पिछले पोस्ट में आप उस
चौराहे पर पहुंचे थे जहाँ से झूंसी,संगम ,नैनी,और
बैरहना की ओर मार्ग जाता हैं |आईये आपको नये यमुना ब्रिज की
दिशा से होते हुए औद्योगिक क्षेत्र नैनी
ले चलते हैं |नया यमुना पुल परेड ग्राउंड के ठीक बगल में ,कीडगंज
से लगा हुआ बना हैं ,उसके
नीचे इलाहाबाद डिग्री कालेज एवं सरस्वती घाट एवं पार्क तथा बोट क्लब हैं |सायंकाल
आप नये पुल और सरस्वती घाट पर तफरी करने आ सकते हैं |पंक्तिबद्ध
रौशनी करते लैम्प ,यमुना के शांत..धीर
गम्भीर दामन को अनगिनत झिलमिल सितारों से भर
देते हैं |
शाम
के पांच बजे से ,जब
यमुना पुल की रोशनियाँ जल जाती हैं ,तो पुल पर एक अलग ही एहसास होता हैं
,ऐसा
लगता हैं जैसे हम किसी और दुनिया में आ गयें हो |पुल गाड़ियो की आवाजाही के साथ
,झूले
की तरह ऊपर नीचे होता रहता हैं,पुल के नीचे की सीढियां यमुना के खूबसूरत घाटो तक लें
जाती हैं |रूहानियत
और रूमानियत भरा यह माहौल प्रेमी जोड़ो ,चोट खाए आशिको,कवियों
,शायरों
को बेहद लुभाता हैं –
'न आँखों से कभी ढलें आंसू ,न चेहरे पे ,शिकस्ती के निशां उभरे|
मैं इस सलीके से रोया
हूँ ,पूरी उम्र हँस हँस
कर ||
मित्रो !जीवन में हम जो चाहते हैं ,वह
प्राप्त होने के बजाय हमे वही मिलता हैं,जो ...........हम होते हैं |जिंदगी से निराश कुछ लोग ,मकसद
तलाशते घूमते दिख जायेंगे ,कुछ 'गुनाहों के देवता' भी
मिलेंगे -
"न गरज किसी से,न वास्ता ,मुझे काम अपने ही काम
से |
तेरे जिक्र से ,तेरी फ़िक्र से ,तेरी याद से ,तेरे नाम से "||
आत्मविश्वास खोकर ,जीवन संघर्ष से भागे कुछ लोग
,यहाँ
से सुसाईड करते हुए देखे गये हैं, -
साँसों के सिलसिले को.. न
दों,जिंदगी का नाम |
जीने के बावजूद भी.. ,कुछ लोग... मर गये हैं ||
मनुष्य
होने का मतलब ही हैं की हम अपूर्ण हैं,लेकिन हम अपनी अपूर्णता
में भी पूर्ण हैं |यह अपूर्णता हमे एक मूल लक्ष्य प्रदान करती
हैं –वापस अपने मूल आत्म-स्वरुप तक पहुँच
कर अपने यथार्थ को प्राप्त करने का लक्ष्य |यदि मनुष्य के रूप
में हममे कोई कमी ही नही होंगी तो किसी भी तरह का आत्मिक-आध्यात्मिक
कार्य ही नही होंगा -
"हादसे भी दिमाग रखते हैं ,ढूंढ लेते हैं ,उदास लोगो कों|
जो उतर गयें हैं ,दरियां में ,हौंसले भी उन्ही का साथ देते हैं ||
नैनी पुल पार करते ही सड़क दो
भागो में बट जाती हैं |एक भाग रीवा की तरफ तो दूसरा मिर्जापुर की तरफ जाता
हैं |मिर्जापुर
वाली रोड से नैनी स्टेशन की तरफ भी एक रोड
निकलती हैं |मिर्जापुर
रोड पर आगे बढने पर प्रसिद्ध और विशाल 'नैनी
जेल' हैं,जहाँ
