आग लगने से रामू की झोपडपट्टी और कच्चा
घर जल कर खाक हो गये,साथ ही घर में रखा अनाज और बेटी की शादी के लिए जुटाया गया
सामान भी जल गया |
रामू किसान हैं ,वही किसान.......जो देश की 67 %
जनता को भोजन की गारंटी देता हैं|वही किसान जो हर ओर से बदहाली की मार झेल रहा हैं
,आर्थिक असुरक्षा ,ऋण ,दिवालियापन,फसल की असफलता और ,बीमारी झेल रहा हैं ,मुंशी
प्रेमचन्द्र की कहानी “पूस की रात”के हलकू के जैसा किसान हैं रामू, ..रामू को पता
नही की सरकार की कुछ योजनाये भी होती हैं उसने गाँव में कोई अफसर तक नही देखा कोई
विकास अधिकारी या कृषि अधिकारी या इससे जुड़े किसी जिम्मेदार व्यक्ति को नही देखा |हाँ
रामू ने कुछ लोगो को देखा हैं ...फसल बर्बाद होने की वजह से ट्रैक्टर का बैंक ऋण न चुका पाते अपने भाईयो की जमींन और
आबरू को नीलाम करने वाले बैंक अफसरों को ,साहुकारो को और शोषको को|रामू अत्यंत
निराश हैं उसको जीने की इच्छाशक्ति खत्म हो चली हैं|
स्वतन्त्रता प्राप्ति के
समय कृषि का जीडीपी में 55 % योगदान था जो की 2014 तक मात्र 14% रह गया हैं | NCRB
के अनुसार 1991-2004 तक 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं भारत में हर घंटे 2
किसान मर रहे हैं सबसे ख़राब हालत आंध्र प्रदेश,विदर्भ(महाराष्ट्र),बुन्देलखण्ड और
तमिलनाडु में हैं |किसानो की इतनी दयनीय स्थिति होने के वावजूद प्रदेश की सत्ताधारी
पार्टियो और केन्द्रीय सरकार की कोई ठोस पहल समझ में नही आती |
कृषि की बदहाली के लिए प्राकृतिक कारण
,मानवीय कारण ,पर्यावरण प्रदूषण (के कारण बदलते मानसून) ,पूर्वी तट के भयंकर तूफ़ान
,चक्रवात जिम्मेदार तो हैं ही ,किन्तु तकनीक की कमी ,इन्फ्रास्ट्रक्चर का आभाव
,कृषि शोध का विकास एवं क्रियान्वयन की कमी भी बदहाली के कारण हैं,राजनैतिक पार्टिया किसानो
के हित में नीतियाँ बनाने में असफल रही हैं ,यदि भारत का अन्नदाता अपने पैरो को
खेतो से हटा लेंगा तो उदद्योग और सेवाक्षेत्र का विकास अवरुद्ध हो जायेंगा |कहा भी
गया हैं “भूखे भजन न होय गोपाला” अतः यदि पेट में भोजन होगा तभी मोबाईल और
कम्प्यूटर की उपयोगिता भी होंगी |
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