You start dying slowly
if you do not travel,
if you do not read,
If you do not listen to the sounds of life,
If you do not appreciate yourself.
You start dying slowly
When you kill your self-esteem;
When you do not let others help you.
You start dying slowly
If you become a slave of your habits,
Walking everyday on the same paths…
If you do not change your routine,
If you do not wear different colours
Or you do not speak to those you don’t know.
You start dying slowly
If you avoid to feel passion
And their turbulent emotions;
Those which make your eyes glisten
And your heart beat fast.
You start dying slowly
If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love,
If you do not risk what is safe for the uncertain,
If you do not go after a dream,
If you do not allow yourself,
At least once in your lifetime,
To run away from sensible advice…
if you do not travel,
if you do not read,
If you do not listen to the sounds of life,
If you do not appreciate yourself.
You start dying slowly
When you kill your self-esteem;
When you do not let others help you.
You start dying slowly
If you become a slave of your habits,
Walking everyday on the same paths…
If you do not change your routine,
If you do not wear different colours
Or you do not speak to those you don’t know.
You start dying slowly
If you avoid to feel passion
And their turbulent emotions;
Those which make your eyes glisten
And your heart beat fast.
You start dying slowly
If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love,
If you do not risk what is safe for the uncertain,
If you do not go after a dream,
If you do not allow yourself,
At least once in your lifetime,
To run away from sensible advice…
9 thoughts on “Poetry 108: You start dying slowly – By Pablo Neruda”
जो
बन जाते हैं आदत के गुलाम,
चलते रहे हैं हर रोज़ उन्हीं राहों पर,
बदलती नहीं जिनकी कभी रफ्तार,
जो अपने कपड़ों के रंग बदलने का जोखिम नहीं उठाते,
और बात नहीं करते अनजान लोगों से,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो रहते हैं दूर आवेगों से,
भाती है जिन्हें सियाही उजाले से ज़्यादा,
जिनका ‘मैं’ बेदखल कर देता है उन भावनाओं को,
जो चमक भरती हैं तुम्हारी आँखों में,
उबासियों को मुस्कान में बदल देती हैं,
ग़लतियों और दुःखों से उबारती हैं हृदय को,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो उलट-पुलट नहीं देते सबकुछ
जब काम हो जाये बोझिल और उबाऊ,
किसी सपने के पीछे भागने की ख़ातिर
चल नहीं पड़ते अनजान राहों पर,
जो जिन्दगी में कभी एक बार भी,
समझदारी भरी सलाह से बचकर भागते नहीं,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो निकलते नहीं यात्राओं पर,
जो पढ़ते नहीं,
नहीं सुनते संगीत,
ढूँढ़ नहीं पाते अपने भीतर की लय,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो ख़त्म कर डालते हैं ख़ुद अपने प्रेम को,
थामते नहीं मदद के लिए बढ़े हाथ,
जिनके दिन बीतते हैं
अपनी बदकिस्मती या
कभी न रुकने वाली बारिश की शिकायतों में,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो कोई परियोजना शुरू करने से पहले ही छोड़ जाते हैं,
अपरिचित विषयों के बारे में पूछते नहीं सवाल,
और चुप रहते हैं उन चीज़ों के बारे में पूछने पर
जिन्हें वे जानते हैं,
वे मरते हैं धीमी मौत।
किश्तों में मरते चले जाने से बचना है
तो याद रखना होगा हमेशा
कि जिन्दा रहने के लिए काफ़ी नहीं बस साँस लेते रहना,
कि एक प्रज्ज्वल धैर्य ही ले जायेगा हमें
एक जाज्वल्यमान सुख की ओर।
चलते रहे हैं हर रोज़ उन्हीं राहों पर,
बदलती नहीं जिनकी कभी रफ्तार,
जो अपने कपड़ों के रंग बदलने का जोखिम नहीं उठाते,
और बात नहीं करते अनजान लोगों से,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो रहते हैं दूर आवेगों से,
भाती है जिन्हें सियाही उजाले से ज़्यादा,
जिनका ‘मैं’ बेदखल कर देता है उन भावनाओं को,
जो चमक भरती हैं तुम्हारी आँखों में,
उबासियों को मुस्कान में बदल देती हैं,
ग़लतियों और दुःखों से उबारती हैं हृदय को,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो उलट-पुलट नहीं देते सबकुछ
जब काम हो जाये बोझिल और उबाऊ,
किसी सपने के पीछे भागने की ख़ातिर
चल नहीं पड़ते अनजान राहों पर,
जो जिन्दगी में कभी एक बार भी,
समझदारी भरी सलाह से बचकर भागते नहीं,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो निकलते नहीं यात्राओं पर,
जो पढ़ते नहीं,
नहीं सुनते संगीत,
ढूँढ़ नहीं पाते अपने भीतर की लय,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो ख़त्म कर डालते हैं ख़ुद अपने प्रेम को,
थामते नहीं मदद के लिए बढ़े हाथ,
जिनके दिन बीतते हैं
अपनी बदकिस्मती या
कभी न रुकने वाली बारिश की शिकायतों में,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो कोई परियोजना शुरू करने से पहले ही छोड़ जाते हैं,
अपरिचित विषयों के बारे में पूछते नहीं सवाल,
और चुप रहते हैं उन चीज़ों के बारे में पूछने पर
जिन्हें वे जानते हैं,
वे मरते हैं धीमी मौत।
किश्तों में मरते चले जाने से बचना है
तो याद रखना होगा हमेशा
कि जिन्दा रहने के लिए काफ़ी नहीं बस साँस लेते रहना,
कि एक प्रज्ज्वल धैर्य ही ले जायेगा हमें
एक जाज्वल्यमान सुख की ओर।
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