कुख्यात समाजसेवी {लुच्चे फसादी नेता },आतंकवादी और 'वक्त
की मार खाए निर्दोष' कैदी बंद होते हैं | इतिहास गवाह हैं ,जब
जब छापा पड़ा हैं, जेल
में हर प्रतिबंधित चीज जरूर मिली हैं |
अरैल वही जगह हैं ,जहाँ से "भारत का मानक
समय" लिया जाता हैं |अरैल
सनातन धर्म और आध्यात्मिक शिक्षा की एक एतिहासिक
प्राचीन नगरी रही हैं ,यहाँ के भवनावशेष यहाँ की गाथा गाते हैं ,प्राचीन
मन्दिर और आश्रमो की नगरी अरैल ने विश्व को "महर्षि योगी "{महर्षि
महेश योगी }जैसा
संत दिया ,जिन्होंने
इलाहाबाद से ही {भौतिकी
में परास्नातक }शिक्षा-दीक्षा
ग्रहण किया और आध्यात्म की अनुभूति भी ली ,उनकी यह कर्म स्थली रही थी |उन्होंने
श्री श्री रविशंकर और डॉ दीपक चोपड़ा जैसे महान हस्तियों को TM ध्यान
सिखाया |संस्कृत
की शिक्षा देने वाले एवं गुरुकुलो वाली परम्परा के अनेक विद्यालय आज भी अपनी खुशबू
विखेर रहें हैं |इसी
साईड में 'दिल्ली
पब्लिक स्कूल'..ओमेक्स
सिटी और प्रसिद्ध ब्लोगर एवं कवियत्री श्रीमती वसुंधरा पाण्डेय "वाशु जी" का
आवास भी है
मिर्जापुर
रोड पर आगे बढ़ते रहने पर काटन मिल चौराहा और मेवालाल बगिया जैसे तिराहे ,चौराहे
आते हैं जो रिहायसी कालोनियों की तरफ मुड़ते हैं ,इलाहाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा
बसाया गया "एडीए कालोनी'नामक
खूबसूरत कालोनी भी हैं |मेवालाल बगिया पर हर रोड पर कईयों "ए टी एम्"मशीने हैं |इन रिहायसी कालोनियों में लगभग हर
तीसरी गली में एक इंटर कालेज हैं |जहाँ की शिक्षा व्यवस्था का जायजा "इस पोस्ट "से ले सकतें हैं |
यहाँ
के स्कूलों में 95% पाने के लिए ,पढ़ाई
की नही गुरूजी की सेवा की जरूरत पड़ती हैं {बेथनी कान्वेंट,रणजीत पंडित इ.कालेज,केन्द्रीय
विद्यालय अपवाद हैं,जहाँ बोर्ड परीक्षा बच्चे अपनी स्किल पर देते
हैं}|यहाँ
के 'गड्ढे
वाले स्कूल' में
तो कोई बच्चा सेकण्ड डिविजन आता ही नही हैं ,माफ़ कीजिये यह पढ़ाई नही ..नकल की महत्ता हैं|अगर आप इन स्कूलों की हालात जानतें हो और गर्ल्स चाईल्ड/छोटे बच्चो के अभिभावक हों तो एडमिशन कराने की बात सोचकर ही सिहर उठेंगे |यहाँ "४२वी वाहिनी PAC" भी हैं पर उसकी भूमिका हुक्मरानों के इशारो पर ,जरूरत पड़ने पर दीखती हैं |
मिर्जापुर रोड पर आगे बढ़ते रहने पर,मेवालाल बगिया से आगे फैक्ट्रियो शुरू
होती हैं ..ट्रांसफार्मर बनाने वाली "एलेस्त्रंम",नुरानी
तेल ,बैधनाथ
{दवा
वाले},त्रिवेणी
,BPCL,टेलीफोन
सेट निर्माता आईटीआई ,रेमंड से रेक्रोन
और अब उससे रिलायंस बनी धागों की फैक्ट्री ,पार्ले जी की फैक्ट्री एवं सैकड़ो छोटे
