जीवन को सकारात्मक दिशा देती हुयी ....

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  4. छोटे से जीवन में आत्मावलोकन , जीवन को हंसायेगा ..

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  5. सच में अनुभव से उत्पन्न उद्गार, पढ़वाने का आभार।

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  6. इंतजार में हूँ आगे की बात जानना है ....

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  7. बहुत ही सुंदर विचार, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. बहुत ही सुन्दर अजय जी, अनेकानेक शुभकामनाये ... !!

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