मोटे उद्योग हैं |यहाँ के औद्योगीकरण में श्री हेमवती नंदन बहुगुणा का
बहुत बड़ा योगदान मन जाता हैं ,किन्तु दुर्भाग्य से उनके नाम पर यहाँ सिर्फ एक डिग्री
कालेज हैं| यहाँ
के आधिकांश फैक्ट्रिया मृतपाय हैं ,अभी पिछले दिनों ही एक ट्रांसफोर्मर
बनाने वाली फैक्ट्री,वर्कर्स को VRS देकर गुजरात भाग गयी
हैं |
‘अपनी बर्बादी से कुछ इतना
घबरातें हैं लोग
खुद न जला सकें तो ,औरो
के बुझातें हैं चिराग’
उसी रोड पर यूनाईटेड इंजीनियरिंग कालेज,मैनेजमेंट कालेज,फार्मा कालेज व् BIT जैसे शिक्षण संस्थान हैं |पुराने नैनी पुल के पास विशाल ग्लैमरस छवि वाला लगभग १०० वर्ष पुराना “इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट”डीम्ड विश्वविद्यालय भी हैं |बहुत ही खूबसूरत इंस्टीट्यूट
हैं |लैंडस्केप,शिक्षा और बहुमुखी प्रतिभाशाली
छात्र-छात्राएं |यहाँ ज्ञान कहता हैं की
‘प्यार’ पागलपन हैं..प्यार कहता हैं की ‘ज्ञान’ कुछ
चीजो की गणना भर हैं बस्स...-
‘इल्म ने मुझसे कहा –ईश्क हैं, दीवानापन ,
ईश्क ने मुझसे कहा –इल्म
हैं ,तखमीन-ओ-जान’
{जान एलिया}
- अजय यादव
{drakyadav@rediffmail.com}
यह लेखक के अपने विचार हैं ,पाठको का सहमत होना जरुरी नही हैं |
*{नोट-शेरो-शायरीया मेरी नही हैं ,ये
मुझे अच्छी लगी और डायरी के पन्नो में दर्ज होती गयी ,दुर्भाग्य
से श्रोत/रचनाकार ज्ञात
नही हैं }
पूर्णता की आस में हम अपने अपूर्ण अस्तित्व को खींचें रहते हैं, अन्यथा ही।
ReplyDeleteसादर प्रणाम ,
ReplyDeleteस्वागत हैं सर जी का
बहुत खूब .. इलाहबाद की सड़कों और गलियों से उसकी पहचान के साथ रूहानी शेरों के साथ गुजारना ... किसी ख्वाब से कम नहीं है ...
ReplyDeleteइलाहाबाद की सैर कराती बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत खूब ,सुंदर प्रस्तुति ...!
ReplyDelete=================
RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
ऐसा लगा जैसे इलाहाबाद की सड़कों से हो के गुज़र रहे थे.
ReplyDeleteथैंक्स अजय..तुम्हारी सच्चाई ,जिन्दादिली बहुत पसंद है मुझे...
ReplyDeleteइलाहबाद को जिस तरह तुमने बयाँ किया है,यहाँ के बाशिंदे भी इतनी साफगोई से इलाहबाद दर्शन नही करा सकेंगे ..मुझे भी बहुत क्लियर हुयी यहाँ की राहें और यहाँ के बारे में...
इलाहाबाद में बहुत से मेरे रिश्तेदार रहते हैं
ReplyDeleteबिहार से कही जाने आने में इलाहाबाद पड़ता है
इसे देखने की उत्सुकता संगम की वजह से भी होती थी। …
लेकिन
आपके आलेख ने कुछ हद तक इलाहाबाद के दर्शन करवाने में सक्षम हुआ
शुक्रिया और आभार
हार्दिक शुभकामनायें